Friday, July 16, 2021

 

Book 10 Hymn 71

Baby prattle

बृहस्पते प्रथमं वाचो अग्रं यत प्रेरत नामधेयं दधानाः | 
यदेषां श्रेष्ठं यदरिप्रमासीत् प्रेणा तदेषां निहितं गुहाविः ||ऋ10/71/1

(प्रथमं नामधेयं दधाना: यत् प्र ऐरत्) आरम्भ में बालक  पदार्थों का  नाम रख कर जो कुछ बोलते हैं (वाच: अग्रम) वह  वाणी का प्रथम स्वरूप है (एषां  यत् श्रेष्ठं यत् अरिप्रं आसीत् ) वह  शुद्ध निष्पाप ज्ञान से उत्पन्न होता है , (एषां तत् गुहा निहितं प्रेणा आवि: ) जो गुप्त है और प्रेम के कारण प्रकट हुवा है. 

            Develop an Articulate child

 
सक्तुमिव तित `उना पुनन्तो यत्र धीरा मनसा वाचमक्रत | 
अत्रा सखायः सख्यानि जानते भद्रैषां लक्ष्मीर्निहिताधि वाचि || ऋ10/71/2

(तितौना सक्तुं इव पुनन्त:) जैसे सूप से सत्तू को स्वच्छ कर लेते हैं- छिलके भूसी हटा देते हैं   ( धीरा यत्र  मनसा वाचम् अक्रत्) उसी प्रकार बुद्धिमान पुरुष बुद्धि से उस (बच्चों की) वाणी को परिमार्जित करते हैं ( अत्र सखाय: सख्यानि जानते) प्रेम से (वाणी के) ज्ञान की शिक्षा देते हैं (एषां अधि वाचि भद्रा लक्ष्मी: निहिता)  इस प्रकार से  प्रयोग की वाणी मे कल्याण कारक मंगलमयी लक्ष्मी स्थापित होती है.-

 भावार्थ: बच्चों की तुतलाती भाषा को बुद्धिमान माता पिता गुरुजन परिमार्जित कर के, उन के जीवन मे कल्याण कारक मंगलमयी लक्ष्मी दायक मृदु भाषा  स्थापित  करते हैं. (प्रियं ब्रूयात्)

 

           Vocal Communication Skills


यज्ञेन वाचः पदवीयमायन् तामन्वविन्दन्नृषिषु प्रविष्टाम | 
तामाभृत्या व्यदधुः पुरुत्रा तां सप्त रेभा अभि सं नवन्ते ||

ऋ10/71/3

(वाच: पदवीयं यज्ञेन आयन् ) इस प्रकार बुद्धिमान जन, उर्कृष्ट वाणी से यज्ञ्यों द्वारा प्रतिष्ठित पद प्राप्त करते हैं.  (ऋषिषु प्रविष्ठां तां अविंदन्) ऋषियों द्वारा दिये ज्ञान को आधार बना कर.(तां आभृत्य पुरुत्रा व्यदधु:)  सहायक भृत्यों के द्वारा दूर दूर तक  प्रतिष्ठित होते हैं .( तां सप्त रेभा:अभि सं नवन्ते) इस प्रकार उत्कृष्ट वाणी द्वारा सभी सम्भव उन्नति प्राप्त करते हैं .

भावार्थ: उत्कृष्ट वाणी द्वारा ही भावोद्दीपक प्रभाव से सामुहिक योजनाओं मे सफलता प्राप्त होती है.

Develop knowledge based communication skills

उत त्व: पश्यन न ददर्श वाचमुत त्व: शृण्वन न शृणोत्येनाम| 
उतो त्वस्मै तन्वं वि सस्रे जायेव पत्य उशती सुवासाः || ऋ10/71/4

(त त्व: वाचं पश्यन् न ददर्श) कोइ तो  अपनी वाणी को मन से अज्ञान के कारण नही परखता  (उत त्व: एनां शृण्वन् न शृणोति) दूसरा अपनी वाणी के अर्थ और प्रभाव नही समझता,(उतो त्वस्मै तन्वं वि सस्रे) परन्तु वाणी तो  अपने ज्ञान रूप प्रकाश से समाज में इसी प्रकार से  शोभा बढाती है ( पत्ये सुवासा: उशती जाया इव) जैसे सुंदर परिधान में  अपने पति के सुख के लिए रमणीय पत्नि अनुकूल वातावरण बनाती है.

       Knowledge based Articulate Skill


उत त्वं सख्ये स्थिरपीतमाहुर्नैनं हिन्वन्त्यपि वाजिनेषु | 
अधेन्वा चरति माययैष वाचं शुश्रुवाँ अफलाम पुष्पाम ||  ऋ10/71/5

(उत त्वं सख्ये स्थिर्पीतं आहु:) सार्थक ज्ञान पूर्ण वाणी द्वारा विद्वान मित्रों मे स्थान पाया जाता  है ,  ( वाजिनेषु अपि एनं न हिन्वन्ति) वाणी सामर्थ्य द्वारा श्रेष्ठ  स्थान पाए जाते  हैं (वाचं अफलां अपुष्पां शुश्रुवान्) जो वाणी के इन फलों फूलों के बिना अध्ययन करता है ( एष: अधेन्या मायया चरति) वह एक बंध्या गौ के समान है, समाज में अपनी वाणी का छल पूर्वक प्रयोग करता है.

( आधुनिक व्यापार के विज्ञापन और संचार माध्यम मे यह माया जाल खूब देखने को मिलता है)


यस्तित्याज सचिविदं सखायं न तस्य वाच्यपि भागो अस्ति | 
यदीं शृणोत्यलकं शृणोति नहि प्रवेद सुकृतस्य पन्थाम || ऋ10/71/6

(य: सचिविदं सखायं ते त्याज)‌ जो विद्वान ज्ञान की इस परोपकारी वृत्ति को त्याग देता है ( तस्य वाचि अपि भाग: न अस्ति) उस की वाणी मे कोइ कल्याणकारी फल नहीं मिलता (ईम् यत् शृणोति अलकं शृणोति) और जो उसे सुनते हैं व्यर्थ ही सुनते हैं( हि सुकृतस्य पंथां न प्रवेद) उस से सत्कर्म और कल्याण का मार्ग प्रशस्त नहीं होता .

          All men are not born Equal


अक्षण्वन्तः कर्णवन्तः सखायो मनोजवेष्वसमा बभूवुः | 
आदघ्नास उपकक्षास उ त्वे हृदा इव स्नात्वा उत्वे ददृश्रे || ऋ10/71/7

(अक्षण्वन्त: कर्णवंत: सखाय: ) आंख से, कान से, समान ज्ञान ग्रहण करने वाले मित्र भी  ( मनोजवेषु  असमा: बभूवु:) मन से जानने योग्य ज्ञान  में एक समान नहीं होते. ( हृदा: आदघ्नास:) जैसे भूमि पर कोइ जलाशय मुख तक गहरायी वाले और (त्वे उ उपकक्षास: इव) कोइ कमर तक जल वाले तलाब जैसे(स्नात्वा: उ त्वे) स्नान करने योग्य होते हैं. इसी प्रकार मनुष्यों मे भी ज्ञान की दृष्टि से असमानता रहती है.

 Intellectual  keep  their company

 
हृदा तष्टेषु मनसो जवेषु यद्ब्राह्मणाः संयजन्ते सखायः | 
अत्राह त्वं वि जहुर्वेद्याभिरोहब्रह्माणो विचरन्त्यु त्वे ||

ऋ10/71/8

(सखाय: ब्राह्मणा: हृदा तष्टेषु) समान योग्यता वाले विद्वत् गण हृदय से एक साथ होने की चेष्टा करते हैं  (मनस: जवेषु यत् संयजन्ते) वेदों के विद्या ज्ञान के निरूपण परीक्षणके लिए एकत्र होते हैं.(अत्र त्वं वेद्याभि: वि जुहु: ) तब कुछ व्यक्तियो की अरुचि के कारण उन का सम्पर्क छोड देते हैं (अह ओह्ब्रह्माण: उ त्वे विचरन्ति) और कुछ विद्या वेदादि से ज्ञान की प्रगति मे लगे रहते हैं.

          Livelihood of Non intellectuals


इमे ये नार्वाङ्न परश्चरन्ति न ब्राह्मणासो न सुतेकरासः | 
त एते वाचमभिपद्य पापया सिरीस्तन्त्रं तन्वते अप्रजज्ञयः || ऋ10/71/9

(इमे ये न अर्वाक् न पर: न चरन्ति)और वे अकर्मन्य लोग जो न वर्तमान न भविष्य के बारे मे चिंतन करते हैं ( न ब्राह्मणास: न सुकेतरास: ) जिन्हें न वेद ज्ञान है न बुद्धि जन्य विज्ञान कार्य कौशल निपुणता है (अप्रजयज्ञ: ) यथार्थ ज्ञान के अभाव में ( ते एते पापया वाचं अभिपद्य) वे पापकारिणी अज्ञान युक्त लौकिक व्यवहार  (सिरी: तन्त्रं तन्वते) मे प्रवृत्त हो कर अपने परिवार की वृद्धि और अपने भौतिक शरीर की वृद्धि मे व्यस्त रहते हैं.

          Expert Seminars
सर्वे नन्दन्ति यशसागतेन सभासाहेन सख्या सखायः | 
किल्बिषस्पृत पितुषणिर्ह्येषामरं हितो भवति वाजिनाय ||ऋ10/71/10

(सर्वे सखाय: सभासाहेन सख्या आगतेन यशसा नन्दन्ति ) (एषां पितुषणि: किल्बिषस्पृत्) (वाजिनाय हित: अरं भवति)

 शिक्षित  विद्वानों  की जन सभा मे अध्यक्षता करने वाले आगंतुक वक्ता की विद्वत्ता और ज्ञान से सब आनन्दित होते  हैं .इस प्रकार  की गोष्ठियों  से  ही समाज  में  अन्न की वृद्धि और पाप  के नाश  से बल और सामर्थ्य  बढता है.

           Specialized  Experts
ऋचां त्वो पोषमास्ते पुपुष्वान गायत्रं तवो गायति शक्वरीषु | 
ब्रह्मा त्वो वदति जातविद्यां यज्ञस्य मात्रां वि मिमीत उ त्व: || ऋ10/71/11

(त्व: ऋचां पोषं पुपुष्वान् आस्ते) (त्व: शक्वरीषु गायत्रयं गायति) (त्व: ब्रह्मा ज्ञातविद्यां वदति) (उ त्व: यज्ञस्य मात्रां वि मिमीते)

एक स्तोता विद्वान्‌ वेद मंत्रों का यज्ञानुष्ठान  में विधिवत प्रयोग , दूसरा छंद ज्ञान  से  साम वेद, तीसरा इष्ट  कार्यों में  प्रायष्चित  और  विद्या  का ज्ञान देता है , तो अन्यविभिन्न कार्यों  के हतु विभिन्न  यज्ञों  का अनुष्ठान  कराता है. 

 

Wednesday, July 14, 2021

 

 जल का वैदिक विज्ञान (गङ्गा जल का विज्ञान)

{ Water in Vedas & Modern Science AV1.33

देवता:आप:

Water affected by Solar Radiations

1.हिरण्यवर्णाः शुचयः पावका यासु जातः सविता यास्वग्निः ।

या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु  । । AV1.33.1 इसी प्रकार यजुर्वेद में कहा है;

समुद्रोsसि नभस्वानार्द्रदानु: शम्भूर्मयोभूरति मा वाहि स्वाहा| Y18.45.a

मारुतोsसि मरुतां गण: शम्भूर्मयोभूरभि मा वाअहि   स्वाहा |

अवस्यूरसि दुवस्वाञ्छम्भूर्मयोभूरभि मा  वाहि  स्वाहा || Yaju 18.45

नभस्वानार्द्रदानु: -नभ्‌ का शाब्दिक अर्थ है टूटना –Killed नभस्वान्‌ का अर्थ हुवा जल जो स्वयं टूट  कर आर्द्रदानु: औरों के प्रति दयाद्र हृदय वाला होता है भौतिक स्तर पर ऐसा जल अधिक  आर्द्रता लिए होता है.

 Such water  develops more wetting property, because it has lower SURFACE TENSION- ( a physically measureable property)   |

 यहां आधुनिक विज्ञान के अनुसार जब जल प्रपातों और भंवर से प्रभावित होता है, जैसे पर्वतीय क्षेत्र में जब गङ्गा का जल  प्रपातों और भंवर से प्रभावित होता है, तो उस जल का पृष्ट-तनाव surface tension बहुत कम हो जाता है.

Water of low surface tension- Water potential -affecting solvability, diffusion properties (pure water has zero water  potential, any dissolved substance will impart negative potential

2.यासां राजा वरुणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्यन्जनानां ।

 या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु  । । AV1.33 .2

Water having been subjected to cosmic radiations

3.यासां देवा दिवि कृण्वन्ति भक्षं या अन्तरिक्षे बहुधा भवन्ति ।

या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु  । । AV1.33 .3

 

Summing up water that looks clean, feel good on touch, and has desirable solids is beneficial to us

4.शिवेन मा चक्षुषा पश्यतापः शिवया तन्वोप स्पृशत त्वचं मे 

घृतश्चुतः शुचयो याः पावकास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु  । । AV1.33 .4

 

 

AV3.13,RV

जलों के नामों के निर्वचन –अथर्व3.13           नदी गंगा आरती तथा अ‍भिमंत्रित जल AV 3.13   Water

Devta; सिंधु: ,आप:, वरुण 

यददः संप्रयतीरहावनदता हते 

तस्मादा नद्यो नाम स्थ ता वो नामानि सिन्धवः  । ।AV3.13.1 । ।

जल मेघों मे आहत रोगाणुओं के नष्ट होने पर (विद्युत और वेगवान वायु से प्रताड़ित) होने पर ध्वनि करते हुए- नाद करते हुए एक एक बून्द से एकत्रित हो कर तीव्र गति से एक विशाल धारा का रूप लेता है  तब उसे बड़ी नदी सिंधु  का नाम दिया जाता है.

Created by combined actions of clouds and lightening that result in result in killings ( of infections) , you combine to gather and run in to a stream making great sounds naad (नाद) thus take the form of  nadi ( नदी) to finally reach the oceans (सि न्धव ) .

 

Activated Water

 यत्प्रेषिता वरुणेनाच्छीभं समवल्गत 

 तदाप्नोदिन्द्रो वो यतीस्तस्मादापो अनु ष्ठन  । ।AV3.13.2 । ।

Thus sent (from cloud heights)by Varun  to adopt the earth (collect all the minerals), and in moving fast you gather electrical energies and are called Apah (आप: ).

(According to modern science water is a universal solvent. Every element on earth is soluble in water – in vastly varying concentrations- .  While moving fast water gets electrified. Hydrogen has three isotopes and Oxygen has two isotopes. These isotopes can be created by various methods such as,  radiations of electromagnetic form, mechanical agitations such as water falls, vortex movements. In any water thus five isotopes of H2O  in widely varying quantities can be found. If the presence of such isotopes is perceptible such waters are called Activated waters. On gross levels changes in pH and surface tension properties are noticed in same water after it has undergone artificial  activation phenomena. )   

इस प्रकार मेघों से भेजा (प्रेषित:) , वरुण द्वारा  पृथ्वी पर अपने वरण के गुण से जल सब पृथ्वी पर उपस्थित पदार्थों का  वरण कर लेता है. तीव्र गति से चलने के कारण जल में विद्युत( इन्द्र)  समाहित हो जाती है. तब इस को आप: नाम मिलता है. 

 

जल मे नाद स्मृति .)  उर्वीरापो न काकुद:ऋ1.8.7 उत्तम जल में प्रकृति के नाद की स्मृति रहती है.  

 ( आधुनिक विज्ञान के अनुसार वर्षा के जल में प्रकृति के ब्रह्म नाद की स्मृति रहती है. और वही जल हमारे भौतिक स्वास्थ्य के लिए अमृत रूप भी है. जब कि उस के विपरीत प्रयोगशाला का  स्वच्छ जल distilled water  नाद ब्रह्म शून्य होता है.  इस का अनुमान यह देख कर लगाया गया कि अन्तरिक्ष से गिरते हुए जितने भी हिम पत्रक snow flakes होते हैं उन सब का स्वरूप भिन्न भिन्न होता है.

भारतीय परम्परा के अनुरूप  जापान में भी नदियों इत्यादि प्राकृतिक जल के सम्मुख पूजा अर्चना की परम्परा रही है. इसी से प्रेरित जापान के वैज्ञानिक  मासारु इमोटो Masaru Emoto  का अनुसंधान का कार्य जग प्रसिद्ध है. मासारु इमोटो  के अनुसंधान को अन्य देशों के वैज्ञानिकों ने भी परखा है, और सहमति जताइ है.  मासारु इमोटो ने सिद्ध किया है  कि पवित्र नदियों के जल में प्रकृति द्वारा ब्रह्नाद की स्मृति रहती है  जिस के द्वारा इस प्राकृतिक जल में  स्थापित  ओषधि गुण होते हैं. पवित्र नदियों के जलों की स्वच्छता बनाए रखने से  उन पवित्र जलों के ओषधि गुणों का संरक्षण सिद्ध होता है.

Japanese Tea ceremony

अभिमंत्रित जल पर आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान

जापान के वैज्ञानिक मासारु इमोटो ने यह भी सिद्ध किया कि पवित्र जल को आरती, पूजा अर्चना से अभिमंत्रित कर के उस में स्थापित प्रकृतिक नाद ब्रह्म को अधिक उन्नत किया जा सकता है.  यह भी पाया गया कि भावनाओं पवित्र विचारों, पूजा, अर्चना, उपासना,  मधुर संगीत ध्वनि से भी  जल अभिमंत्रित होता है. दुष्विचारों, दुष्ट भावनाओं,कटु भाषा, स्वर लय विहीन संगीत ध्वनि से जल अभिमंत्रि नहीं होता. सफल अभिमंत्रण का प्रभाव जल मे स्थापित नाद ध्वनि  की आकृतियों द्वारा परखा जाता है. चाय पीने से पूर्व भी जापानी Tea Ceremony  की  परम्परा इसी संदर्भ में होती है.

  पवित्र गंगामैया के तट पर आरती पूजा अर्चना का इसी लिए हमारी संस्कृति में विषेश महत्व बताया गया है. आयुर्वेद के विशेषज्ञ भी ओषधियों को प्रभाव युक्त बनाने  हेतु अभिमंत्रणा के  विशेष मंत्रों का प्रयोग करते हैं .

 Emoto’s Water Experiment: The Power of Thoughts

Emoto’s Water Experiment: The Power of Thoughts

Through the 1990′s, Dr. Masaru Emoto performed a series of experiments observing the physical effect of words, prayers, music and environment on the crystalline structure of water. Emoto hired photographers to take pictures of water after being exposed to the different variables and subsequently frozen so that they would form crystalline structures. The results were nothing short of remarkable..

For example:

Water Before Prayer Water After Prayer

http://www.life-enthusiast.com/twilight/emoto/fujiwara_before.jpghttp://www.life-enthusiast.com/twilight/emoto/fujiwara_prayer.jpg

Biwako Lake (polluted) Shimanto River (clean)

http://www.life-enthusiast.com/twilight/emoto/biwako_lake.jpghttp://www.life-enthusiast.com/twilight/emoto/shimanto_river.jpg

After observing these miraculous results, Dr. Emoto went on to type out different words, both positive and negative in nature, and taped them to containers full of water. The results were as follows:

“You make me sick, I will kill you” “Adolph Hitler”

http://www.life-enthusiast.com/twilight/emoto/make_me_sick.jpghttp://www.life-enthusiast.com/twilight/emoto/hitler.jpg

“Thank you” “Love and Appreciation”

http://www.life-enthusiast.com/twilight/emoto/thank_you.jpghttp://www.life-enthusiast.com/twilight/emoto/love.jpg

As you can tell, the water stamped with positive words is far more symmetrical and aesthetically pleasing than that stamped with dark, negative phrases. If you are reading this article on this particular website, you probably already knew that positive and negative thinking have a major impact on the surrounding environment. That concept is relatively easy to grasp, but this extremely tangible evidence of it is astounding. If the words and thoughts that come out of us have this effect on water crystals, it’s amazing to think of what kind of effect they have on the people and events that come into our lives.

Oh and by the way, the average human body is 60% water. Ponder that one a while…

Some may say that this could be the work of biased photographers or biased photo selection by Emoto himself. However, Emoto dispelled this accusation in an interview during which he stated:

“This is one of the more difficult areas to clarify. However, from continuing these experiments we have come to the conclusion that the water is reacting to the actual words. For example, for our trip to Europe we tried using the words “thank you” and “you fool” in German. The people on our team who took the actual photographs of the water crystals did not understand the German for “you fool”, and yet we were able to obtain exactly the same kind of results in the different crystal formations based on the words used.”

Once a certain vibration is introduced to the water, how long does the water “remember” that crystalline structure?

“This will be different depending on the original structure of the water itself. Tap water will lose its memory quickly. We refer to the crystalline structure of water as “clusters.” The smaller the clusters, the longer the water will retain its memory. If there is too much space between the clusters, other information could easily infiltrate this space, making it hard for the clusters to hold the integrity of the information. Other micro-organisms could also enter this space. A tight bonding structure is best for maintaining the integrity of information.”

What kind of words would create smaller clusters and what kind of words would create larger clusters?

“Slang words like “you fool” destroy clusters. You would not see any crystals in these cases. Negative phrases and words create large clusters or will not form clusters, and positive, beautiful words and phrases create small, tight clusters.”

 

 

            

                                                  Figure 1 Masaru Emoto works

 

 Fig. 2 Distilled water image

 

                   प्राकृतिक नाद ब्रह्म प्रेरित और शुभ अभिमंत्रित जल की आकृतियां            

Fig. 3 Modified by prayers- Good thoughts are similar to natural patterns of Snow Flakes

  

        

यह  आकृतियां प्राकृतिम ब्रह्मनाद और प्रयोग शाला के स्वच्छ जल को अभिमन्तृत करने पश्चात प्राकृतिक ब्रह्मनाद गुण युक्त जल की पुन: स्थापना सिद्ध करती हैं

पवित्र जल में ब्रह्मनाद की स्मृति उस जल के हिमकण water crystal  की आकृत से देखी जाती है.

 प्रयोग शाला का स्वच्छ जल Distilled Water बिना सुंदर आकृति के नादब्रह्म गुण विहीन होता है. और स्वास्थ्य प्रदक नही होता(यह सब  चित्र मासारु इमोटो के वैज्ञानिक परीक्षणो से साभार लिए गए हैं.)

यही विषय ऋग्वेद में इस प्रकार  से पाया जाता है.

 Potential & Kinetic energy of Water

 अपकामं स्यन्दमाना अवीवरत वो हि कं 

 इन्द्रो वः शक्तिभिर्देवीस्तस्माद्वार्नाम वो हितं  ||AV3.13.3

(अपकाम:) नीचे जाने  की कामना (स्यन्दमान:) बहते हुए  (इंद्र व: शक्तिभि:) विद्युत और शक्ति  के कारण (व: अवीवरत) तुम्हारा वरण किया. इस कारण जल का नाम वार्‌ हुवा.

Taking advantage of the potential energy in water due to its head and when made to flow to lower levels Electricity and mechanical power is obtained.

 

Pumped Storage of Water

 एकः वो देवोऽप्यतिष्ठत्स्यन्दमाना यथावशं 

उदानिषुर्महीरिति तस्मादुदकं उच्यते  । ।AV3.13.4

Intelligent persons can exercise control of water to raise it  to great heights (by pumping)

बुद्धिमान लोग जल को वश में कर के ऊंचाइ पर स्थापित करते हैं और वह उदक  कहलाता है.  

 

 आपो भद्रा घृतं इदाप आसन्नग्नीषोमौ बिभ्रत्याप इत्ताः 

 तीव्रो रसो मधुपृचां अरंगम आ मा प्राणेन सह वर्चसा गमेत् । ।AV3.13.5

आप: कहलाने वाले जल वे उत्तम जल हैं जो सब का कल्याण करने वाले होते हैं. पौष्टिकता प्रदान करने के कारण ऐसे जल घृत जैसे हैं, अग्नि में घृत की आहुति उत्तम जल बन जाती है. ऊर्जा और उत्तम मानसिकता प्रदान करने वाले जल मधु मिश्रित तृप्ति प्रद उग्रता  से प्राण और बल प्रदान करते हैं .

 

 आदित्पश्याम्युत वा शृणोम्या मा घोषो गच्छति वाङ्मासां 

 मन्ये भेजानो अमृतस्य तर्हि हिरण्यवर्णा अतृपं यदा वः  । ।AV3.13.6

नदियों मे चलते हुए जलों की ध्वनि से सुन के अभिमंत्रित  जल स्वर्ण जैसी   चमक लिए अमृत जल का आभास होता है.

 

इदं व आपो हृदयं अयं वत्स ऋतावरीः 

इहेत्थं एत शक्वरीर्यत्रेदं वेशयामि वः  । ।AV3.13.7

इन  नदियों से खोदी हुइ छोटी नहरें मानों नदी रूपि गौ के बछड़े हैं.  हे शक्तिशाली नदियों इन छोटी नहरों   को  भी  अपने ही प्रकार शक्ती  दो.              

जलाष विषय

ॠग 164 देवता- मरुत: ऋषि- नोधा गोतम: नोधः- नोधा ऋषि- Rishi who covered/adopted the multidiscipline Knowledge नवधा  to give many Ved Mantras

वृष्णे शर्घाय सुमखाय वेधसे नोध:सुवृक्तिं प्रभरा मरुद्भय:।

अपो धीरो मनसा सुहस्त्यो गिर: समञ्जे विदथेष्वा भुव:।।ऋ1. उस 64.।.

वृष्णे- वीर्यवते  - to be empowered शर्घाय- गणाय-   for the larger welfare also means by mechanical work/force सुऽमखाय - सुपूजनीयाय- to earn respect/recognition of all मेधसे- मेधाविने- for and by the intellectual सुऽवृक्तिम्- सुष्ठ्वाकर्षकम्-to render the topic very desirable प्रभर- अर्पय - make available मरुत्‌ऽभ्यः - मरुद्भ्य- at the nano/microbial levels अपः- अपः- to waters न-इव- like for example these धीरः- प्रशान्तः –peaceful मनसा- मन सा -from heart सऽहस्त्य- कर्म कुशलः- by/manual /handy skills/techniques गिरः-स्तुतीः- prayers/virtuous thoughts समञ्जे - सम् अञ्जे- I arrange / decorate विदथेषु -यज्ञेषु- for community welfare activities आऽभुवः-सप्रभावाः- to be made effective/empowered.  

(Masaru Emoto of Japan has succeeded in proving that when clean pure water is offered music , prayers and good thoughts, the water gets altered physically. Japanese like Indians also have a tradition of singing and praying before water bodies lakes, rivers, and preserved the sanctity of their holy water like our Ganges.

Emoto has taken beautiful pictures of crystals of such blessed water-as shown above -, which we in India call abhimantrit waters. This memory phenomenon seems to be caused by response of the Maruts the Micro nano level particles/organisms in  water like the rain water. These phenomena have since been validated in laboratories in Austria and other countries)

Rig Vedic Rishi, seems to be pointing to the same phenomenon

( शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये | शं योरभि स्रवन्तु न: || ऋ10.9.6 –साम 33, अथर्व 19.105, यजु 36.12. पवित्र मंत्र का दैनिक संध्या में महत्व और चारों वेदों में इस मंत्र की पुनरक्ति “आप:”  के महत्व का ही निर्देशन है)

आप: की मानव स्वास्थ्य इत्यादि ओषधि  गुणों का का पर्याप्त वर्णन ऋग्वेद सूक्त 10.9 में मिलता है.

 Water Science in Vedas RV10.9

1.Source of Energy

आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन |
महेरणाय चक्षसे || ऋ10.9.1, अथर्व 1.5.1

Water has the potential to provide with energy to bring beauty to this world .Let us not deplete its energy by exploiting it.

हे जलों क्योंकि आप सुखों के उत्पादक हो, ऊर्जा के साधनों से  बलशाली बना कर  महान रमणीय जावन के लिए जल की सामर्थ्य को क्षीण मत करो.

2. Nutritional Value
यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः |
उशतीरिवमातरः || ऋ10.9.2,अथर्व 1.5.2

Most important contents in water provide nutrition like that provided by mother to newly born.

तुम्हारा जो अतिकल्याण कारी रस है हमें उस से तृप्त करो, जैसे माता अपनी संतान को करती है.

3. Living Water
तस्मा अरं गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ |
आपोजनयथा च नः ||ऋ10.9.3, अथर्व 1.5.3

Hidden contents in living water enhance human Vitality/ Fertility.

आप में जो चेतन तत्व है उस के द्वारा हमारी जनन शक्ति को पुष्ट करो.

4. Divine Qualities of Water
शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये |
शं योरभि सरवन्तु नः || ऋ10.9.4, अथर्व 1.6.1

Divine qualities of waters endow us with peace and prosperity. Cure us of our ailments and protect us from diseases.

दिव्य गुणों वाले जल हमारी सुख समृद्धि के साधन प्रदान करें. हमारे रोगों को नष्ट करें और भविष्य मे सम्भावित रोगोंसे सुरक्षा प्रदान करें.

5. Water is Medicine
ईशाना वार्याणां कषयन्तीश्चर्षणीनाम |
अपोयाचामि भेषजम || ऋ10.9.5, अथर्व 1.5.4

Water provides cure for many diseases. Let us be familiar with its significance.

जलों की रोग निवारण शक्ति की हमें जानकारी प्राप्त हो.

6. Electro chemical nature of Water
अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा |
अग्निं चविश्वशम्भुवम ||ऋ10.9.6 अथर्व 1.6.2

Som –Research informs that waters have cures for all diseases, and also the energy that can provide all the comforts.

जलों मे सब रोगों की ओषधी स्थित है. और जलों में ही सब सुख प्रदानकरने वाली ऊर्जा शक्ति  भी स्थित है.

7. Let us learn about these attributes of water   
आपः पृणीत भेषजं वरूथं तन्वे मम |
ज्योक चसूर्यं दृशे || ऋ10.9.7, अथर्व 1.6.3

Waters have the ability to provide immunity from diseases to ensure long life.

जलों वह रोग निरोधक शक्ति है जिस से मनुष्य दीर्घायु हो सकता है.

8. On Water Pollution
इदमापः प्र वहत यत किं च दुरितं मयि |
यद्वाहमभिदुद्रोह यद व शेप उतानृतम || ऋ10.9.8, AV 7.89.3

The flowing /running water clears by itself  all the pollutants and undesirable dirt that is  added to it by  wrong human behavior.

दुर्बुद्धि से हम ने जो भी मल इत्यादि से जलों का प्रदूषन किया है उसे जल का बहाव सुधार करे

 
9. आपो अद्यान्वचारिषं रसेन समगस्महि |
पयस्वानग्ना गहि तं मा सं सृज वर्चसा ||ऋ10.9.9

By increasing energy content of water (pasteurizing, irradiation, exposure to solar radiations etc.) water gets purified.

अग्नि तत्व स्थापित  कर जल के प्रदूषनकारी तत्वों को जलों में के दूर करें.

Activated Water in Veda

Activated Water.

अपां फेनेन नमुचे: शिरऽइन्द्राsदवर्त्तय:। विश्वा यदजय: स्पृध:।।यजु 19.71 ( based on Maharshi Dayanad’s Yajurved Bhashya, it is understood that अपां फेनेन means  (अपाम्‌) जलों की (फेनेन) वृद्धि . This is a very modern scientific concept that talks about extending the liquids .

Activated Water. इस प्रकार इस वेद मंत्र का अभिप्राय इस प्रकार होता है. इन्द्र  एक विजयी पुरुष जलों की वृद्धि कर के उन में परस्पर स्पर्धा करते हुए (नमुचि) रोगाणु शत्रुओं के सिर काट कर विश्व में उत्कृष्टता को प्राप्त करते हैं. Living Water Activated Water.

अपां फेनेन नमुचे: शिरऽइन्द्राsदवर्त्तय:। विश्वा यदजय: स्पृध:।।यजु 19.71 ( based on Maharshi Dayanads Yajurved Bhashya, it is understood that अपां फेनेन means  (अपाम्‌) जलों की (फेनेन) वृद्धि . This is a very modern scientific concept that talks about extending the liquids .

Activated Water. इस प्रकार इस वेद मंत्र का अभिप्राय इस प्रकार होता है. इन्द्र  एक विजयी पुरुष जलों की वृद्धि कर के उन में परस्पर स्पर्धा करते हुए (नमुचि) रोगाणु शत्रुओं के सिर काट कर विश्व में उत्कृष्टता को प्राप्त करते हैं.

AV19.69  Water-ऋषि: -ब्रह्मा, देवता- आप:

1.जीवा स्थ जीव्यासं सर्वं आयुर्जीव्यासं  । ।AV19.69.1

Waters that have are living waters. I pray to them to bless me with a long life.

जल में चैतन्य तत्व है. मुझे भी चैतन्य जल  दीर्घायु प्रदान करें

 

2.उपजीवा स्थोप जीव्यासं सर्वं आयुर्जीव्यासं  । । AV19.69.2

Living Waters enrich life of all things in their contact for a happy living. I pray that for water to bless me with a long life.

चैतन्य जल अपने सम्पर्क द्वारा सब पदार्थों को  गुणवत्ता प्रदान करते हैं. मुझे भी चैतन्य जल  द्वारा दीर्घायु प्राप्त हो.

 

3.संजीवा स्थ सं जीव्यासं सर्वं आयुर्जीव्यासं  । । AV19.69.3

Living Waters are providers of  all things required for a happy living. I pray that for water to bless me with a long life.

चैतन्य जल सब सुखदायक पदार्थों के निर्माता होते हैं. मुझे भी चैतन्य जल  दीर्घायु प्रदान करें

4.जीवला स्थ जीव्यासं सर्वं आयुर्जीव्यासं  । । AV19.69.4

Living  Waters are providers of excellent life. I pray that for water to bless me with a long life.

चैतन्य जल सुख समृद्ध जीवन प्रदान करते हैं. मुझे भी चैतन्य जल  दीर्घायु प्रदान करें

AV 6.24

ऋषि: -शन्ताति= जो शान्ति प्रदान करता है,  देवता: -  आप: ,  अथर्व 6.24

1.हिमवत:  प्र स्रवन्ति सिन्धौ समह संगम: |

आपो ह मह्यं तद्‌ देवीर्ददन्‌ हृद्योतभेषजम्‌ || अथर्व 6.24.1

आप: =जल, हिमवत: प्रस्रवन्ति = हिमाच्छादित पर्वतों से बहते हैं. और , अह= निश्चय से , सिन्धौ= समुद्र में, सङ्ग्म: = इन का एकत्र मेल हो जाता है. तत्‌ =ये, देवी:  आप:= दिव्य गुणयुक्त जल ,=निश्चय से,मह्यम्‌= मेरे लिए, हृद्योतभेषजम्‌ ददन्‌  = हृदय में उत्पन्न रोगों की ओषधी प्रदान करता है.  

 ( इस प्रकार के जल को अपना ओषध रूप बनाए रखने के लिए बंद –Dams इत्यादि की जल के प्रवाह को रुकावट नहीं होनी चाहिये.रूस के वैज्ञानिकों ने अनुसंधान से पाया है कि बहते जल की सिंचाइ द्वारा कृषि उत्पादन, बांध इत्यादि की रुकावट के जल से 10 से 15% अधिक होती है Biophysics of water) 

2.यन्मे  अक्ष्योरादिद्योत पार्ष्ण्यो:  प्रपदोश्च यत्‌ |

आपस्तत्‌ सर्वे निष्करन्‌ भिषजां सुभिषक्तमा: || अथर्व 6.24.2

यत्‌= जो रोग, मे= मेरी , अक्ष्यो: = आंखों को, पार्ष्ण्यो प्रपदोश्च आदिद्योत = और

पैर की एड़ियों, अगले भाग पंजों इत्यादि में जलन जैसी दिखता है , तत्‌ सर्वम्‌ = उन सब  व्याधियों को, निष्करन्‌ = नष्ट करने वाले  करने  वाले, भिषजां सुभिषक्तमा:= उपचार करने वाले सर्वोत्तम वैद्य हो. (आयुर्वेद के अनुसार हर प्रकार की जलन का कारण शरीर में अग्नि तत्व प्रधान होना है, जिस का निष्करण शुद्ध जल की शीतलता से ही होता है.)   

3. सिन्धुपत्नी:  सिन्धुराज्ञी: सर्वा स नद्य स्थन |

दत्त नस्तस्य भेषजं तेना वो भुनजामहे || अथर्व 6.24.3.

सिन्धुपत्नी: =अपने निरंतर प्रवाह का पालन करने वाली समुद्र की पत्नी रूप , सिन्धुराज्ञी: = विशाल जल प्रवाह से शोभायमान- सदाबहार, ever fresh refreshing, या: सर्वा: नद्य: स्थन = जो विशाल नदियां हैं , ever flowing vast river bodies, न:= हम मनुष्यों के लिए , दत्त नस्तस्य भेषजं तेना वो भुनजामहे= उस ओषधि (रूप जल का) उपयोग करें .  ( गङ्गा जैसे जल को पवित्र और ओषधि रूप मानना इसी प्रकार वेद मंत्र मे इन्गित  है.)

Activated water in organic farming

According to Atharv Veda

2.यत्प्रेषिता वरुणेनाच्छीभं समवल्गत | तदाप्नोदिन्द्रो वो यतीस्तस्मादापो अनु ष्ठन || AV3.13.2

इस प्रकार पृथ्वी पर आ कर भूमि के आवरण पर आच्छादित समस्त पदार्थो Minerals का वरण करते हुए शीघ्रता से चलते हुए हे जलो तुम में स्वप्रेरित कार्य करने का  इन्द्र जैसा सामर्थ्य स्थापित हो जाता है. तब तुम आप: (आप्नोति- प्राप्नोति)  नाम से जाने जाते हो.

(आधुनिक विज्ञान उर्वरक पूरित जल को भौतिक कार्यों  द्वारा स्वसामर्थ्य के प्रभाव शाली गुण स्थापित करता है. इस विषय को  Water activation कहा जाता है. Dr Rudolph Steiner के बायोडयनेमिक उर्वरक को  गौ माता की सींग से बने  प्रयोग में जल को activate किया जाता है. यह प्रक्रिया कृत्रिम रूप से जल में  Vortex भंवर जैसी क्रिया करने से होती है. प्राकृतिक रूप से जब पवित्र नदियो का जल अपने प्रवाह  में भूमि के सब खनिजों का वरण कर लेता है, उस के पश्चात प्रपात और भंवर जैसी प्राकृतिक क्रियाओं से उस जल मेवनस्पतियों को औषधि तत्व से पोषित करने का  उत्तम गुण स्थापित रहता है. इसी को आधुनिक organic agriculture में बायोडयनेमिक और कोम्पोस्ट टी बनाने की विधियों में प्रयोग किया जाता है.  भारतीय परम्परा मे बीजामृत और जीवमृत को भी activated संचारित जल से बना कर और अधिक प्रभाव शाली बनाया जा सकता है. इस विषय पर भरतीय कृषि वैज्ञानिको को अनुसंधान करना चाहिए.

John Wilkes ने 1970 के दशक में प्राकृतिक जल की नदियों मे प्रपातों और भंवर इत्यादि को समझने का प्रयत्न किया और वैज्ञानिक आधार पर इन प्राकृतिक कृयाओं को कृत्रिम रूप से जल की गुणवत्ता बड़ा ने के सफल प्रयास किए. इन के आधार पर अनेक उपकरण उपलब्ध हो चले हैं. इन के बारे में यहां दिए गए चित्रों से जानकारी देने का प्रयत्न किया गया है.

 

Outdoor artificial   reactivated water and organic fertilizer brew production methods

 

 

          Fig. 4 Natural water flow activators    Fig. 5cascading flow forms               Fig.  6 individual form

                       Industrial  scale for reactivating organic fertilizing brews like Beejamri and Jeewamrit

 

                      

         

Figure 7 votrex water activation                 Figure 8 industrial vortex brewer       Figure 9 vortex in brew

 

वारि (Hydropower)प्रपात गुण

3.अपकामं स्यन्दमाना अवीवरत वो हि कम्‌ | इन्द्रो व: शक्तिभिर्देवीस्तस्माद्वार्नाम वो हितम्‌ || AV 3.13.3

बिना कामना के बहते हुए जो शक्ति जलों में स्थापित रहती,उस के प्राकृति बहाव को रोक कर उस से और भी इंद्र जैसी सामर्थ्य प्राप्त होती है ( यहां जल से Hydroelectric बिजली और भौतिक mechanical power ऊर्जा प्राप्त करने के संकेत हैं) . सब के हितों को वरण करने से तुम वा: वारि भी कहलाए.

(इस स्थान पर नदियों के बहाव को रोक कर बांध बना कर उन की शक्ति को जल

प्रपात द्वारा नीचे गिरा कर विविध  व्यवहारों में प्रयोग करने का उपदेश है.)

 

उदक (प्रपात के विपरीत दिशा में  ऊपर उठने के गुण)

4.एको वो देवोSप्यतिष्ठत्स्यन्दमाना यथावशम्‌ | उदानिषुर्महीरिति तस्मादुदकमुच्यते || AV3.13.4

एक विद्वान जलों में ऊपर उठने-उठाने की शक्ति का प्रयोग कत्रता है, और जल से बड़े बड़े पदार्थों को ऊपर  उठा देता है. Hydraulic press में भी जल का इसी प्रकार से प्रयोग होता है.  इसी प्रकार पृथ्वी से जल को सूर्य देवता अपने ताप से ऊपर उठा कर (मेघ द्वारा वर्षा) कराते हैं. इस कारण जलों को उदक नाम भी मिला.

Feed Activated Water to Cows.

5.आपो भद्रा घृतमिदाप आसन्नग्नीषोमौ बिभ्रत्याप इत्ता: | तीव्रो रसो मधुपृचामरंगम आ मा प्राणेनसह वर्चसा गमेत्‌ || AV3.13.5

जब आप: जैसा कल्याणकारी जल गौएं पीती हैं तब उन के दुग्ध का पान करने से प्राण शक्ति और ओज Aura- मुख मंडल पर आभा  और शरीर में दीप्ति प्राप्त होती है. उन के घृत में अग्नि और सोम स्थापित होते हैं – सौम्य ऊर्जा शक्तिप्राप्त होती है.

इसी विषय पर ऋग्वेद 10.169.1 में “ पीवस्वतीर्जीवधन्या: पिबन्त्ववसाय “ मिलता है, गौ के पीने के लिए ऐसे जल की  व्यवस्था करो   कि जिसे पी कर मनुष्य भी धन्य हों.

6.आदित्पश्याम्युत वा शृणोभ्या मा घोषो गच्छति वाङ्मासाम्‌ | मन्ये भेजानो अमृतस्य तर्हि हिरण्यवर्णा अतृपं यदा व: || AV 3.13.6

ऐसे जलों का पान करने से आंखों की देखने की, कानों की सुनने और मुख से वाणी में सौम्यता और उग्रता प्राप्त होती है, जैसे मानो कि प्रकाश के सुनहरी गुणों से युक्त  सौने के समान चमकने सदैव  तृप्त करने वाले अमृत रूपी जल प्राप्त हो रहे हैं.

7.इदं व आपो हृदयमयं वत्स ऋतावरी: | इहेथ्मेत शक्वरीर्यत्रेदं वेशयामि व: || AV3.13.7

Waters harbor in their body like their children. O waters full of great potentials move through various paths and processes devised for to provide great bounties to human life.

 

 (Marine lives such as Phytoplankton Krill etc. that give rise to Zooplankton that form the diet of marine life such as fish frogs etc., Frogs and Fish etc. Modern science also confirms that specific vegetative marine crop can digest specific heavy metals from the polluted waters. These are called energy crops. (Marine vegetation in industry is known to be the main source of Magnesium metal.  Marine vegetation-Phytoplankton and Zooplankton feed on the pollutants for water to get purified and provide great benefits for health and nutrition.)

(This has reference to importance of microbial life in waters for health and vitality).

 जल जिन के गर्भ में संतान की तरह अनेक जीव पलते हैं , उत्तम जीवनी शक्ति  के दायक होते हैं .

(आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी जल में सूक्ष्म जीवाणु जल की स्वच्छता ,स्वास्थ्य और कृषी के लिए अत्यंत महत्व रखते हैं.)

How to Use Natural Action Structured Water to Neutralize Toxins

http://youtu.be/fNPkIZES-fI

 

 Why Ganga Water is sacred for Hindus
It's easy to mix up Viruses and Bacteria since compared to us, both are very small. Bacteria, given the proper nutrients, can grow and reproduce on their own. Viruses cannot "live" or reproduce without getting inside some living cell, whether it's a plant, animal, or bacteria. And compared to viruses, bacteria are huge . A bacteriophage is a virus that looks like an alien bug with multiple legs. The bacteriophage attaches to the surface of the much larger bacteria say Escherichia coli (E. coli) and once attached, the bacteriophage injects DNA into the bacterium. The DNA instructs the bacterium to produce masses of new viruses. So many are produced, that the E. coli bursts.
Phage-activity in India in 1896 was first noticed by M.E. Hankin and he found a noticed a marked anti-bacterial action in the waters of Indian rivers Ganga and Yamuna against Vibrio Cholorae. If any antibiotics resistant Bacterial infection is to be treated a dip or a drink of the Ganga water will solve the problem. Flowing rivers are self cleaning with the help of sunlight. Presently the common properties like rivers have become carriers of industrial and human sewage for which we should blame our lack of environmental knowledge.

Bacteria resistant to most or all available antibiotics are causing increasingly serious problems, raising widespread fears of returning to a pre-antibiotic era of untreatable infections and epidemics. Despite intensive work by drug companies, no new classes of antibiotics have been found in the last 30 years. The emergence of these antibiotic-resistant bacterial strains has forced researchers to explore alternative antibacterial therapies, such as the ability of bacterial viruses (bacteriophages) to treat bacterial infections.
This activity destroyed cholera bacteria in culture. M.E. Hankin demonstrated that it could pass through fine porcelain filters and was destroyed by boiling. He suggested that this activity might be responsible for restricting the cholera outbreak among the people that consumed the river water. At the beginning of the 20th century, Frederick Twort from England, and Felix d'Herelle from Canada, working at the Pasteur Institute in Paris, reported isolating similar filterable entities capable of destroying bacterial cultures. It was d'Herelle who named these ultra microbes, "Bacteriophages" (bacteria eaters) and pioneered the use of phages for treating Shigella dysentery in rural France.
When d'Herelle was asked to investigate the outbreak of dysentery, which was afflicting soldiers engaged in fighting World War I, he quickly found that the dysentery was caused by the bacteria called Shigella. He cultured the bacteria to study their growth and noticed that sometimes, clear areas could be seen on plates of bacteria. He recognized the significance of the clear areas (plaques). He realized that something was killing the bacteria and he wondered if he could use whatever it was as a treatment to cure the dysentery. So, d'Herelle started monitoring an individual patient carefully. Each day, he took samples of the man's feces and filtered them through a porcelain filter to remove any bacteria. He mixed samples of filtrate with bacterial cells and spread them on agar plates. Initially he saw nothing but on the fourth day he started to see plaques. He now performed a direct test, he recovered the material from a plaque and mixed it with a flask containing a growing culture of bacteria. The next morning he noticed that the culture which the night before had been very turbid with the presence of bacteria, was now perfectly clear.
There exist two classifications of bacteriophages: lytic and lysogenic. All references to bacteriophages for therapeutic uses are to lytic bacteriophages (lysogenic bacteriophages are not useful for therapeutic purposes). T4 bacteriophage is an assembly of protein components and DNA. The head is protein membrane, shaped like a kind of prolate icosahedron with 30 facets and filled with viral DNA or RNA. It is attached by a collar (and neck) to a tail consisting of hollow core surrounded by a contractile sheath and based on a spiked end plate to which six fibers are attached. The spikes and fibers affix the phage to a bacterial surface, by binding to specific receptors. The sheath contracts, driving the core through the bacterial cell wall, and the phage injects its nucleic acid (DNA or RNA) into the bacterium. The bacteriophage DNA redirects the bacterial cell's biosynthetic machinery to produce hundreds of new bacteriophages which, when released, destroy the bacterial cell. The newly produced bacteriophages invade other bacteria in the vicinity and the process is repeated about every thirty minutes until all of the bacteria are eliminated. At this time, the bacteriophages, being non-living entities, self-eliminate because the bacteria that they require as hosts no longer exist.
Felix d'Herelle was highly successful in treating dysentery in rural France, cholera in India and later cured diseases like typhoid fever, bubonic plague, wound infections, avian typhosis and hemorrhagic septicemia of the buffalo using phage therapy, where as other early attempts to treat infections with phage gave mixed results. At the time that nature of bacteriophages was not clearly known and in the 1940’s, further research into the use of bacteriophages to treat bacterial infections was stopped in the United States. However, research into the antibacterial use of bacteriophages still continued in the former Soviet Union, with some success in treating bacterial infections. Only recently, has this technology again gained popularity in the United States, due to emergence of many antibiotic-resistant strains of bacteria.
Bacteriophage therapy has many advantages over antibiotics. Bacteriophages are highly specific, where as antibiotics kill all bacteria without specificity, beneficial bacteria (e.g. in the intestinal tract) that perform crucial functions for the human body are also affected by antibiotics and harmful pathogens can then grow more easily. Secondary infections like the Pseudomonas species or Clostridium dificile develop in this way and cause severe diarrhea and colon infections. Bacteriophages can specifically target the harmful bacterium, eliminate it, and leave the beneficial bacteria intact. Bacteriophages cannot cause disease to humans, animals, or plants; they can only cause harm to bacteria. Furthermore, for almost all known bacterial species there exists one or more bacteriophages specific to that species
Due to bacteriophage's exponential rate of self-replication, usually a small dose is sufficient for curing a bacterial infection. Bacteriophages can penetrate deep into an infection and destroy all of the particular bacterium growing there. Antibiotics, on the other hand, often encounter difficulty penetrating deep bacterial infections and delivery of the antibiotic to all of the bacteria then becomes a significant obstacle. This obstacle rarely exists in the case of bacteriophages. In addition to being self-replicating, bacteriophages are also self-limiting. When all of the bacteria are infected with bacteriophages, their numbers start to decline and the number of bacteriophages also decreases. Bacteriophages require their specific bacterium in order to exist and, in the absence of that specific bacterium, they are eliminated rapidly. Bacteriophage preparations are highly stable and can be dispersed in any media, they can be stored for long periods, and have a low cost of production.
The bacteriophage therapy is currently being used to treat post-burn bacterial infections, which are a major problem for those recovering from the trauma of third-degree burns. Within 24 hours, burn patients can start suffering from opportunistic bacterial attacks. As an alternative to treating post-burn bacterial infections by antibiotics, bacteriophages have been in use in certain parts of the world, such as at Tbilisi in Georgia and in Poland, and this approach has now been more widely recognized. Results have shown that bacteriophage therapy has an 80% success rate against Enterococcus infections and up to 90% against Staphylococcus aureus, Pseudomonas aeruginosa, Escherichia coli and Klebsiella pneumoniae. Pseudomonas aeruginosa is the most common post-burn infection, and it is known to be notoriously resistant to a variety of antibiotics. For the most effective treatment of post-burn infections, a cocktail of bacteriophages is sprayed at the site of burns, this will reduce the chance of the bacteria developing resistance against the different bacteriophages. Bacteriophage solutions or aerosols can also be used to treat the surfaces and instruments in operating rooms as well as the skin of the surgical patient (prior to surgery).
In addition to treating human illnesses, bacterio-phage are being used to treat illnesses in livestock. A bacteriophage which is highly active and rapidly lytic in vitro and which attaches to the K1 capsule antigens of bacteremic strains of E. coli has been very effective in preventing and treating septicemia and cerebritis or meningitis in chickens. The bacteriophage treatment was shown to be more effective than multiple doses of antibiotic. Bacteriophages were found in all tissues examined (muscle, blood, spleen, liver, and brain) within 5 minutes of their injection into the muscle. Experiments were conducted to see if this therapy would cure calves, which were suffering from diarrhoea caused by toxin-producing E. coli. Calves that responded to bacteriophage treatment had lower numbers of the bacteria in their gastrointestinal tracts and continued to excrete bacteriophage until all of the toxic E. coli had disappeared. Another practical use of bacteriophages is for bacterial identification through a process called phage typing, which is the use of patterns of sensitivity to a specific battery of bacteriophages to precisely identify microbial strains. This technique takes advantage of the fine specificity of many bacteriophages for their hosts and is still in common use around the world.
Enzymes from bacteriophages have also been isolated and shown antibacterial qualities. One such enzyme is PlyG, which is a type of bacteriophage lysin. The lysins, produced by the bacteriophage, translocate from the bacterial cytoplasm into the cell-wall matrix, where they rapidly hydrolyze covalent bonds essential for peptidoglycan integrity, causing bacterial lysis and concomitant release of progeny bacteriophages. PlyG is produced by the bacteriophage gamma, which infects Bacillus anthracis, the bacterium that causes anthrax. Isolated PlyG has been shown to kill B. anthracis in vitro and in vivo. The spores of B. anthracis are resistant to PlyG-induced lysis. However, the spores can be triggered to germinate by adding a solution of L-alanine to them; once they germinate PlyG in the same solution can cause lysis. The lytic specificity of PlyG has also been exploited as part of a rapid method for the identification of B. anthracis .
The sophisticated ability of bacteriophages to destroy their bacterial hosts can also have a very negative commercial impact; phage contaminants occasionally spread havoc and financial disaster for the various fermentation industries that depend on bacteria, such as cheese production and fermentative synthesis of chemicals. None the less, the use of bacteriophages may soon replace current antibiotics in the treatment of bacterial infections.

आप: जल तत्व के विषय पर निम्न 7 अथर्व 10.5.15 से 21 मंत्रों  की ध्रुव पंक्ति है ;

  यो व आपोऽपां ऽप्स्वन्तर्यजुष्यो देवयजनः ।

(आप:) हे आप्त- अपवादहीन,अभ्यस्त, तर्क संगत, बुद्धिमान ,सत्याधारित  प्रजा जनो – (व:) तुम्हारा (य:) जो   (अपाम्‌) प्रजासम्बंधी – समस्त समाज से सम्बंधित (यजुष्य देवयजन:) ऋषियों द्वारा निर्देषित यज्ञादि  कार्य करने की ( अप्सु अन्त:) तुम्हारे हृदय में संचार करनेवाले तत्वों की   प्रेरणा |    इदं तं अति सृजामि तं माभ्यवनिक्षि  (तम्‌) के द्वारा  (इदम्‌) तुम्हारे शरीर और मन को (अतिसृजामि) समर्पित करता हूं (तम्‌ मा) वह तुम्हारे  (अभि अवनिक्षि) आचरण को पवित्र करे |  तेन तं अभ्यतिसृजामो योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः  । (तेन तम्‌) उस पवित्र आचरण से  (अभि अतिसृजाम:) अपने आंतरिक शत्रुओं पर विजयी हो कर (योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः) जो हम से द्वेष करते हैं और हम जिन से द्वेष करते हैं उन पर विजय पाएं | तं वधेयं तं स्तृषीयानेन ब्रह्मणानेन कर्मणानया मेन्या | (अनेन ब्रह्मणा) इस वेद ज्ञान (अनेन कर्मणा) पर आधारित कर्मकाण्ड (अनया मेन्या) के वज्र द्वारा  (तं वधेयं ) उन शत्रुओं का वध करें (तं स्तृषीय) उन का विनाश करें |

 

हे आप्त- अपवादहीन,अभ्यस्त, तर्क संगत, बुद्धिमान ,सत्याधारित  प्रजा जनो उसे  ऋषियों द्वारा निर्देषित यज्ञादि  कार्य करने की तुम्हारे हृदय में संचार करनेवाले तत्वों से  प्रेरणा द्वारा | उस के प्रति तुम्हारे शरीर और मन को समर्पित करता हूं | तुम्हारे  आचरण को पवित्र करे | उस पवित्र आचरण से  अपने आंतरिक शत्रुओं पर विजयी हो कर जो हम से द्वेष करते हैं और हम जिन से द्वेष करते हैं उन पर विजय पाएं | इस वेद ज्ञान पर आधारित कर्मकाण्ड के वज्र द्वारा   उन शत्रुओं का वध करें उन का विनाश करें |  

 

भाग:- उत्तम सेवनीय उपलब्धियां और दायित्व

 

15.  यो व आपोऽपां भागोऽप्स्वन्तर्यजुष्यो देवयजनः । इदं तं अति सृजामि तं माभ्यवनिक्षि 

 तेन तं अभ्यतिसृजामो योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः  । तं वधेयं तं स्तृषीयानेन ब्रह्मणानेन कर्मणानया मेन्या  । । AV10.5.15

भाग:- उत्तम सेवनीय उपल्ब्धियां और दायित्व

हे आप्त- अपवादहीन,अभ्यस्त, तर्क संगत, बुद्धिमान ,सत्याधारित  प्रजा जनो तुम्हारे जो उत्तम सेवनीय उपल्ब्धियां और दायित्व हैं उन्हें   ऋषियों द्वारा निर्देषित यज्ञादि  कार्य करने की तुम्हारे हृदय में संचार करने वाले तत्वों से  प्रेरणा द्वारा | उस के प्रति तुम्हारे शरीर और मन को समर्पित करता हूं | सद्‌बुद्धि तुम्हारे  आचरण को पवित्र करे | उस पवित्र आचरण से  अपने आंतरिक शत्रुओं पर विजयी हो कर जो हम से द्वेष करते हैं और हम जिन से द्वेष करते हैं उन पर विजय पाएं | इस वेद ज्ञान पर आधारित कर्मकाण्ड के वज्र द्वारा   उन शत्रुओं का वध करें उन का विनाश करें |  

Hinduism is a way of life -Traditions

हिंदु धर्म की परम्परा हमारी मान्यताएं ,रीति रिवाज , जीवन शैलि का रहस्य

 

उर्मि: - सब की मानसिकता परिवर्तन के लिए  आंदोलित  कर देने वाली शक्ति  ,  जैसे नदी या  समुद्र के जल के छा  जाने की लहर ,   जैसे सूर्य देवता के प्रकाश की पृथ्वी को आच्छादित कर देना  ,बुद्ध द्वारा वाममार्ग  हिन्सा के विरुद्ध , आदि शंकर द्वारा बौद्ध धर्म पर , गांधीजी द्वारा भारत छोड़ो , बाबा रामदेव द्वारा  योग की लहर,  2014 के लोक सभा के चुनाव  में  नरेंद्र मोदी जी की  लहर

16. यो व आपोऽपां ऊर्मिरप्स्वन्तर्यजुष्यो देवयजनः । इदं तं अति सृजामि तं माभ्यवनिक्षि 

 तेन तं अभ्यतिसृजामो योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः  । तं वधेयं तं स्तृषीयानेन ब्रह्मणानेन कर्मणानया मेन्या  । । AV10.5.16

हे आप्त- प्रजा जनो जो अपवादविहीन,अभ्यस्त, तर्क संगत, बुद्धिमान ,सत्याधारित   जो   ऋषियों द्वारा निर्देषित यज्ञादि  कार्य करने की तुम्हारे हृदय में संचार करने वाले तत्वों से  प्रेरणा द्वारा सब की मानसिकता परिवर्तनकेलिए आंदोलित  कर देने वाली शक्ति ,  जैसे नदी या  समुद्र के जल के सब ओर छा  जाने वाली ,   जैसे सूर्य देवता के प्रकाश की पृथ्वी को आच्छादित कर देने  वाली   उत्तम  प्रेरणाएं हैं  उन  के प्रति तुम्हारे शरीर और मन को समर्पित करता हूं | सद्‌बुद्धि तुम्हारे  आचरण को पवित्र करे | उस पवित्र आचरण से  अपने आंतरिक शत्रुओं पर विजयी हो कर जो हम से द्वेष करते हैं और हम जिन से द्वेष करते हैं उन पर विजय पाएं | इस वेद ज्ञान पर आधारित कर्मकाण्ड के वज्र द्वारा   उन शत्रुओं का वध करें उन का विनाश करें |  

 

17.  वत्स:  - All young ones human and animals &  Children, students in society.

समाज के भविष्य बालक,शिक्षार्थी, युवा वर्ग, गौओं इत्यादि की संतान सब

यो व आपोऽपां वत्सो ऽप्स्वन्तर्यजुष्यो देवयजनः । इदं तं अति सृजामि तं माभ्यवनिक्षि 

 तेन तं अभ्यतिसृजामो योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः  । तं वधेयं तं स्तृषीयानेन ब्रह्मणानेन कर्मणानया मेन्या  । । AV10.5.17

हे आप्त- प्रजा जनो जो अपवादहीन,अभ्यस्त, तर्क संगत, बुद्धिमान ,सत्याधारित   जो   ऋषियों द्वारा निर्देषित यज्ञादि  कार्य करने की तुम्हारे हृदय में संचार करने वाले तत्वों से  प्रेरणा द्वारा समाज के भविष्य ब्रह्मचारी बालक,शिक्षार्थी, युवा वर्ग, गौओं इत्यादि की संतान सब के निर्माण के प्रति  तुम्हारे शरीर और मन  सब साधनों को समर्पित करता हूं | सद्‌बुद्धि तुम्हारे  आचरण को पवित्र करे | उस पवित्र आचरण से  अपने आंतरिक शत्रुओं पर विजयी हो कर जो हम से द्वेष करते हैं और हम जिन से द्वेष करते हैं उन पर विजय पाएं | इस वेद ज्ञान पर आधारित कर्मकाण्ड के वज्र द्वारा   उन शत्रुओं का वध करें उन का विनाश करें |  

 

18. वृषभ: - प्रजनन की उत्पादक क्षमता के पुंसकता संरक्षण 

यो व आपोऽपां वृषभो ऽप्स्वन्तर्यजुष्यो देवयजनः । इदं तं अति सृजामि तं माभ्यवनिक्षि 

 तेन तं अभ्यतिसृजामो योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः    तं वधेयं तं स्तृषीयानेन ब्रह्मणानेन कर्मणानया मेन्या  । । AV10.5.18

हे आप्त- प्रजा जनो जो अपवादहीन,अभ्यस्त, तर्क संगत, बुद्धिमान ,सत्याधारित   जो   ऋषियों द्वारा निर्देषित यज्ञादि  कार्य करने की तुम्हारे हृदय में संचार करने वाले तत्वों से  प्रेरणा द्वारा प्रजनन से समाज के भविष्य  के लिए  पुंसकता के संरक्षण  के प्रति  तुम्हारे शरीर और मन  सब साधनों को समर्पित करता हूं | सद्‌बुद्धि तुम्हारे  आचरण को पवित्र करे | उस पवित्र आचरण से  अपने आंतरिक शत्रुओं पर विजयी हो कर जो हम से द्वेष करते हैं और हम जिन से द्वेष करते हैं उन पर विजय पाएं | इस वेद ज्ञान पर आधारित कर्मकाण्ड के वज्र द्वारा   उन शत्रुओं का वध करें उन का विनाश करें |  

 

19. हिरण्यगर्भ: - गर्भ में स्थापित जैसे मनुष्यों और पशुओं के गर्भ मे पल रहे जीव और पृथ्वी के गर्भ में बहुमूल्य निधियां  जैसे स्वर्ण, रत्नादि वस्तुएं  

यो व आपोऽपां हिरण्यगर्भो ऽप्स्वन्तर्यजुष्यो देवयजनः । इदं तं अति सृजामि तं माभ्यवनिक्षि  । तेन तं अभ्यतिसृजामो योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः  । तं वधेयं तं स्तृषीयानेन ब्रह्मणानेन कर्मणानया मेन्या  । । AV10.5.19

हे आप्त- प्रजा जनो जो अपवादहीन,अभ्यस्त, तर्क संगत, बुद्धिमान ,सत्याधारित   जो   ऋषियों द्वारा निर्देषित यज्ञादि  कार्य करने की तुम्हारे हृदय में संचार करने वाले तत्वों से  प्रेरणा द्वारा हिरण्यगर्भ: - गर्भ में स्थापित जैसे मनुष्यों और पशुओं  के गर्भ मे पल रहे जीव और पृथ्वी के गर्भ में बहुमूल्य निधियां  जैसे स्वर्ण, रत्नादि वस्तुओं के   संरक्षण और भविष्य में उन से समाज निर्माण में उन की उपादेयता  के प्रति  तुम्हारे शरीर और मन  सब साधनों को समर्पित करता हूं | सद्‌बुद्धि तुम्हारे  आचरण को पवित्र करे | उस पवित्र आचरण से  अपने आंतरिक शत्रुओं पर विजयी हो कर जो हम से द्वेष करते हैं और हम जिन से द्वेष करते हैं उन पर विजय पाएं | इस वेद ज्ञान पर आधारित कर्मकाण्ड के वज्र द्वारा   उन शत्रुओं का वध करें उन का विनाश करें |  

 

20.  अश्मा पृश्निर्दिव्यो – समस्त पर्यावरण – पर्वत,भूमि,आकाश , वायुमंडल

यो व आपोऽपां अश्मा पृश्निर्दिव्यो ऽप्स्वन्तर्यजुष्यो देवयजनः ।इदं तं अति सृजामि तं माभ्यवनिक्षि  । तेन तं अभ्यतिसृजामो योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः  । तं वधेयं तं स्तृषीयानेन ब्रह्मणानेन कर्मणानया मेन्या  । । AV10.5.20

हे आप्त- प्रजा जनो जो अपवादहीन,अभ्यस्त, तर्क संगत, बुद्धिमान ,सत्याधारित   जो   ऋषियों द्वारा निर्देषित यज्ञादि  कार्य करने की तुम्हारे हृदय में संचार करने वाले तत्वों से  प्रेरणा द्वारा समस्त पर्यावरण – पर्वत,भूमि,आकाश , वायुमंडल के संरक्षण और भविष्य में उन से समाज निर्माण में उन की उपादेयता  के प्रति  तुम्हारे शरीर और मन  सब साधनों को समर्पित करता हूं | सद्‌बुद्धि तुम्हारे  आचरण को पवित्र करे | उस पवित्र आचरण से  अपने आंतरिक शत्रुओं पर विजयी हो कर जो हम से द्वेष करते हैं और हम जिन से द्वेष करते हैं उन पर विजय पाएं | इस वेद ज्ञान पर आधारित कर्मकाण्ड के वज्र द्वारा   उन शत्रुओं का वध करें उन का विनाश करें |  

 

21.  अग्नि: - समस्त यज्ञाग्नि,भौतिक और मानसिक ऊर्जा आत्मबल

 

यो व आपोऽपां अग्नयो ऽप्स्वन्तर्यजुष्यो देवयजनः ।इदं तं अति सृजामि तं माभ्यवनिक्षि 

 तेन तं अभ्यतिसृजामो योऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः  । तं वधेयं तं स्तृषीयानेन ब्रह्मणानेन कर्मणानया मेन्या  । । AV10.5.21 हे आप्त- प्रजा जनो जो अपवादहीन,अभ्यस्त, तर्क संगत, बुद्धिमान ,सत्याधारित   जो   ऋषियों द्वारा निर्देषित यज्ञादि  कार्य करने की तुम्हारे हृदय में संचार करने वाले तत्वों से  प्रेरणा द्वारा समस्त यज्ञाग्नि ,भौतिक और मानसिक ऊर्जा के संरक्षण वर्तमान और भविष्य में उन से समाज निर्माण में उन की उपादेयता  के प्रति  तुम्हारे शरीर और मन  सब साधनों को समर्पित करता हूं | सद्‌बुद्धि तुम्हारे  आचरण को पवित्र करे | उस पवित्र आचरण से  अपने आंतरिक शत्रुओं पर विजयी हो कर जो हम से द्वेष करते हैं और हम जिन से द्वेष करते हैं उन पर विजय पाएं | इस वेद ज्ञान पर आधारित कर्मकाण्ड के वज्र द्वारा   उन शत्रुओं का वध करें उन का विनाश करें |

Water in Yajurved interpreted byShatpath Brahman;

Y13.53.1अपां त्वेमन्त्सादयामि- 

श प:- श प:- तुझे जलों के मार्ग में रखता हूं | जलों का मार्ग है वायु| जब वायु चलता

 है तो जल इधर उधर बहता है | इस (पहली ईंट) को वह वायु में स्थापित करता है |

कां 46

व्यावहारिक अर्थ:-तुम्हारे प्राणों की रक्षा  के लिए वायु में जल  ( आर्द्रता के रूप में )

स्थापित किया है | प्राण के रूप में वह जीवन की प्रथम इष्टिका है | 

Humidity in air is essential for  your breath. This form of water is the

 first building block of life.

Y13.53.2 अपां त्वोद्मन्सादयामि

श प:- तुझे जलों के मार्ग में रखता हूं | जलों की बाढ़ है ओषधियां | जब जल बढ़ते तो

ओषधियां उत्पन्न होती हैं | (इस( ईंट) को वह ओषधियों में स्थापित करता है | कां 47

व्यावहारिक अर्थ:- ‌ जल ही तुम्हारे कल्याण के लिए औषधियों का वाहन है | इस

 प्रकार जल ही जीवन  का एक आधार है |

Water is a universal solvent. Almost every mineral

 apparently  not  soluble in wáter  also get disolved in wáter to

various degrees. Water is the primary constituent of  fluids 

for sustaining life.

Y13.53.3 अपां त्वा भस्मन्त्सादयामि

श प:- तुझे जलों की भस्म में रखता हूं | जलों की भस्म है अभ्र बादल | बादल में उस

को रखताहै | कां 48

 

व्यावहारिक अर्थ:- तुम्हारे कल्याण के लिए भस्मों को मेघों के जल मे स्थापित किया है

| प्रत्येक नगरिक द्वारा अग्निहोत्र यज्ञादि करने से हवि इत्यादि आहुतियों के भस्मादि

 तत्व अंतरिक्ष में जा  कर वर्षा के जल में स्थापितहो कर औषधीय गुण प्रदान करते हैं

|  वैदिक जीवन व्यवस्था में जब सब पञ्चमहायज्ञ करेंगे तब पर्यावरण के प्रदूषण की

 तो कल्पना भी नही की जा सकती |  आधुनिक जीवन के  पर्यावरण के प्रदूषण से तो

वर्षा आकाश में दूषित हानिकारक तत्व स्थापित हो जाते हैं , जो वर्षा के जल के साथ

पृथ्वी पर आ कर अत्यंत हानिकारक acid rain स्वास्थ्य और वनस्पति का विनाश

करती है जिस से सब वन वृक्ष इत्यादि नष्ट होने लगते हैं | )

When every  individual performs Agnihotra regularly, the products

of medicinal offerings the ashes on combustion  rise up in to the

 atmosphere and get absorbed in falling rain water. Thus rain water

is healthy and medicinal for our welfare. As a result of atmospheric

pollution highly toxins substances and acids rise in to the

atmosphere. These harmful substances are picked by rain water.

Thus rain water in polluted atmosphere is also rendered  harmful.

Phenomenon of Acid Rain is very common experience in highly

industrialsed  developed nations. 

Y13.53.4 अपां त्वा ज्योतिषि सादयामि-

श प:- तुझे जलों की ज्योति में रखता हूं | जलों की ज्योति है बिजुली | इस प्रकार

बिजली में उसको रखता है | कां 49

व्यावहारिक अर्थ:- तुम्हारे कल्याण के लिए जलों में ज्योति विद्युत चेतना स्थापित

की है |

.

Water is made alive for your welfare. ( Modern science has

 confirmed that water is a living organism

Y13.53.5 अपां त्वायने सादयामि

श प:- जलों के घर में तुझ को रखता हूं | पृथ्वी जलों का घर है |क्योन्कि इस में जल रहते हैं |  उसी को इस में रखता है | इन जिन पांच रूपोंसे जल  निकला था उनमें वह इन पांच मंत्रांशों को पढ कर उस को रखता है | इस प्रकार वह इन रूपों को पूर्ण कर देता है | कां 50

व्यावहारिक अर्थ:-पृथ्वी में जलों को  तुम्हारे कल्याण के लिए स्थापित किया है |

नदियों , जल स्रोतों, कूप , बावड़ी , कृषि के लिए भूमि मे जल तत्व को इन पांच रूपों

में को स्थापित किया

Water is established on Earth in rivers, streams, underground

wells, as moisture and for irrigation in agriculture in five forms  for

          your welfare.

Y13.53.6 अर्णवे त्वा सदने सादयामि

श प:- अर्णव कहते हैं प्राण को | अर्थात्‌ तुझ को प्राण में रखता हूं |  कां 51

             व्यावहारिक अर्थ:-जलों को प्राणों के घर इस जीवित शरीर में  तुम्हारे कल्याण के

             लिए स्थापित किया है | प्राण द्वारा शरीर को जीवित रखने के लिए भिन्न भिन्न पांच

            स्थानो जैसे आंख ,नासिका, मुख, आंतरिक शरीर और मूत्रेंद्रिय  मे जल तत्व को

            स्थापित किया|

For living, Nature has established various liquids/fluids for proper

functioning  of living body by  breathing. Breathing function

essentially depends  on presence of adequate moisture in all

locations that are involved in this function .

 

Y13.53.7 समुद्रे त्वा सदने सादयामि-

श प:-समुद्र का अर्थ है मन | मन रूपी समुद्र से देवों ने कुदाले से त्रयी विद्या को खोद

निकाला | इस मंत्र कास यही प्रतिपादन करता है |कां  

व्यावहारिक अर्थ:- मनरूपी समुद्र में जलों को मन के पसीजने के

लिए  तुम्हारे कल्याण के लिए स्थापित किया है | मनुष्य का भला सन्वेदन शील होने

  पर दिल भर आने में  है |   भावनाओं के जागृत होने पर आंसु निकल आते हैं |

Arousal of empathy and sentiments in brings tears to eyes.

 

Y13.53.8 सरिरे त्वा सदने सादयामि-

श प:- सरिर है वाणी | उस को वाणी में रखता है| कां53

व्यावहारिक अर्थ:-वाणी के लिए जल की आर्द्रता आवश्यक है |

On physical  anatomical level wáter in throat facilitates speech. Dry

throat becomes hoarse. 

Y13.53.9 अपां त्वा क्षये सादयामि

श प:-जलों का क्षय या घर चक्षु है | क्योंकि जल उसी में रहता है | उस को आंख में

 रखता है | कां 54  

व्यावहारिक अर्थ:-चक्षुओं  में जल तुम्हारे  कल्याण के लिए

स्थापित किया है |

Liquids/Fluids are  provided in the eyes for their proper functioning.

Y13.53.10 अपांत्वा सधिषि सादयामि

श प:-जलों का अन्त  कान हैं |उन को कान में रखता है | जो जल इन पांच रूपों  से

गया था , उस को वह उसी  में फिर रखता है | और वह उन के उन रूपों को पूरा कर

देता है | कां55  

व्यावहारिक अर्थ:- श्रोत्रों को सुन पाने के लिए जलों को स्थापित किया है |

 वृद्धावस्था में अकसर कानों से सुनना कम होने लगता है | इस का कारण शरीर मे जल तत्व की कमी मुख्य रूप  से होता है |

Hearing function in human body is a hydraulic system based on function through many body fluids. Liquids/Fluids are provided for proper functioning of hearing faculty .

{THE PROCESS OF "HEARING"

Our ears work to transform the acoustic stimulus that travels down our ear canals into the type of neural code that our brains can recognize, process and understand. It all starts at the tympanic membrane where the physical attributes of the sound are transformed into a mechanical stimulus. This mechanical code is transmitted through the ossicular chain to the stapes footplate where the code is again transformed this time into hydraulic energy for transmission through the fluid-filled cochlea. Finally, when the cochlea's hair cells are stimulated by the fluid waves a neuro-chemical event takes place which excites the nerves of hearing. The physical characteristics of the original acoustic signal are preserved at every energy change along the way until this code becomes one that the central auditory pathways can direct to the temporal lobe of the brain for recognition and processing.}

Y13.53.11 पां त्वा सदने सादयामि-

श प:- जलों का सदन द्यौ है | इस लिए उसे द्यौ में रखता है | कां 56

व्यावहारिक अर्थ:- जलों को मस्तिष्क मे तुम्हारे कल्याण के लिए

स्थापित किया है |

Hydration of Brain is essential for its proper functioning.

Y13.53.12 अपां त्वा सधस्थे सादयामि

श प:- जलों का (सधस्थ) घर अंतरिक्षहै | वह उस को अंतरिक्ष में रखता है | कां57

 व्यावहारिक अर्थ:-सम्पूर्ण शरीर को ठीक से संचालित करने के लिए जलों को स्थापित

किया है | स्वस्थ रहनेके लिए पर्याप्त मात्रा में जल ग्रहण करना अतिआवश्यक है | इस

प्रकार इन 12 शिक्षाओं से यजुर्वेद ने इस शरीर के  कल्याण पथ पर चलने के लिए जल

 तत्व का भिन्न भिन्न रूप से महत्व समझाया है  |

In the above 12 remarks it is thus explained how proper hydration

of human body is significant for good physical and mental health of

mankind .

  

Y13.53.13 अपां त्वा योनौ सादयामि

श प:- समुद्र जल की योनी है | समुद्र में वह उस को रखता है | कां58

व्यावहारिक अर्थ:-संतति के समुद्र में संतान की उत्पत्ति के लिए स्त्री की योनी में जल

 (आर्द्रता) और गर्भाषय मे जल रखता है | कृषि द्वारा  अन्न की उत्पत्ति के लिए

समुद्र वर्षा की योनी है  | उस में जल को रखता है |

For procreation from seed  in a womb, as well as germination of

 seed in soil, wáter plays a very significant role. This is equally

applicable to humans as well asagriculture. Soil is the womb for

agriculture.

 

Y13.53.14 अपां त्वा पुरीषे सादयामि

 श प:-जलों का पुरीष रेत (बालू) है | इस प्रकार वह् रेत में उस को रखता है | कां 59

व्यावहारिक अर्थ:- (पुरीष) के बड़े  विस्तृत  अर्थ मिलते हैं भौतिक रूप से जीवों

 द्वारा विसर्जित मल और रेतस दोनों पुरीष हैं |   दोनों में कल्याण के लिए जल तत्व

पर निर्भर हैं |

Excreta of species and sperms of species (humans in this context)

 both depend on proper hydration for appropriate functioning

of the systems.

Y13.53.15 पां त्वा पाथसि सादयामि।

श प:-जलों का स्थान (पायस्‌) अन्न है | इस को वह अन्न में रखता है | जो जल उस के इन पांच त्रूपों से निकल भागा था ,उस को वह फिर उस में स्थाओइत करता है | उस के इन पांच रूपों को पूरा करता है |  कां60  

व्यावहारिक अर्थ:-अन्न जो मनुष्य का रक्षक है, उस में जल तत्व अनिवार्य होने से

स्थापित किया है|

Food that sustains the human depend on hydration , thus Nature

 has established wáter in human food. 

 

Music in welfare

गायत्री के लिए राग  भैरवी से मस्तिष्क को गम्भीर और एकाग्र चित्त का लक्ष्य बनाया जाता है  और  राग बिलावल ठाट से  सुख संतोष का लक्ष्य होता है |

 

3.Affects of different Ragas on water

 

गायत्रेण त्वा छन्दसा सादयामि

त्रैष्टुभेन त्वा छन्दसा सादयामि

जागतेन त्वा छन्दसा सादयामि

अनुष्टुभेन त्वा छन्दसा सादयामि

पाङ्क्तेन त्वा छन्दसा सादयामि

श प :- उस के इन छंदों से जो जल निकल गयाथा ,उस को वह इन छ्न्दों द्वारा उस में

रखता है | इस के द्वारा इन छंदों को पूरा करता है |

व्यावहारिक अर्थ:-

Y13.53.16 :-

गायत्रेण त्वा छन्दसा सादयामि

जागतेन त्वा छन्दसा सादयामि

 

श प :- उस के इन छंदों से जो जल निकल गयाथा ,उस को वह इन छ्न्दों द्वारा उस में

रखता है | इस के द्वारा इन छंदों को पूरा करता है |

व्यावहारिक अर्थ:- {1.गायत्री और जगती छंद के बारे में ( तांड्य,२१.२७.६) के अनुसार तेजो ब्रह्मवर्चसं गायत्र्या ब्राह्मणोवरून्धे विश राजाग्वं जगत्या प्रविशतिजब  गुरु शिष्य को शिक्षा देता है तो उस की वाणी का एक स्वरूप होता है | इसे गायत्री छंद से बता कर ब्राह्मण वृत्ति से जोड़ा गया बताया है | और जगति छंद को वैश्य वृत्ति से जुड़ा बताया | अध्यापक और व्यापारी दोनों शिष्यऔर ग्राहक को  शिक्षा और व्यापार की सामग्री को ग्रहण करने में  उन  दोनों का ही लाभ दिखाया जाता हे | tejo brahmavarchas gaayatrya braahmano varoondhe vish raaja gvan jagatya pravishati ( taandy,21.27.6) गायत्री छंद द्वारा  सब भूतों को वाणी से दर्शा कर सुरक्षा और जगती छंद  सर्वप्रेरक गति देने वाली काल शक्ति है } शिक्षकों और व्यापारिओं  द्वारा वाणी द्वारा प्रभावशाली  वक्तव्य  देने के लिए गायत्रीऔर जगती छंद से प्रेरणा लेनी चाहिए |  

त्रैष्टुभेन त्वा छन्दसा सादयामि

श प :- उस के इन छंदों से जो जल निकल गयाथा ,उस को वह इन छ्न्दों द्वारा उस में

रखता है | इस के द्वारा इन छंदों को पूरा करता है |

व्यावहारिक अर्थ:- { .इसी प्रकार शासनाधिकारी वर्ग जब आदेश देते है तब उन की वाणी में क्षत्रिय भाव चाहिए| (एतरेय, ७ ४.५.१)​के अनुसार अथैन्द्रो देवतया क्षत्त्रियो भवति, त्रैष्टुभश्छ्न्दसाathaindro devataya kshattriyo bhavati, traishtubhashchhndasa (Aitarey 7 4.5.1)” Rag Kalyaan – Bhakti Ras. और जनहित में कल्याणकारी शासनादेश के पालन के लिए देश प्रेम की भावनाओं को जागृत करने के लिए राग परम्परा में कल्याण ठाट के भक्ति रस के राग प्रचलन पाते हैं | }  

पाङ्क्तेन त्वा छन्दसा सादयामि

श प :- उस के इन छंदों से जो जल निकल गया था ,उस को वह इन छ्न्दों द्वारा उस में

रखता है | इस के द्वारा इन छंदों को पूरा करता है |

 

व्यावहारिक अर्थ:- (पञ्चभूपर्यावरण- पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश, सारे

समाज- पाञ्चजन्य ब्रहण, क्षत्रिय,वैश्य और निषाद,मन की पञ्चतयी क्लिष्टाक्लिष्ट

वृत्तियों क्लेश, कर्म, विपाक, आशय और मोक्ष का पांचों को ठीक रखने की प्रबल

कामना का द्योतक-शरीर को स्वस्थ सुंदर बनाने के लिए पांचों  कर्मेंद्रियों  को उत्तम

           कर्म में लगाना, प्रयत्न करना | यह आसावरी राग से सम्बंधित बनता है} 

     

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तमेताभिर्देवताभिरनुसमसर्पत् । सवित्रा प्रसवित्रा सरस्वत्या वाचा त्वष्ट्रा रूपैः

पूष्णः पशुभिरिन्द्रेणास्मे बृहस्पतिना ब्रह्मणा वरुणेनौजसाग्निना तेजसा सोमेन

राज्ञा विष्णुनैव दशम्या देवतयान्वविन्दत् ५.४.५.[२]

 

प :-यजमान ने उस भर्ग का देवताओं के साथ पीछा किया :-

प्रेरक सविता के साथ, वाणी सरस्वति के साथ, रूप वाले त्वष्टा के साथ, पूषा अर्थात पशुओं के साथ, राजा सोम के साथ, ओज वाले वरुण के साथ, तेज युक्त अग्नि के साथ, विष्णु के साथ | परंतु केवल दश में देवता विष्णु की सहायता से ही उस भर्ग को प्राप्त किया | ५.४.५.[२]

व्यावहारिक अर्थ:- जल का  एक बार प्रयोग करने से उस जल की गुणवत्ता क्षीण होने लगती है जैसे  भारतीय परम्परा में एक दूसरे का झूटा जल अथवा भोजन ग्रहण करना अच्छा नहीं माना जाता | जो जल प्रदूषित हो जाते हैं उन्हें  स्वच्छ करने की क्षमता केवल विष्णु देवता में ही है | जिस में विष्णु द्वारा जलों को सूर्य के ताप से प्रकृति के विरुद्ध पृथिवी से ऊपर उठा कर मेघ बना कर पुन: स्वच्छ पवित्र बना कर पृथिवी पर वर्षा द्वारा लाया जाता है | इसी प्रकार विष्णु के कृत्य का उदाहरण यह भी है,  “ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपति कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषव:”|इस प्रकार भूमि में सिंचाइ के जल को वीरुधों लताओं बेलों की जड़ों द्वारा स्वच्छ कर के वनस्पतियों मे पहुंचाता है |  

शप:- तद्यदेनमेताभिर्देवताभिरनुसमसर्पत् । तस्मात्संसृपो नामाथ यद्दशमे

ऽहन्प्रसुतो भवति तस्माद्दशपेयोऽथो यद्दश दशैकैकं चमसमनुप्रसृप्ता

भवन्ति तस्माद्वेव दशपेयः शप ५.४.५.[३]

श प :-चूंकि यह इन देवताओं के साथ उसके पीछे चला (समस्पर्त्‌)इसलिए इस यज्ञ का संसर्प नाम हुआ (सम्‌ उपसर्ग+सृप्‌ धातु) और चूंकि दशमें दिन उसका अभिषेक हुआ  इसलिए उसे दशपेय कहते हैं | और चूंकि एकेक चमसे के पीछे दस दस आदमी चलते हैं , इसलिए उसे दशपेय कहते हैं |५.४.५.[३]

 शप;- तदाहुः । दश पितामहान्त्सोमपान्त्सख्याय प्रसर्पेत्तथो हास्य सोमपीथमश्नुते

दशपेयो हीति तद्वै ज्या द्वौ त्रीनित्येव पितामहान्त्सोमपान्विन्दन्ति तस्मादेता एव

देवताः संख्याय प्रसर्पेत् ५.४.५.[४]

प :- कुछ लोगों का कहना है कि इस सोम पीने वाले पितामहों का नाम  लेकर पीछे चले | इसी से सोम पीने के योग्य हो सकेगा |परंतु यह बहुत ज़्यादा है ; क्योंकि दोतीन सोम पीने वाले पितामह ही मिल सकते हैं |  इस लिए इन दस देवताओं का नाम लेकर ही पीछे चले | शप ५.४.५.[४]

 

 

 

 

 

 

शप :- एताभिर्वै देवताभिर्वरुण एतस्य सोमपीथमाश्नुत । तथो एवैष एताभिरेव

देवताभिरेतस्य सोमपीथमश्नुते तस्मादेता एव देवताः संख्याय प्रसर्पेदथ

यदैवैषोदवसानीयेष्टिः संतिष्ठत एतस्याभिषेचनीयस्य| शप ५.४.५.[५]

 इन्हीं (दस) देवताओं  का नाम लेकर वरूण  ने सोमपान किया था| इसी प्रकार (इस दसपेय यज्ञ –एक सोमयाग ) यह भी सोमपान करता है | इसी लिए इन्ही देवताओं के नाम लेकर वह पीछा करे | जब इस अभिषेक की अंतिम इष्टि समाप्तहोने पर आए तब| शप ५.४.५.[५]   

 

 

 

शप :-अथैतानि हवींषि निर्वपति । सावित्रं द्वादशकपालं वाष्टाकपालं वा पुरोडाशं

सविता वै देवानां प्रसविता सवितृप्रसूत एव तद्वरुणोऽनुसमसर्पत्तथो एवैष

एतत्सवितृप्रसूत एवानुसंसर्पति तत्रैकं पुण्डरीकं प्रयच्छति | शप ५.४.५.[६]

इन हवियों को तैयार करता है | सविता के लिए बारह कपालों या आठ कपालों का पुरोडाश | सविता देवताओं का  प्रेरक है | सविता की प्रेरणा से ही वरुण उस समय आगे चला गया था , और इसी प्रकार सविता की प्रेरणा से यह भी आगे चलता है |  यहां पर एक कमल पुष्प अर्पण करता है | शप ५.४.५.[६]