Wednesday, May 23, 2012

On Nutrition


RV6.54 Good Nutrition Follows household Cow

ऋषि: - भारद्वाजो बार्हस्पत्य:- The well wisher Scientist , देवता: - पूषा:- God of Nutrition  

सं पूषन्‌ विदुषा नय यो अञ्जसानुशासति । य एवेदमिति ब्रवत्‌ ॥ ऋ6.54.1

Let us be guided by the best Nutrition Education and learn about best systems to establish good Nutrition amongst us.

समु पूष्णा गमेमहि यो गृहाँअभिशासति।  इम एवेति च ब्रवत् ।। ऋ6.54.2

It is said that Nutrition is very closely linked with the life style of the family in the individual households.

पूष्णश्चक्रं न रिष्यति न कोशोऽव पद्यते ।नो अस्य व्यथते पवि: ॥ ऋ 6.54.3

Best Nutrition strategy is that by which our food does not suffer adulteration, there is no loss of nutrition content and  no external agents are able to cause harm to the nutritious value of the food.



यो अस्मै हविषाविधन्न तं पूषापि मृष्यते। प्रथमो विन्दते वसु ।। ऋ 6.54.4

Those who dedicate themselves to the service of this nutrition strategy, they never suffer on account of any nutritious problems. They become healthy, wealthy and wise .

पूषा गा अन्वेतु न: पूषा रक्षत्वर्वत: । पूषा वाजं सनोतु न: ।। ऋ 6.54.5

Nutrition follows the Cows, and also provides protection to our horses (by providing us with active life style temperaments) and makes one healthy, wealthy and wise.   

पूषन्ननु प्र गा इहि यजमानस्य सुन्वत: । अस्माकं स्तुवतामुत ।। ऋ6.54.6 May Pusha the god of nutrition  thus provide bounties for the Yajman the house holder , the owners of the cows who worship them.

माकिर्नेशन्माकीं रिषन्माकीं सं शारि केवटे ।अथारिष्टाभिरा गहि ।। ऋ6.54.7

Cows may not get hurt by falling in to water wells or get in to deep

Waters. And return to us after grazing without physical injury.


शृण्वन्तं पूषणं वयमिर्यमनष्टवेदसम् । ईशानं राय ईमहे ।। ऋ 6.54.8

Right policies and opinions have to be heard and implemented for the society to be blessed with health and wealth.



पूषन् तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन । स्तोतारस्त इह स्मसि।। ऋ6.54.9

By following the correct policies on Nutrition we may never suffer (any diseases). We must follow correct policies about Nutrition and enable good education about it.
परि पूषा परस्ताध्दस्तं दधातु दक्षिणम् । पुनर्नो नष्टमाजतु ।। ऋ 6.54.10

Administration must intervene strongly and with compassion to make up for any lapses in follow up of good Nutrition strategies



 


Saturday, May 19, 2012

Agnihotra Yagyas for Cows




गौकर्मकांड: गो यज्ञ विषय


( गौएं कहीं भी हों, घर पर  अथवा  गोचर में )


वैदिक परम्परा में मानव जीवनोपयोगी उपदेश वेदों के आधार पर गृह्यसूत्रों  में भिन्न भिन्न संस्कार  में पाए जाते हैं. गौ को परिवार में एक सम्माननीय स्थान दिया जाता था. इस लिए गोपालन से सम्बंधित विषय  भी गृह्यसूत्रों और विधान ग्रन्थों  में मिलता है. इसी के आधार पर निम्न संकलन करने का प्रयास है.



वेदों के और गृह सूत्रों के अनुसार गौशाला में प्रातः सायं दैनिक यज्ञ का गौओं के लिए विशेष महत्व  बताया है, गोशाला के कुशल प्रबन्धन में इस प्रकार दोनों समय अग्निहोत्र का महत्व  ऋग्वेद के निम्न मंत्र मे विषेश रूप से पठनीय है।



RV 1-73-6-7

ऋषिः पराशर  अग्निर्देवता:

ऋतस्यहि धेनवो वावशानाः  स्मदूग्धी पीपयन्त द्युभक्ताः

परावतः सुमतिं भिक्षमाणा  वि सिन्धवः समया सस्रुरद्रिम्‌।। 1-73-6

त्वे अग्ने सुमति भिक्षमाणा  दिवि श्रवो दधिरे यज्ञियासः

नक्ता चक्रुरुषसा विरूपे कृष्णं वर्णमरुणं सं धुः  ।। 1-73-7

गौओं के मध्य में  ( गोशाला में ) प्रातः सायं अग्निहोत्र के महत्व को इन  ऋग्वेद के मंत्रों से गौओं में  चमत्कारी प्रभाव  दर्शाया गया है।

ऋतस्य- गर्भादान यज्ञ -(यास्क  की निरुक्त आधारित व्याख्या) के प्रति धेनुओं में वावशाना- तीव्र प्रदर्शित रुचि, अर्थात बार बार  गर्भ धारण करने की क्षमता, स्मदूग्धी - समान मात्रासे एक ब्यांत  मे दूध देने की क्षमता, पीपयन्त -पान करने के योग्य दुग्ध, द्युभ्क्ताः -खुली धूप मे आनन्द से विचरण करने वाली, परावतः दूर तक जाने वाली अर्थात अनेक बार प्रसव करने वाली, सुमति भिक्षमाणा  ( अग्निहोत्र के) सुन्दर ज्ञान और प्रबन्धन से प्रेरित  होती है।

 Yagyas performed twice morning evening in Goshalas, while making offerings in to sacred fires and praying for enhancement of our virtuous intellect, divide their effects in to two parts i.e. for bright daylight and darkness of nights, and develop in Cows the traits of giving uniform quantities of milk, regularity in their fertility periods, repeated calving, and lovers of sun shine. Thus cows fulfill their functions like rivers emanating from mountains, providing support to community in their journey to finally end in oceans.

In Vedas knowledge on all topics in general, is often found dispersed at various places. That Vedic knowledge is concisely collated and provided as Sanskars/Procedure in the Sutra literature. In this chapter the procedures connected with cows, available in Shraut Sutras & Grihya Sutras are being furnished below:

According to RigVidhaan –ऋग्विधानके अनुसार

(गौयज्ञ / गन्धैरभ्युक्षणं)

1.  यस्तास्तु गोर्गोमयेन गुटिकानां सहस्रश: । हुत्वातां गामवाप्नोति घृतक्तानां हुताशने ॥ ऋग्विधान 2.34

गोमय ( गोबर)की गुटकियां  कंडे बना कर गौ घृत के साथ अग्निहोत्र में सहस्रों आहुति देने से उत्तम गौएं प्राप्त होती हैं. 



He obtains cows by offering thousands of cow dung balls anointed with ghee in to Agnihotra fire.



2.समाधि मनस्तेन विन्दते नैव गुह्यति ।

मयोभूर्वात इति तु गवां स्वत्ययने जपेत्‌ ॥ ऋग्विधान 4.104

यही  विषय पर अग्नि पुराण 259.94 में भी मिलता है;

मयोभूर्वात इत्येद्‌गवां स्वत्ययनं परम्‌ । शाम्बरीमिन्द्रजालं वा मायामेतेन वारयेत्‌ ॥अग्निपुराण 259.94  जपस्यैष विधि : प्रोक्तो हुते ज्ञेयो विशेषत: अग्निपुराण 259.96ब 

इस के अनुसार गौ के मध्य में जिन मन्त्रों के जप का विधान है, जैसे ऋग्वेद10.169 मयोभूर्वात RV10.169 का उन से यज्ञ अग्निहोत्र ही करना चाहिए

मयोभूर्वातो अभि वातूस्रा ऊर्जस्वतीरोषधीरा रिशन्ताम्
पीवस्वतीर्जीवधन्या: पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ ।। 10.169.1

या: सरूपा विरूपा एकरूपा यासामग्निरिष्टया नामानि वेद
या अङ्गिरसस्तपसेह चक्रुस्ताभ्य: पर्जन्य महि शर्म यच्छ ।। 10.169.2

या देवेषु तन्व1मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद
ता अस्मभ्यं पयसा पिन्वमाना: प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीहि ।।ऋ  10.169.3

प्रजापतिर्महयमेता रराणो विश्वैर्देवै: पितृभि: संविदानो
शिवा: सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम ।। 10.169.4

2. आ गावोइती सूक्तेन गोष्ठगा लोकमातरः । उपतिष्ठेद्‌व्रन्तीश्च य इच्छेत्ता सदाक्षयाः ।। ऋग्विधान 2.112.

Whoever wishes always to have everlasting cows the

mothers of the world should worship them with Rig Ved

Sookt 6.28, while they are at home in Goshala in cow pen  or

Roaming about ( in pastures). As per RigVidhan 2-112

सदैव गौ सम्पदा की समृद्धि हेतु  ऋग्वेदके सूक्त 6.28 आ गावो अग्नमुत 

का नित्य पाठ करना चाहिए अथवा यज्ञ अग्निहोत्र करना चाहिए


 Rig Veda Book 6 Hymn 28


ऋ6.28, अथर्व 4.21


same as Atharv 4.21


गौः देवता, ऋषिः भरद्वाजो बार्हस्प्तत्य


2.1.3.1.आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रत्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे |
प्रजावतीः पुरुरूपा इह सयुरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः ||



मेरे गोष्ठ  में  गौएं  आगई हैं  और उन्होंने मेरा कल्याण किया है, इसी प्रकार आगे  भी चर कर वे मेरे इस गोष्ठ में  लौट आया करें. हमें सदैव  आनंदित करती हुइ इस  गोष्ठ में रहें. अनेक बछडे बछियां दे कर और भी नाना प्रकार  से हमारी  समृद्धि  के साधन बनें.



2.1.3.2 इन्द्र यज्वने गृणते च शिक्षत उपेद ददाति न स्वं मुषायति!

भूयो रयिभिदस्य वर्धयन्नभिन्ने ख्ल्ये नि ददाति देवयुम !!



इस गोपालन के  यज्ञ द्वारा  वृषभ  इंद्र के स्वरूप में  अपने लिए कुछ भी ना  छुपाते हुवे (गोपालक यजमान के लिए))  अनेक  कल्याण दायक उत्पाद और शिक्षाप्रद ज्ञान  रूपि धन की बार बार वृद्धि करते हैं. (गोकृषि आधारित) उपलब्धियां कभी  क्षीण नहीं होती.


2.1.3.3 न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति |
देवांश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित ताभिः सचते गोपतिः सह ||ऋ6.28.3अथर्व4.21.3

उसे (गोकृषि से उत्पन्न सम्पन्नता को) कोई चुरा नहीं सकता, धूर्तता से (आंख में धूल झोंकने वाला)  भी उस पर प्रभुत्व नहीं जमा सकता. गौओं  के स्वामी में  इतनी बुद्धि होती है कि किसी प्रलोभन के वश भी वह अपनी सम्पन्नता को छोडना नहीं चाहता.

(यह आधुनिक विकास के नाम पर व्यापारी तथा स्वार्थी वर्ग द्वारा भूमि, गौ इत्यादि का स्वामित्व पाने के लिए धन के प्रलोभन से गोकृषि के स्वामी को अपनी जीवन शैली छुडाने  के प्रसंग में  हैं)
2.1.3 4. न ता अर्वा रेणुककाटो अश्नुते न संस्क्ऋत्रमुप यन्ति ता अभि |
उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यज्वनः || ऋ6.28.4, अथर्व 4.21.4

यह (गोकृषि आजीविका की) मानसिकता संस्कार युक्त , प्रशंसनीय और निर्भयता, आत्मविश्वास से युक्त होती है. इन संस्कारों को कुटिल हृदय वाले, संकीर्ण मानसिकता वाले , स्वार्थी बुद्धि विहीन जन प्राप्त नहीं करते. यह तो गौ के समीप विचरण करने की विशेष उपलब्द्धि है.

 
2.1.3.5. गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छन गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः |
इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामीदधृदा मनसा चिदिन्द्रम ||ऋ6.28.5, अथर्व 4.21.1

गौएं जैसे प्रथम (अपने बछडे के) ऐश्वर्य के लिए दुग्ध प्रदान करती हैं  वैसे ही गौओं द्वारा (दुग्ध और पङ्चगव्य से)  धरती, वाणी, इंद्रियां स्वशरीर प्रकृति पर्यावरण  और यजमान गोपालक परिवार  पोषित हो कर, वश मे रह्कर ऐसे सुशासित होते हैं जैसे इंद्र ही शासन कर रहा हो.

इस प्रकार हे बुद्धिमान जनों गौ स्वयम्‌ में ही  सम्पूर्ण ऐश्वर्य  का साधन इंद्र है.


2.1.3.6.यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदश्रीरं चित कृणुथा सुप्रतीकम |
भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद वो वय उच्यते सभासु ||ऋ6.28.6, अथर्व4.21.6

हे गौओ तुम दुर्बल को हृष्ट पुष्ट बना देती हो, तुम भद्दे को सुडौल बनाती हो, तुम वाणी में मधुरता स्थापित करके घर को  कल्याणकारी  और सुखप्रद  बनाती हो,   तुम्हारे वृद्धिकारक दुग्ध और अन्न का महत्व  सभाओं में  कहा जाता है.
2.1.3.7. प्रजावतीः सूयवसं रिशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः |
मा व स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः || ऋ6.28.7, अथर्व 4.21.7

उत्तम संतान (बछडे बछडियों और गोपालकों  वाली) उत्तम घास वाले प्रदेश मे चमकती हुइ, उत्तम पेयस्थलों में शुद्धजल को पीती हुइ, व्यवस्था स्थापित हो. गौ पर अत्याचार, हिंसा करने वाला , चुराने वाला कोइ न हो. यह समाज और राजा का दायित्व है. 

(भूमण्डल पर राजा रुद्र  का प्रतिनिधि होता है , इस मंत्र में देश की समृद्धि के लिए गोरक्षा  और उत्तम गौसम्वर्धन के लिए राजा के दायित्व का उपदेश है.)
2.1.3.8. उपेदमुपपर्चनमासु गोषूप पृच्यताम्‌ |
उप ऋषभस्य रेतस्युपेन्द्र तव वीर्ये ||ऋ6.28.8

हर क्षेत्र में इंद्र अपना पौरुष इस परम ऐश्वर्य दायक वृषभ से ही प्राप्त करते हैं . पृथ्वी पर, वाणियों मे राजनीति मे हर क्षेत्र में वृषभ  का महत्व सब के ध्यान में रहना चाहिये.

 

3. यस्य नष्टं भवेत्किञ्च द्‌द्रव्यं गोर्द्विपदं धनम्‌ । नस्येद्वाध्वनि यो मोहात्संपूषन्‌ स जपेन्निशि ॥  ऋग्विधान 2.121.

जिस का गोधन, परिवार जन, सम्पत्ति आदि की हानि  हो गयी  हो  वह  सं पूषन  से आरम्भ  होने वाले ऋग्वेद सूक्त 6.54 का रात्रि में जप करें

He whose possessions: a cow, a man, money be lost

should mutter the Rig Ved Sookt 6.54 beginning with सं पूषन्‌

at night .

RV 6.54

सं पूषन्‌ विदुषा नय यो अञ्जसानुशासति । य एवेदमिति ब्रवत्‌ ॥ ऋ6.54.1

समु पूष्णा गमेमहि यो गृहाँअभिशासति।  इम एवेति च ब्रवत् ।। ऋ6.54.2

पूष्णश्चक्रं रिष्यति कोशोऽव पद्यते नो अस्य व्यथते पवि: 6.54.3

यो अस्मै हविषाविधन्न तं पूषापि मृष्यते। प्रथमो विन्दते वसु ।। 6.54.4

पूषा गा अन्वेतु न: पूषा रक्षत्वर्वत: । पूषा वाजं सनोतु न: ।। 6.54.5

पूषन्ननु प्र गा इहि यजमानस्य सुन्वत: अस्माकं स्तुवतामुत ।। 6.54.6

माकिर्नेशन्माकीं रिषन्माकीं सं शारि केवटे ।अथारिष्टाभिरा गहि ।। 6.54.7
शृण्वन्तं पूषणं वयमिर्यमनष्टवेदसम् ईशानं राय ईमहे ।। 6.54.8

पूषन् तव व्रते वयं रिष्येम कदा चन स्तोतारस्त इह स्मसि।। 6.54.9
परि पूषा परस्ताध्दस्तं दधातु दक्षिणम् पुनर्नो नष्टमाजतु ।। 6.54.10



 

4.  मातेति गामुपस्पृश्य जपन्‌ गास्तु समश्नुते । वचोविदमिति त्वेतां जपन्‌ वाचं समश्नुते ॥ ऋग्विधान 2.187

जिन की गोपालन  द्वारा उत्तम गोवंश और गोपसलने के परिणाम स्वरूप उत्तम वाणि की इच्छा  हो वे गौ माता को स्पर्ष करते हुए माता रुद्राणाम, वचो विदम्‌ से आरम्भ होने वाले ऋग्वेद सूक्त 8.101 के 15, 16 मंत्र का जप करें

He who desires good Cows & obtain gracious speech  by grace of cows should while touching the cow,  utter Rigved Sookt 8.101.15-16  beginning with ‘मातारुद्राणाम &  वचोविदम्‌  -  Rigvidhaan 2.187   



RV 8.101.15

 माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट ।। 8.101.15


RV8.101.16



वचोविदं वाचमुदीरयन्ती विश्वाभिर्धीभिरुपतिष्ठमानाम्।

देवीं देवेभ्य: पर्येयुषीं गामा मावृक्त मर्त्यो दभ्रचेता: ।।ऋ 8.101.16