RV10.11 वेद मंत्राधारित यज्ञ से देवत्व प्राप्ति
9आंगिहविर्धानऋषि:- आङ्गि हविर्धान: ।
अग्नि: ।
जगती, 7-9 त्रिष्टुप् ।
वृषा वृष्णे दुदुहे दोहसा दिव: पयांसि यह्वो अदितेरदाभ्य: ।
विश्वं स वेद वरुणोयथा धिया स यज्ञियो यजतु यज्ञियाँ ऋतून ।।10 RV10.11.1,
AV18.1.17
जिस प्रकार भौतिक यज्ञाग्नि से प्रेरित ,आकाश के ऋतुनुसार मेघों के दोहन से यजमान के लिए वर्षा प्राप्त होती है, उसी प्रकार मंत्रों की वेदध्वनि और यज्ञाग्नि से यजमान में वरूण के समस्त दैवत्व के गुण स्थापित होते हैं.
Just as on physical level fire in the Agnihotra
with Ved
Mantras promotes appropriate to
the season, rains for the Yajmaan, so also at mental level the fire in
Agnihotra facilitated by chanting of Ved Mantras, gift the Yajman with Divine
virtues in life, to rise up to the occasion and meet all demands on him.
रपद्गन्धर्वीरप्या च योषणा नदस्य नादे परि पातु मे मन: ।
इष्टस्य मध्ये अदितिर्नि धातु नो भ्राता नो ज्येष्ठ: प्रथमो वि वोचति ।10।|RV10.11.2,AV18.1.19
वेदों के ज्ञान का गायन करने वाली (गंधर्वों) की महिलाओं ने जल के लिए गायन द्वारा स्तुति की. ( महिलाओं द्वारा लोकगीतों में ऋतुनुसार वर्षा इत्यादि के लिए गायन की पद्धति आज भी इसी वैदिक परम्परा का द्योतक है) इसी प्रकार कुल के ज्येष्ठों ने यज्ञाग्नि स्थापित करके ध्यानावस्था
में स्तुति की कि हमारे मन (सद्बुद्धि से प्रेरित कर्मों द्वारा) सदैव सुरक्षा प्रदान करें.
Learned ladies recite Ved Mantra prayers in soulful musical tones seeking grant of nature’s bounties such as rains according to seasons.
सो चिन्नु भद्रा क्षुमती यशस्वत्युषा उवास मनवे स्वर्वती ।
यदीमुशन्तमुशतामनु क्रतुमग्निं होतारं विदथाय जीजनन् ।।10RV10.11.3,AV18.1.20
अध त्यं द्रप्सं विभ्वं विचक्षणं विराभरदिषित: श्येनो अध्वरे ।
यदीं विश: वृणते दस्ममार्या अग्निं होतारमध धीरजायत ।। RV10.11.4, AV18.1.21
द्रप्सं (साधरण दही की लस्सी) a very ordinarily met fluid like butter milk , विभवं when looked in to by concentrating on its important
aspects विचक्षणं brings to light विराभरदिषित: as if the researcher
pulls out of fire, श्येनो as a hawk-eyed
observer taking in his notice
from very high position a total
perception, अध्वरे the
hard intelligent worker.
यदी विशो if ordinary common persons वृणते adopt such strategies of scientific enquiry, दस्मे they आर्या become
virtuous, अग्निं होतरमध by performing
Yajna to get fired in to action, धी: thus Soma true
knowledge in intellect, जायत is born.
(Newton discovered the force of gravity by deep perception
and observation of a very common every day event of an apple falling from a
tree. This is the phenomenon Veda is saying in above Mantra.)
This Som- wisdom is applied in the performance of yajnas
patiently to obtain the results.
सदासि रण्वो यवसेव पुष्यसे होत्राभिरग्ने मनुष: स्वध्वर: ।
विप्रस्य वा यच्छशमान उक्थ्यं वाजं ससवाँ उपयासि भूरिभि: ।। RV10.11.5, AV18.1.22
Just as barley feed is desired for
physical health, so also the desiring wise men know that performance of
Yajnas in fire with Ved Mantras installs virtuous qualities in human
temperament.
जिस प्रकार अन्नदि से भौतिक पुष्टता प्राप्त होती है, इच्छुक विद्वत्
जन जानते हैं कि उसी प्रकार मन्त्र पाठ सहितअग्निहोत्र
से दैविक वृत्तियां स्थापित हो कर आत्म शक्ति से संरक्षण प्राप्त कराती हैं. (उपासना अग्निहोत्र कर्मकाण्ड में देवताओं का आह्वान होता है)
उदीरय पितरा जार आ भगमियक्षति हर्यतो हृत्त इष्यति ।
विवक्ति वह्नि: स्वपस्यते मखस्तविष्यते असुरो वेपते मती ।।
RV10.11.6,AV18.1.23
Just as morning sun dispels the darkness
to show the physical path, so also the Ved Mantras &Agnihotras provide the wisdom to
dispel our ignorance and follow in the traditional wisdom of our elders and
build upon that. (There was great wisdom and experience behind most of the
traditional practices and rituals of our elders. But by ignoring those
practices and improving upon them
जिस प्रकार प्रात:काल का सूर्य रात्रिके अंधकार को भगा कर हृदय से आराधना करने वाले का मार्ग प्रशस्त करता है, उसी प्रकार अग्निहोत्र उपासना हमारे पूर्वजों के ज्ञान द्वारा हमारा मार्ग प्रशस्त करे.
यस्ते अग्ने सुमतिं मर्तो अक्षत् सहस: सूनो अति स प्रशृण्वे ।
इषं दधानो वहमानो अश्वैरा स द्युमाँ अमवान् भूषति द्यून् ।। RV10.11.7, AV18.1.24
Humans (men & women) those who
cultivate Vedic Mantras and Agnihotras in their life style , they are motivated in the direction to
achieve immense bounties of health, strength wealth and fame for all their life
.
जो मनुष्य वेद मन्त्रों यज्ञों को अपने जीवनका अधार बनाते हैं वह प्रभु कृपा से जितेन्द्रिय हो कर सब प्रकार के उत्तम धन, धान्य, आत्मबल, ख्याति और सम्मनित पद प्राप्त करते हैं.
यदग्न एषा समितिर्भवाति देवी देवेषु यजता यजत्र ।
रत्ना च यद्विभजासि स्वधावो भागं नो अत्र वसुमन्तं वीतात् ।। RV10.11.8, AV18.1.26
Persons who cultivate Vedas in their life
style develop a serene, equanimus, sweet temperament. Their voice is heard to
guide all affairs of the society for
growth of prosperity.
ऐसे जन मृदु स्वभाव द्वारा कल्याणकारी वृत्तियों को प्राप्त होते हैं. समाज की हर सभा समिति में उन का आदर सम्मान के साथ योगदान अपेक्षित होता है.
श्रुधी नो अग्ने सदने सधस्थे युक्ष्वा रथममृतस्य द्रवित्नुम् ।
आ नो वह रोदसी देवपुत्रे माकिर्देवानामप भूरिह स्या: ।। RV10.11.9,AV18.1.25
Advice and wisdom of Ved guided persons is
raptly listened in various committees,
that guide the nation to provide society
with warmth and brilliance like sun shine
ऐसे वेद प्रेरित व्यक्तित्व के भाषण को सब सभाओं में सब के हित में ,स्वार्थद्वेष रहित होने के कारण सम्मानके साथ सुना जाता है और सूर्य के तेज के सद्रिश देश तेजस्वी बनता है.