Bounties from Agnihotra
RV10.12
आङ्गिर्हविर्धान:
=अग्नि
का आधान करने वाला ।
अग्नि: ।
त्रिष्टुप् ।
द्यावा ह क्षामा प्रथमे ऋतेनाऽभिश्रावे भवत: सत्यवाचा ।
देवो यन्मर्तान् यजथाय कृण्वन् त्सीदध्दोता प्रत्यङ् स्वमसुं यन् ।।
RV10.12.1, AV18.1.29
(द्यावा
ह क्षामा प्रथमे) सृष्टि के आरम्भ में
(ऋतेन सत्यवाचा) नियमानुसार ( तदैक्षत बहु स्याम प्रजायेय-छा0 6.2 –परमेश्वर ने इच्छा की ‘ मैं नाना रूपों में जगत
में प्रकट होऊं’) तब उस (देवा: ) देवाधिदेव ने (मर्तान)मनुष्यों को (यजथाय )
यज्ञादि कर्म करने की प्रेरणा और शक्ति दे
कर उत्पन्न किया.
In
the beginning when Almighty desired to become many and made this creation, He
empowered the humans with wisdom and ability to perform Agnihotra.
देवो देवान् परिभूर्ऋतेन वहा नो हव्यं प्रथमश्चिकित्वान् ।
धूमकेतु: समिधा भाऋजीको मन्द्रो होता नित्यो वाचा यजीयान् ।।
RV10.12.2, AV18.1.30
(प्रथमाश्चिकित्वान्)
प्रथम तो यथार्थ में, ( धूमकेतु: समिधा भाऋजीको
) समिधाओं द्वारा बुद्धि पूर्वक अग्निहोत्र में हवि से (परिभू:) पर्या वरण की सुरक्षा के लिए ,(वाचा) वाणी द्वारा मंत्रोच्चारसे
(मन्द्रो होता) यज्ञ करने वाले को हर्ष
प्रदान होता है.
Firstly
Fuel, Ghrit and Havi that are offered in to the fire in Agnihotra secure the environment,
secondly chanting of Ved mantras elevate the spirits of the Agnihotra
performer.
स्वावृग्देवस्यामृतं यदी गोरतो जातासो धारयन्त उर्वी ।
विश्वे देवा अनु तत् ते यजुर्गुर्दुहे यदेनी दिव्यं घृतं वा: ।। RV10.12.3, AV 18.1.32
By protecting and serving the cows,
atonement of all trespasses is secured, the entire Earth is enriched and, milk and
ghrit of the cows provide divine bounties on earth.
गौ
वंश की सेवा द्वारा निज पापों का वर्जन समस्त पृथ्वी को देवताओं का अमृत देने वाली
बना लेते हैं, विश्व के समस्त देवता गौ
दोहन और गो घृत का दिव्य दान प्राप्त कराते हैं.
अर्चामि वां वर्धायापो घृतस्नू द्यावाभूमी शृणुतं रोदसी मे ।
अहा यद् द्यावोऽसुनीतिमयन् मध्वा नो अत्र पितरा शिशीताम् ।।
RV10.12.4, AV18.1.31
Agnihotra performed with Mantras brings
about healthy change in the atmospheric water (moisture and rains) and soil to
give higher agriculture produce with sweeter taste.
(Experimental Agnihotra researches on
agriculture have confirmed this phenomenon in India and abroad. Modern science
has also confirmed that such Organic Agriculture produces sweeter –Higher Brix
number- food.)
किं स्विन्नो राजा जगृहे कदस्याति व्रतं चकृमा को वि वेद ।
मित्रश्चिध्दि ष्मा जुहुराणोदेवाञ्छ्लोको न यातामपि वाजो अस्ति ।। RV10.12.5 ,
AV18.1.33
Keep Nature satisfied by following the
practice of Agnihotra accompanied with chanting of mantras, in order that Nature
blesses you with all the sweet bounties sought by you.
मंत्रोच्चार
द्वारा अग्निहोत्र से जिस से प्रकृति सनुष्ट हो कर एक मित्र की तरह सब हमारी
वांछित उपलब्धियां प्रदान करे.
तस्य नाम सलक्ष्मा यद्विषुरूपा भवाति ।
यमस्य यो मनवते सुमन्त्वग्ने तमृष्व पाहयप्रयुच्छन् ।।10RV10.11.6
दुर्मन्त्वत्रामृतस्य नाम सलक्ष्मा यद्विषुरूपा भवाति ।
यमस्य यो मनवते सुमन्त्वग्ने तमृष्व पाहयप्रयुच्छन् ।।AV18.1.34
He who does not appreciate this system of nature(
that Agnihotra is complimentary to maintaining balance in Nature to regularly
favor humans with by providing all the
bounties) , suffers in life like ordinary mortals.
जीवन
में जो मनुष्य अज्ञान वश प्रकृति के इस संतुलन के इस नियम का अग्निहोत्र के द्वारा पालन नहीं करते वे प्रकृति की भरपूर उपलब्धियों से वंचित रह कर साधारण मनुष्यों
के दु:ख भोगते हैं.
यस्मिन् देवा विदथे मादयन्ते विवस्वत: सदने धारयन्ते ।
सूर्ये ज्योतिरदधुर्मास्यक्तून् परि द्योतनिं चरतरजस्रा ।।10RV10.11.7,AV18.1.35
Sun and Moon constantly engage in
providing all the bounties of Nature. Agnihotra in similar manner helps in
providing humans with similar bounties.
सूर्य और
चंद्रमा के प्रभाव से जिस प्रकृति
कल्याण दायक बनती है, अग्निहोत्र द्वारा भी उसी
प्रकार दैवीय गुणों को पृथ्वी पर धारण
कराते हैं
यस्मिन् देवा मन्मनि सञ्चरन्त्यपीच्ये न वयमस्य विद्म ।
मित्रो नो अत्रादितिरनागान् त्सविता देवो वरुणाय वोचत् ।।10RV10.11.8,AV18.1.36
The secretly performed actions of Devtas
such as Mitr, Aditi, Savita, and Varun are not visible, but the impact of their
actions is apparent in the bounties of Nature.
प्रकृति
में मित्र, अदिती, सविता , वरुण देवता गण किस गुप्त प्रकार से कार्य
करते हैं यह दिखाइ तो नहीं देता, परंतु इन के प्रभाव का परिणाम
अवश्य दृष्टि गोचर होता है.
श्रुधी नो अग्ने सदने सधस्थे युक्ष्वा रथममृतस्य द्रवित्नुम् ।
आ नो वह रोदसी देवपुत्रे माकिर्देवानामप भूरिह स्या: ।।10RV10.12.9,AV18.1.25
Agnihotra performed at home, in Yajnshala,
or in public gatherings, by bringing the presiding Devtas , brings the
bounties of Nature close to us.
अग्निहोत्र
घर में, यज्ञशाला में , सामुहिक सभाओं
में जहां भी किये जाते हैं , प्रकृति की शुभ उपलब्ध्यों को प्राप्त कराते हैं.
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