Ethics in business
Bountiful life AV5.11
Bountiful life AV5.11
अथर्वा वरुण संवाद
वरुण से अभिप्राय इस सूक्त के संदर्भ में
राजकीय प्रशासन की गुप्तचर न्यायिक व्यवस्था से है, जो जनता के हित
में असामाजिक तत्वों और उन की गतिविधियों
पर नियंत्रण रखती है.
How to relieve pain of Hedonism
1.
कथं
महे असुरायाब्रवीरिह कथं पित्रे हरये त्वेषनृम्णः
।
पृश्निं वरुण दक्षिणां ददावान्पुनर्मघ त्वं
मनसाचिकित्सीः । ।AV5.11.1
असुरों को जो सदेव खाओ पीओ मौज करने के उपाय खोजते हैं और उन
पूर्वजों को जो सदेव जीवन में कष्ट
और दु:ख को दूर करने के उपाय खोजते हैं, इन दोनों के मन की चिकित्सा के लिए क्या सर्वहितकारी उपदेश
है ?
What
are words of wisdom of established truth for
hedonists i.e. those who want to seek pleasure in worldly pursuits again and
again, and those who seek to avoid pain and discomfort again and again, from
bounties of wealth, cows etc.?
Do not be over materialistic
2.
न
कामेन पुनर्मघो भवामि सं चक्षे कं पृश्निं एतां उपाजे ।
केन नु त्वं अथर्वन्काव्येन केन जातेनासि
जातवेदाः । । AV5.11.2
गौ और भूमि के निकट जा कर धन और भोग की बार बार इच्छा करने
से कुछ भी प्राप्त नहीं होता.
प्रकृति से उपल्ब्धियों को प्राप्त करने के लिए विश्व के समस्त विज्ञान
को जानो.
Merely by repeatedly wishing to
obtain wealth and pleasure from Nature nothing is obtained without actions and learning the art
and science of physical world.
Without making intelligent efforts for utilization
of Nature’s bounties , and only by
mindlessly continuing to consume them and only by wishing that they will be always
similarly available at all times is not possible.
Truthful means are most important
3.
सत्यं
अहं गभीरः काव्येन सत्यं जातेनास्मि जातवेदाः
।
न मे दासो नार्यो महित्वा व्रतं मीमाय यदहं
धरिष्ये । । AV5.11.3
यह एक परम सत्य है कि सृष्टि एक सत्य विधान से संचालित है.
जिस को ज्ञान से प्राप्त किया जाता है. प्रकृति के विधान का धनवान
या दरिद्र कोइ भी उल्लंघन नहीं कर सकता.
Working of Nature is based on absolute laws based on
truth. These can that can be learned by wise persons. But neither powerful nor meek can alter the working of Nature.
Earn living by self efforts
not by usurpation
4.
न
त्वदन्यः कवितरो न मेधया धीरतरो वरुण स्वधावन् ।
त्वं ता विश्वा भुवनानि वेत्थ स चिन्नु त्वज्जनो
मायी बिभाय । । AV5.11.4
धैर्य से बुद्धिमानी समझदारी से अपने लक्ष्य को स्वप्रयत्न को प्राप्त करने
से अधिक कुछ भी अधिक महत्वपूर्ण नहीं है. जिन को संसार के बारे में जानकारी होती है उन से सब छल और कपट से करने वाले
लोग भी दूर भागते हैं ।
Nothing is more important than patient intelligent
pursuit by self effort for obtaining your goal. Most unscrupulous persons get
scared of the persons that have gathered knowledge about workings of the world.
Earn Livelihood by fair and hard work
5.
त्वं
ह्यङ्ग वरुण स्वधावन्विश्वा वेत्थ जनिम सुप्रणीते
।
किं रजस एना परो अन्यदस्त्येना किं परेणावरं
अमुर । । AV5.11.5
स्वच्छ प्रेरणा से
पुरुषार्थ करते हुए सब जन्मों में अपना दायित्व निभाना चाहिए ।
परंतु दूसरों का अहित कर के ऐश्वर्य प्राप्त करने के परे –
परिणाम क्या है उस का भी चिंतन करो।
Performance of one’s duty
diligently always should be the aim. Reflect also upon the ultimate results of
your pursuit of gains at the expense of others
Business Enterprises
should be under Watch and Control
6.
एकं
रजस एना परो अन्यदस्त्येना पर एकेन दुर्णशं चिदर्वाक् ।
तत्ते विद्वान्वरुण प्र ब्रवीम्यधोवचसः पणयो
भवन्तु नीचैर्दासा उप सर्पन्तु भूमिं । । AV5.11.6
इस जगत से परे – व्यावहारिक प्रत्यक्ष लोक से पर एक सूक्ष्म
तत्व है जिसे विद्वान भी बड़ी कठिनाई से समझ पाते हैं. साधारणत: जो लोग धन प्रधान
वृत्ति वाले होते हैं , उनकी सोच , वाणी और व्यवहार
बहुच नीच प्रकार के होते हैं , उन को समाज में दबा कर रखना चाहिए ।
Away from this practical world
there is a higher world of idealism. Even highly learned persons find it
difficult to grasp the ideal behavior in life.
But ordinary class of men for
whom money represents most important consideration and thing in life possess
very low earthly character. It becomes necessary to exercise very strict down
to earth control on the activities of these people.
Control on financial commercial transactions
7.
त्वं
ह्यङ्ग वरुण ब्रवीषि पुनर्मघेष्ववद्यानि भूरि
।
मो षु पणींरभ्येतावतो भून्मा त्वा वोचन्नराधसं
जनासः । । AV5.11.7
बार बार केवल
धनोपार्जन के व्यवसायों में बहुत
निन्दनीय दोष होते हैं । इन के
व्यवहार को ऐसे व्यवस्थित करना चाहिए कि धन की हानि न हो और कोइ निर्धन भी न कहलाए .
Transactions that concern with repeatedly maximizing monetary gains
involve many unethical practices. These activities require to be controlled in
such manner that no one suffers net financial loss and people are rendered poor
and moneyless.
Waste land and more
cows
8.
मा
मा वोचन्नराधसं जनासः पुनस्ते पृश्निं जरितर्ददामि ।
स्तोत्रं मे विश्वं आ याहि शचीभिरन्तर्विश्वासु
मानुषीषु दिक्षु । । AV5.11.8
कोई भी निर्धन न रहे,इस के लिए पुन:
पुन: भूमि और गौ प्रदान करने से गौकृषि आधारित आजीविका की व्यवस्था होनी चाहिए.
No one should be rendered penniless. Therefore reclaim
more and more wastelands and provide for more cows for ordinary people to
develop vision of prosperous living.
Explore New avenues of prosperity
9.
आ
ते स्तोत्राण्युद्यतानि यन्त्वन्तर्विश्वासु मानुषीषु दिक्षु ।
देहि नु मे यन्मे अदत्तो असि युज्यो मे सप्तपदः
सखासि । । AV5.11.9
मनुष्य सब दिशाओं में उत्तम प्रकार से फैलें , जो उपलब्धियां अभी तक
प्राप्त नहीं हुई हैं उन्हें प्राप्त करें. इस अभियान में मनुष्यों के सप्त
पद भू, भुव: , स्वा:, मह:, जन: , तप: और सत्यम् – स्वास्थ,ज्ञान, जितेन्द्रियता,हृदय की विशालता, शक्तियों का विकास, तप और सत्य सब से बड़े सात
सखा हैं
People should spread in all directions. Nature provides
its bounties from all directions. Our seven faculties – bhu, bhuwah, swah, maha, janah, tapah and Satyam are our best friends to bless us with those bounties in
life that we have not earned yet.
All to be equal partners in progress
10.
समा
नौ बन्धुर्वरुण समा जा वेदाहं तद्यन्नावेषा समा जा ।
ददामि तद्यत्ते अदत्तो अस्मि युज्यस्ते सप्तपदः
सखास्मि । । AV5.11.10
हम दोनो राजा और प्रजा, शासन और शासित, धन कमाने वाले और साधन विहीन जन, सब समान बंधु हैं.
हमारी उत्पत्ति भी समान है, जब उत्पत्ति समान है तो तुझे नहीं दिया है वह मैं देता हूं
इस में हमारे दोनोके सप्त पद
भू, भुव: , स्वा:, मह:, जन: , तप: और सत्यम् – स्वास्थ,ज्ञान, जितेन्द्रियता,हृदय की विशालता, शक्तियों का विकास, तप और सत्य सब से बड़े सात सखा हैं
We are all born together as brothers and have the same
ideals to pursue in life. Learned people know and tell about each one of us
sharing and giving to other what he does not have.
In this we all
have our seven best cooperative friends mentioned abov.
11.
देवो
देवाय गृणते वयोधा विप्रो विप्राय स्तुवते सुमेधाः ।
अजीजनो हि वरुण स्वधावन्नथर्वाणं पितरं
देवबन्धुं ।
तस्मा उ राधः कृणुहि सुप्रशस्तं सखा नो असि परमं
च बन्धुः । । AV5.11.11
सब मनुष्य देवताओं
के गुण से, उत्तम मेधा से युक्त हो कर अपने प्रयत्न से अन्नादि प्राप्त करते हैं । माता
पिता और देवता स्वरूप गुरुजनों के बंधु और मित्र बन कर (अथर्वाणम्) निरुद्धचित्त
वृत्ति से निश्चित रूप से जीवन में समृद्धि प्राप्त करते हैं .
All men by following the path of
self effort, excellent knowledge and yoga attain excellence in life.
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