Vedas on Public Interest
Common property, Information,
Corrupt behavior
Atharv Veda 5/18.
1. नैतां
ते देवा अददुस्तुभ्यं नृपते अत्तवे !
मा
ब्राह्मणस्य राजन्य गां जिघित्सो जनाद्याम् !! अथर्व 5/18/1
(नृपते!) हे
राजा (ते देवा:) उन प्रसिद्ध देवताओं ने
(एतां) विद्वत्जनों के परामर्ष अथवा मूक गौ माता (तुभ्यं) तुझे (अत्तवे) खा डालने के लिए (न अददु:) नहीं दी थी । इस
लिए (राजन्य) हे क्षत्र- शक्ति युक्त राजा! तू
(ब्राह्मणस्य ) ब्राह्ममण की कभी
(अनाद्यां) कभी न खाने योग्य या कभी भी न खा जा सकने वाली (गां) इस
विद्वानों –प्रजा की वाणी अथवा गौ का (मा जिघत्स) हिंसा खातमा कर
डालने की इच्छा मत कर ।
O
King the wise counsel by the learned has not been given to you be treated like
fodder. Hence do not ever desire to use your brute force to kill the voice of
the people and destroy the cows.
अक्षद्रुग्धो
राजन्य: पाप आत्मप्राजित: !
सा
ब्राह्मणस्य गामद्यादद्य जीवानि मा श्व: !! अथर्व 5/18/2
स्वार्थान्ध
जुआरी न्यायोचित कार्य न कर के जन विद्वेष करने वाला राजा पाप करता है. अपनी करनी से आप पराजित हो जाता है.
आज तो उसका है.कल उस का नहीं है.
Kings/Rulers overpowered by their
personal desires, who ignore the wise counsel by the learned are self defeated,
they may have the present but they have no future.
आविष्टिताघविषा
पृदाकूरिव चर्मणा !
सा ब्राह्मनस्य राजन्य तृष्टैषा गौरनाद्या !!
अथर्व 5/18/3 ऐसे राज्ञ में विषधारी सांप बिच्छू (असामाजिक असंतुष्ट माओ वादी, अलगाव वादी जैसे तत्व) एक चमडे की थैली जैसे में इकट्ठे होते रहते हैं (छिपे रहते हैं , अवसर पा कर बाहर निकलते रहते हैं, उपद्रव मचाते हैं परंतु अदृश्य रहने के कारण कभी पकडाई में नहीं आते.)
Such wise counsel ignored is like
deadly poisonous reptiles in a leather pouch. These reptiles are blood thirsty,
and once they start escaping due to hunger , from their hideouts they are
impossible to hunt down.
(Can we not see the failures of our Indian rulers in proper
handling of problems of deprived tribal people and the present ‘Naxalite’and other
seperatist movements ?)
निर्वै
क्षत्रं नयति हन्ति वर्चोSग्निरिवारब्धो वि दुनोति सर्वम् !
यो ब्राह्मणं मन्यते अन्नमेव सा विषस्य पिबति
तैमातस्य !! अथर्व
5/18/4
जनता की आवाज़ को शस्त्र
शक्ति से दमन करने वाला राजा जो ब्रह्मगवी को अपना भोजन बनाता है वह ज़हरीले नाग का विष पीता है. अपमानित बुद्धि जीवी उसे निस्तेज कर देते हैं और भड़की अग्नि से सब को सन्तप्त कर देते हैं
Rulers who believe in strength, corner all
wealth for personal gains, kill sane
voices thinking that they are no physical threat, and banishes wise counsel , what they eat as food
for their existence, is but a deadly potion that engulfs the entire nation in fire of an inferno. Such rulers earn hatred of every
body.
य
एनं हन्ति मृदुं मन्यमानो देवपीयुर्धनकामो न चित्तत् !
सं तस्येन्द्रो हृदयेSग्निमिन्ध उभे एनं द्विषो
नभसी चरन्त्म् !! अथर्व 5/18/5
जो धन लोलुप जनता को मृदु मान कर उस का अहित करता है, उसके हृदय में शोकाग्नि प्रज्वलित हो जाती है, और पृथ्वीलोक और द्युलोक के सब निवासी उस से द्वेष करते हैं
Greedy
rulers who give importance to money, ignore and smother truth and the sane
voices that oppose corrupt practices involved in illegal amassing of personal wealth, by
ignoring sane voices considering them
as soft and weak, do not realise that they stoking great violent fires.
न
ब्राह्मणो हिंसितव्यो3ग्नि: प्रियतनोरिव !
सोमो
ह्यस्म दायाद इ न्द्रो अस्याभिशस्तिपा: !! अथर्व 5/18/6
ज्ञान और
संस्कार हिंसा के योग्य नहीं होते. वे तो कुशल राज्ञ को चलाने वाली ऊर्जा प्रदान करते हैं .
राज्ञ मे ज्ञान और अच्छे संस्कारों के
बढाने के लिए राजा को सोमयाग करने चाहिएं
Knowledge and wisdom are like a beating heart
in human body.They sustain the very life of a Nation. Ruler is duty bound to
protect and promote growth of knowledge and think tanks. (Perform Som Yagya )
शतापाष्ठां नि गिरति
तां न शक्नोति नि:खिदन्
!
अन्नं
यो ब्रह्मणां मल्व: स्वाद्वद्मीति मन्यते !! अथर्व 5/18/7
जो मलिन आत्मा प्रजा के शोषण को स्वादिष्ट भोज्ञ समझते हैं वे
अज्ञान से सेंकडो विपत्तियों को मानो निगल रहे हैं . वे असह्य दुर्गति को प्राप्त होते
These
fools ( the short sighted rulers) who feast to enjoy at the expense of public interests, do not
realize that what they swallow down are not sweets but poisons with hundreds
of barbs, that will tear him down.
जिह्वा
ज्या भवति कुल्मलं वाङ्नाडीका दन्तास्तपसाभिदिग्धा:
!
ते
भिर्ब्रह्मा विध्यति देवपीयून्हृद्बलैर्धनुर्भिर्देव्जूतै: !! अथर्व 5/18/8
• मूक वाणी ,विद्वत्ता तप और मन्यु से प्रेरित तेज युक्त तीर बन कर अपने शत्रुओं रूपि राजा को
वेधते हैं
The tongue of the voice less public
becomes like bow from which are shot the destructive arrows of public speech very destructive arrows
sharpened by the teeth of the public
whose voice is ignored.
तीक्ष्णेषवो
ब्राह्मणा ब्राह्मणाहेतिमन्तो यामस्यन्ति शरव्यां3 न सा मृषा !
अनुहाय
तपसा मन्युना चोत दूरादव भिन्दन्त्येनम् !! अथर्व 5/18/9
तपस्या ,मन्यु से प्रेरित अद्रिष्ट तीक्ष्ण अस्त्र भावनाहीन राज्ञ व्यवस्था को दूर से ही अपने लक्ष्य पर जा कर उसे बींध देते हैं
The invisible missiles of the curse of ignored sane voices of the learned persons
forming public, never goes astray. They annihilate to shatter the insensitive
rulers, from behind.
ये
सहस्रमराजन्नासन्दशशता उत !
ते
ब्राह्मणस्य गां जग्ध्वा वैतहव्या: प्राभवन् !!अथर्व 5/18/10
हज़ारो राजा थे,सेंकडों ने राज किया था. जिन्होने ब्रह्मगवी का भक्षण किया. अब उन सब का कोई नामलेवा नहीं है
There were thousands of
rulers among whom hundreds usurped public wealth and turned deaf ears to
wise counsel, they have all met with their fate.
गौरेव
तान्हन्यमाना वैतहव्याँ वैतहव्याँ अवातिरत् !
ये
केसरप्राबन्धायाश्चरमाजामपेचिरन्!! अथर्व 5/18/11
हत हुयी सद्परामर्श के अन्न की हवि से वंचित राजा की प्रबंध क्रिया शक्ति का विनाश हो जाता है.
राज्ञ का सुचारु प्रबंध न कर पाने के कारण उसका राजमुकुट छिन जाता है.
Such rulers are ultimately destroyed by their own deeds under public
pressures of gravely feeling the hurt of being ignored and exploited.
एकशतं
ता जनता या भूमिर्व्यधूनुत !
प्रजां
हिंसित्वाब्राह्मणीमसंभव्यं पराभवन् !! अथर्व 5/18/12
जनता ने सेंकडों ऐसे राजाओं को धूल में मिला दिया जो प्रजा का शोषण कर के स्वयम भव्य जीवन चाह्ते थे
Hundreds of such rulers are known to meet this end.
देवपीयुश्चरति
मर्त्येषु गरगीर्णो भवत्यस्थिभूयान् !
यो
ब्राह्मणं देवबन्धुं हिनस्ति न स
पितृयाणमष्येति लोकम् !! अथर्व 5/18/13
(देवपीयु: )
देव भाव का द्वेषी मनुष्य (मर्त्येषु
गरगीर्ण : चरति, अस्थिभूयान् भवति ) लोगों में विष
पिये हुए की तरह फिरताहै और उस की
तरह हड्डी हड्डी वापितरो के मार्ग ला हो
जाता है ।
(य:)ऐसा जो
देवपीयु (देवबन्धुं ब्राह्मण हिनस्ति )
दैव भाव के पालक ब्राह्मण का हिंसन करता है(स:
पितृयाणं लोकं अपि न एति) वह पितृयान (जिस में पितरों के मार्ग से भौतिक उन्नति के भोग और संयम पूर्वक संतानोत्पत्ति से विस्तार और विकास होता है) को प्राप्त नहीं करता ।
(देवयान – देवताओं के
मार्ग में आध्यात्मिक उन्नति और ब्रह्मचर्य द्वारा आत्मिक तेज बढ़ता है )
अग्निर्वै
न: पदवाय: सोमो दायाद उच्यते !
हन्ताभिशस्तेन्द्रस्तथा
तद्वेधसो विदु: !! अथर्व 5/18/14
निश्चय से विद्वत्जन जानते हैं कि यज्ञ और सोमयाग ही हमारे पथप्रदर्शक , दायित्व निभाने वाली संतान और शत्रुओं पर विजय प्राप्त कराते हैं.इस लिए यज्ञ और सोमयाग करना ही उचित है.
Only remedy lies in highly organised intellectually driven positive
public force to get mobilized in to action .
इषुरिव
दिग्धा नृपते पृदाकूरिव गोपते !
सा ब्राह्मणस्येषुर्धोरा तया विध्यति पीयत: !!
अथर्व 5/18/15
हे नृपति (राजा) इस गो रूपि पृथ्वी के पालक ब्रह्मवाणी की उपेक्षा एक घोर हिंसक सर्पिणी की तरह डंसती है
Immense fire power resides in the voice of the masses.
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