Vedas on Nutrition Science Food Production, Distribution
Rig Ved, 2-40 ,RV1-187,
AV 3.24, AV 2-26
अन्न विषयः RV1/187
भोजन से पूर्व प्रार्थना
अन्नपते अन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः ।
मम दातारं तारिषऽ ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे ।।
यजु 11-83
Oh Mighty provider of our food- our Chef provide us with food that is free from any harmful organisms and that provides great strength.
Oh provider of food, I and my cattle both should be satiated with your food and good measure of energy.
About
FOOD
ऋषिः अगस्त्यो मैत्रावरुणि-।-देवता -अन्नम्
Annam RV Rig Veda Book 1
Hymn 187
पितुं नु स्तोषं महो धर्माणं
तविषीम |
यस्य त्रितो वयोजसा वृत्रं विपर्वमर्दयत् ||ऋ1/187/1
यस्य त्रितो वयोजसा वृत्रं विपर्वमर्दयत् ||ऋ1/187/1
(यस्य) जिस का(त्रित:) मन वचन कर्म से
(वि,ओजसा)विविध प्रकार के पराक्रम तथा उपाय
से (विपर्वम)अङ्ग उपाङ्गों से पूर्ण जैसे काट, छांट,
बीन, छील, पीस कर(वृत्रम) स्वीकार करने योग्य धन, यहां पर धन से अन्न के सन्दर्भ मे तात्पर्य लें, खाने के योग्य (अर्दयत) प्राप्त करे, (नु) शीघ्र अन्न के संदर्भ मे ताज़ा,जैसे
दुग्ध के संदर्भ मे धारोष्ण बासी पुराना रखा हुवा नही (पितुम) ओषधि रूप
अन्न(मह:) बहुत (धर्माणम) गुणकारी स्वभाव वाले अन्न होते हैं (तविषीम) जिन के गुणों की (स्तोषम) प्रशंसा करते हैं.( Freshly harvested-
not artificially treated for extended shelf life)
स्वादो पितो मधो पितो वयं
त्वाववृमहे |
अस्माकमविता भव || ऋ1/187/2
अस्माकमविता भव || ऋ1/187/2
(स्वादो) स्वादु(पितो)पान करने योग्य
जलादि पदार्थ (मधो) मधु के समान (High Brix number)(
त्वा) ऐसे पेय पदार्थों को (वयम) हम
सब (ववृमहे) ग्रहण करें(अस्माकम) इस
अन्नपान के दान से (अविता) हमारे शरीर, मस्तिष्क की सुरक्षा, वृद्धि (भव) सम्भव हो.
उप नः पितवा चर शिवः शिवाभिरूतिभिः |
मयोभुरद्विषेण्यः सखा सुशेवो अद्वयाः || ऋ1/187/3
(पितो)अन्न व्यापक कराने वाला
परमात्मन(मयोभू: )सुख की भावना कराने वाले (अद्विषेण्य) किसी से द्वेष न करने वाले, सब को एक जैसा
अन्न उपलब्ध करवाने वालेवाले,हमारे लिए (सुशेव:)सुंदर और सुख युक्त (अद्वया:) जिस मे द्वंद्व भाव न
रखने वाला (सखा) वह मित्र आप,
हे परमात्मन (शिवाभि:) सुखकारिणी वह अन्न (ऊतिभि:)रक्षा , तृप्ति,
वृद्धि, तेज (न:) हम लोगो के लिए (शिव:) सुखकारी (उप, आ, चर) समीप अच्छे प्रकार से प्राप्त कराइये,( Zero Food Miles)
तव त्ये पितो रस रजांस्यनु विष्ठिताः |
दिवि वाता इव श्रिताः || ऋ1/187/4
तव त्ये पितो रस रजांस्यनु विष्ठिताः |
दिवि वाता इव श्रिताः || ऋ1/187/4
(पितो)अन्नव्यापिन परमात्मा (तव ) उस अन्न के बीच जो (रसा:
) स्वादु खट्टा मीठा तीखा चरपरा आदि छह (मीठा,खट्टा,लवण,कटु चरपरा,तिक्त कडुवा और कषाय कसैला) (दिवि) अंतरिक्षा मे (वाताइव) पवनों के समान (श्रिता) आश्रय को
प्राप्त हो रहे हैं (त्ये) वे
(रजांसि)लोकलोकांतरों को ( अनु, विष्ठिता: ) पीछे
प्रविष्ट होते हैं.( Diet should consist of all natural tastes and colors of
eatables)
तव त्ये पितो ददतस्तव स्वादिष्ठ ते पितो |
प्र स्वाद्मानो रसानां तुविग्रीवाइवेरते ||ऋ1/187/5
तव त्ये पितो ददतस्तव स्वादिष्ठ ते पितो |
प्र स्वाद्मानो रसानां तुविग्रीवाइवेरते ||ऋ1/187/5
(पितो) अन्नव्यापौ पालक परमात्मन (ददत)देतेहुवे
(तव) आप के जो अन्न वा(त्ये) वे पूर्वोक्त रस हैं (स्वादिष्ट)अतीव स्वादुयुक्त(पितो)पालक
अन्नव्यापक परमात्मन (तव)आप के उस अन्न के
सहित (ते) वे रस (रसानाम)मधुरादि रसों के
बीच (स्वाद्मान:)अतीव स्वादु(तुविग्रौवाइव)जिन का प्रबल गला (develops
good vocal faculties)
उन जीवो के समान (प्रेरते)प्रेरणा देते अर्थात जीवों को प्रीति उत्पन्न कराते हैं.
त्वे पितो महानां देवानां मनो हितम् |
अकारि चारु केतुना तवाहिमवसावधीत् ||ऋ1/187/6
(पितो) अन्नव्यापी पालनहार परमेश्वर (तव) जिस आप की (अवसा) कृपा से सूर्य (अहिम)मेघ को (अबधीत) हन्ता है (केतुना)विज्ञान
से जो (चारु)श्रेष्ठ तर (अकारि)किया जाता है वह (महानाम)महात्मा पूज्य (मन)मन(त्वे)आप
में (हितम) धरा है,प्रसन्न
है ( Suggesting possible artificial rains)
यददो पितो अजगनविवस्व पर्वतानाम् |
अत्रा चिन्नो मधो पितोSरं भक्षाय गम्याः ||ऋ1/187/7
यददो पितो अजगनविवस्व पर्वतानाम् |
अत्रा चिन्नो मधो पितोSरं भक्षाय गम्याः ||ऋ1/187/7
(पितो) हमारा पोषण करने वाला (यत) जब यह (अद:) अन्न(अजगन) प्राप्त होता है (विवस्व) गुणवान(मघोपितो) स्वादिष्ट अन्न (अत्र,चित)(पर्वतानाम) पर्वतों से उर्वरकता युक्त (न: भक्षायअरमगम्या) हमारे खाने के लिए उप्लब्ध हो
यदपामोषधीनां परिंशमारिशामहे |
वातपे पीव इद्भव || ऋ1/187/8
यदपामोषधीनां परिंशमारिशामहे |
वातपे पीव इद्भव || ऋ1/187/8
(वातापे) भौतिक शरीर (अपाम ओषधीनाम्) तरल जल ओषधी
पदार्थ इत्यादि (यतआरिशामहे पीब:) जो हम खाते हैं
पी कर (इत भव) स्वस्थ हृष्ट पुष्ट
करें.
यत्ते सोम गवाशिरो यवाशिरो भजामहे |
वातापे प्पेब इद्भव || ऋ1/187/9
यत्ते सोम गवाशिरो यवाशिरो भजामहे |
वातापे प्पेब इद्भव || ऋ1/187/9
(सोम) बुद्धि पूर्वक (गवाशिर: यवाशिर:
भजामहे) गौ दुग्ध यव वनस्पति इत्यादि का भोजन जब
हम गृहण करते हैं(ते)
से (यत वातापे पीब:
इत भव) जो हम पी कर गृहण करते हैं (खाना भी पी कर गृहण होता है)हमारे शरीर को स्वस्थ
ह्रष्ट पुष्ट करे.
करम्भ ओषधे भव पीवो वृक्क उदारथिः |
वातापे पीब इद्भव || ऋ1/187/10
करम्भ ओषधे भव पीवो वृक्क उदारथिः |
वातापे पीब इद्भव || ऋ1/187/10
(ओषधे)(करम्भ: ) (उदारथि: )( वृक्क:
)(पीब: ) (भव)
( वातापे) (पीब: ) (इत) (भव) जठराग्नि को प्रदीप्त करने और पवन आदि से मुक्ति प्राप्त हो.
तं त्वा वयं पितो वचोभिर्गावो न हव्या सुषूदिम |
देवेभ्यस्त्वा सधमादमस्मभ्यं त्वा सधमादम् ||ऋ1/187/11
तं त्वा वयं पितो वचोभिर्गावो न हव्या सुषूदिम |
देवेभ्यस्त्वा सधमादमस्मभ्यं त्वा सधमादम् ||ऋ1/187/11
(पितो) (तम) (त्वा) (वचोभि: ) (गाव:
)(न) (वयम) (हव्या) (सषूदिम)(देवेभ्य: )( सधमादम) (त्वा) (अस्मभ्यम)(सदमाधम)
(त्वा) जैसे गौ इत्यादि तृण घास खा
कर रस दूध देती हैं उसी प्रकार अन्नदि से श्रेष्ठ भाग ग्रहण करा के आनन्द से सब रहें.
Rishi: Gritasamad, Devta SomaPushano
ऋ 2-40
ऋषिः गृत्समद् भार्गवः शौनकः देवताः सोमापूषणौः
( Note: The Rishi of this Sukta-Chapter- is Gritsamad-
The Intelligent one who wants to bring cheerfulness around. The Devta- Topic-
is SomaPushna- intelligent Nutritional
Strategies i.e. the science of Nutrition )
सोमापूषणा जनना रयीणां जनना दिवो जनना पृथिव्याः।
जातौ विश्वस्य भुवनस्य गोपौ देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिः ।। ऋ 2-40-1
Nutritionists are the generators of 'wealth' through Nutritive
food. From good food comes intellect that generate riches
and activities on the earth and outer space. From its very inception they are the guardians of sustainability of this earth.
अथ सौम्यम् ।अन्नं वै सोमोऽन्नेनैव तत्प्रजापतिः पुनरात्मानमाप्याययतान्नमेनमुपसमावर्ततान्नमनुक्रमात्मनोऽकुरुतान्नेनोऽ एवैष एतदाप्यायते ऽन्नमेनमुपसमावर्तते ऽन्नमनुकमात्मनः कुरुते। शतपथ 3।9।1।8
तद्यत्सारस्वतमनु भवति । वाग्वै सरस्वत्यन्नं सोमस्तस्माद्यो वाचा पसाम्यन्नादो हैव भवति। शतपथ 3।9।1।9
इमाव देवौ जायमानौ जुषन्ते -मौ तमांसि गूहतामजुष्टा ।
आभ्यामिन्द्रः पक्वामामास्वन्तः सोमापूषभ्यां जनदुस्रियासु ।। ऋ 2-40-2
In their very beginning the gloom of lack of nutrition is dispelled by emergence of milk in young immature females. (Mothers, Cows, and rains from clouds)
सोमापूस्हाणा रजसो विमानं सप्तचक्रं रथमविश्वमिन्वम् ।
विषूवृतं मनसा युज्यमानं तं जिन्वमथो वृषणा पञ्चरश्मिम् ।। ऋ 2-40-3
( Human body is likened to a chariot with five controlling reins- the five PrAAnas पञ्च प्राण- अपान,व्यान,उदान, समान और मन) Nutrition makes a strong performing creative person ( likened to a वृषभ a performing bull), who manages the available resources to enable movements on this earth and beyond ( Outer Space) ( There is reference to a possible space vehicle equipped with seven wheels or perhaps booster rockets?
दिव्यन्यः सदनं चक्र उच्चा पृथिव्यामन्यो अध्यन्तरिक्षे ।
तावस्मभ्यं पुरुवारं पुरुक्षं रायस्पोषं वि ष्यतां नाभिमस्मे ।। ऋ 2-40-4
The resulting activities from good nutrition give rise to desirable and much sought after health, wealth , fame and progeny on this earth and for control over outer space.
विश्वान्यन्यो भुवना जजान विश्वमन्यो अभिचक्षाण एति ।
सोमापूषणाववतं धियं मे युवाभ्यां विश्वाः पृतनः जयेम ।। ऋ2-40-5
While on one hand it has a role in creating the existing situations in life, on the other hand it is guided by its wisdom to take measures for correcting any
unbalances, to defeat destructive forces.
धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयि सोमो रयिपतिर्दधातु ।
अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद् वदेम विदथे सुवीरः ।। ऋ 2-40-6
May the supreme nutrition provider पूषा-†ÖפüŸµÖ- Sun, feed our intellects ( Can we see a link with Omega3 and solar radiation for brain development ?), and give us wisdom to have health wealth, wisdom, progeny and shun unsustainable activities to bring welfare to the entire society.
Vedas on Nutrition ( Part 2)
1. तयो रिद् घृतवतत्पयो विप्राः रिहन्ति धीतिभिः।
गन्धर्वस्य
ध्रुवे पदे ।। ऋ 1-22-14
घृतवतत्पयो --घृत व तत् पयः - Fats and milk bearing those fats गन्धर्वस्य -gandharwas
are
the mythical characters existing in the space between earthly humans (
untouched by civil reflective behaviors,
emotions, feelings) and heavenly Dewataas.
Gandharwas are said to sustain the
society by providing life
sustaining
strategies. गन्धर्वस्य ध्रुवे
पदे - In the foot
steps of civilized high position persons- the intelligent persons partake of
fats and fat bearing milk very cautiously.
AV 2-26-4
सं सञ्चामि गवां क्षीरं समाज्येन बलं रसम् !
संसिक्ता अस्माकं वीरा ध्रुवा गावो मयि गोपतौ !! AV2.26.4
All the people feed on milk & Ghee of cows and the yagya promotes sustainable well being of the society by integrating cows in it.
4.8.5 A 2-26-5
आ हरामि गवां क्षीरमाहार्षं धान्यं रसम् !
आहृता अस्माकं वीरा आ पत्नीरिदमस्तकम् !!AV 2.26.5
To this place we folks men, women
&children integrate cows their milk &
agriculture produce for health and wellbeing
AV3.24 वनस्पति: Agriculture produces
·
पयस्वतीरोषधय: पयस्वन्मामकं वच:। अथो पयस्वतीनामा
भरेsहं सहस्रश: ॥ अथर्व 3.24.1
Speak about growing such produce that has nutritional and medicinal
qualities, and fill its thousands of bags in warehouses.
उस (अन्न) की (उत्पादन की) बात करो जो पौष्टिक और ओषधि है. सहस्रों बोरों मे उस
का भंडारण करो
·
वेदाहं पयस्वन्वतं
चकार धान्यं बहु । सम्भृत्वा नाम यो देवस्त्वं वयं हवामहेयोयो अयज्वानो गृहे ॥ अथर्व
3.24.2
Spread knowledge about growing such
food in abundant quantities. Ensure that
everybody has equal access to such food like Nature’s bounties. If some persons engage in storage of food (to cause shortages
and deprive public access) food stuff from their warehouses should be ordered
for public distribution.
उस ज्ञान का विस्तार करो जिस के द्वारा
इस प्रकार का उत्तम अन्न बहुलता से उत्पन्न किया जा सके . जिस प्रकार सब को समान रूप
से प्रकृति की सब वस्तुएं सम्भरण देवता द्वारा उपलब्ध रहती हैं उसी प्रकार यह अन्न
भी सब को समान रूप से उपलब्ध रहना चाहिए. जिन स्वार्थी (अयज्वन जनों – यज्ञ न करने
वाले) के घरों में इस अन्न का भंडार हो उसे
सब साधारण जनों को उपलब्ध करो.
·
इमा या: पञ्च प्रदिशो मानवी: पञ्च कृष्टय: । वृष्टे शापं नदीरिवेह
स्फातिं समावहान् ॥ अथर्व 3.24.3
All sections of society at all times and in all situations should have
access to food in the same manner as rivers make available waters after rains.
(पञ्च प्रदेश पञ्च मानव) सब समाज –ब्राह्मण ,क्षत्री ,वैश्य,शूद्र, निषाद, सब परिस्थितियों दिशाओं पूर्व,पश्चिम, दक्षिण, उत्तर और मध्य स्थान अंतरिक्ष ( पृथ्वी
से ऊपर यान इत्यादि) में इस अन्न की समृद्धि
को ऐसे प्राप्त करें जैसे वर्षा के पश्चात नदियां
समान रूप से ज;ल सब को प्रदान करती हैं.
·
उदुत्सं शतधारं
सहस्रधारमक्षितम् । एवास्माकेदं धान्यं सहस्रधारमक्षितम् ॥ अथर्व 3.24.4
Like hundreds and thousands of perennial streams this flow of food supply
should be perennial and none exhausting.
बारहमासी अविरल बहने वाले सहस्रों झरनों की तरह यह अन्न के स्रोत भी अविरल और कभी क्षीण न होने
वाले हों
·
शतहस्त समाहर
सहस्रहस्त सं किर । कृतस्य कार्यस्य चेह स्फातिं
समावह ॥ अथर्व 3.24.5
Hundreds of Farm hands feed thousands of mouths. Only this kind of public
welfare strategy brings progress and prosperity in the society. (Earn by
hundred hands and distribute in charity by thousand hands. Only such
temperaments sustain a healthy society)
सौ हाथों वाले कृषक जन सहस्र जनों के लिए यह उपलब्ध करें .इस प्रकार की मगल वर्षा
से समाज की वृद्धि और उन्नति हो. ( सौ हाथों से कमा और हज़ार हाथों से दान कर ,इसी वृत्ति से समाज का कल्याण होता है
)
·
तिस्रो मात्रा
गन्धर्वाणां चतस्रो गृहपत्न्या: । तासां या स्फातिमत्तमा तया त्वाभि मृशामसि ॥ अथर्व
3.24.6
Divide the revenues from Food production into seven parts. Three parts
should be devoted to education, research and public services, four parts should
be the share of housewives that run the households, if any surplus is conceived the eighth part shall go to enrich the nation
to build its strengthen.
इस उत्पादन के तीन भाग शिक्षा कार्य कौशल और अनुसंधान के लिए प्रयोग में लाए जाएं, चार भाग गृह पत्नियों को परिवार के पालन
हेतु उपलब्ध होना चाहिए. यदि कुछ अधिक उपलब्धि हो तो आठवां भाग राष्ट्र को उन्नत बनाने
में प्रयोग किया जाए.
·
उपोहश्च समूहश्च
क्षत्तारौ ते प्रजापते । ताविहा वहतां स्फातिं बहुं भूमानमक्षितं ॥अथर्व3.24.7
Farmers that produce the food and administrator that control uilisation of
the farmers’ bounties are the two wheel of the
carriage that takes a nation forward.
Their coordinated efforts can ensure that food supplies are always
available in right quantities.
खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले और उस से
प्राप्त धन का सदुपयोग करने वाले दो समूह इस समाज को सुचारु रूप से चलाने वाले
दो सारथी हैं.
वे दोनों समृद्धि को लाएं, हमारा अन्न विपुल हो, सदैव वर्द्धनशील हो और कभी समाप्त न हो.
No comments:
Post a Comment