Duties of a Householder
गृहस्थ के दायित्व - दान और पञ्चमहायज्ञ परिवार विषय
अथर्व 6.122,
पञ्च महायज्ञ विषय
1.
एतं
भागं परि ददामि विद्वान्विश्वकर्मन्प्रथमजा ऋतस्य
।
अस्माभिर्दत्तं जरसः
परस्तादछिन्नं तन्तुं अनु सं तरेम । ।AV6.122.1
Wise man perceives that the bounties provided
by Nature from the very beginning are only not be considered as merely rewards
earned for his labor but considers himself as a trustee for all the blessings from
Almighty to be dedicated for welfare of family and society. Dedication of His
bounties ensures that life flows smoothly as normal even when the individuals
are past their prime active life to participate in livelihood chores. (This system
enables the human society to ensure sustainable happiness. People must dedicate
their bounties in welfare and charity of family and society- by performing
various Yajnas to protect environments, biodiversity and bring up good well
trained progeny.)
संसार का विश्वकर्मा के रूप में
परमेश्वर सृष्टि के आरम्भ से ही मानव को अनेक उपलब्धियां प्रदान करता है.
बुद्धिमान जन का इस दैवीय कृपा को समाज और परिवार के प्रति समर्पण भाव से देखता है
और पञ्च महायज्ञों द्वारा अपना दायित्व निभाता है. इसी शैलि से सुंस्कृत सुखी समाज का निर्माण होता
है. जिस में समाज सुखी और सम्पन्न बनता है. वृद्धावस्था को प्राप्त हुए जन भी आत्म
सम्मान से जीवन बिता पाते हैं,पर्यावरण शुद्ध
और सुरक्षित होता है. ( यजुर्वेद का उपदेश
“ईशा वास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्या जगत्”
भी यही बताता है कि जो भी जगत में हमारी उपलब्धियां हैं वे सब परमेश्वर की ही हैं.
हम केवल प्रतिशासक Trustee हैं, इस सब का मालिक तो परमेश्वर ही
है. और हमारा दायित्व परमेश्वर की इस देन
को संसार, समाज,परिवार के प्रति अपना दायित्व निभाकर सब की उन्नति को
समर्पण करना ही है.)
भूत यज्ञ
2.
ततं
तन्तुं अन्वेके तरन्ति येषां दत्तं पित्र्यं आयनेन ।
अबन्ध्वेके ददतः
प्रयछन्तो दातुं चेच्छिक्षान्त्स स्वर्ग एव
। ।AV6.122.2
Those who live by the ideals of their virtuous
parents and utilize their bounties to dedicate themselves to the cause of providing
for the society and environments as also take care and provide good education
to their orphaned brothers, make their own
destiny to be part of a happy society and have a happy family life.
जो जन इस संसार में उन को मिली उपलब्धियों
को एक यज्ञ का परिणाम मात्र समझते हैं वे (स्वयं इन यज्ञों को करते हैं ) और सब ऋणों से मुक्त हो जाते हैं .
जो अनाथों के लिए सेवा करते हुए
उन्हे समर्थ बनाने के अच्छे प्रयास करते हैं उन का जीवन स्वर्गमय हो जाता है.
अतिथियज्ञ , बलिवैश्वदेव यज्ञ व देवयज्ञ
3.
अन्वारभेथां
अनुसंरभेथां एतं लोकं श्रद्दधानाः सचन्ते
।
यद्वां पक्वं परिविष्टं
अग्नौ तस्य गुप्तये दम्पती सं श्रयेथां ।
।AV6.122.3
This is an enjoined duty of the house holders to
share with dedication and respectfully their food with guests, in to fire for
latently sharing with environments and to the innumerable diverse living
creatures.
दम्पतियों का (गृहस्थाश्रम में) यह कर्तव्य है कि भोजन बनाते
हैं उस को श्रद्धा के साथ अग्नि को गुप्त रूप से पर्यावरण की सुरक्षा, अतिथि सेवा, और और पर्यावरण मे जैव विविधता के संरक्षण
मे लगाएं
यज्ञमय जीवन
4.
यज्ञं
यन्तं मनसा बृहन्तं अन्वारोहामि तपसा सयोनिः
।
उपहूता अग्ने जरसः
परस्तात्तृतीये नाके सधमादं मदेम । ।AV6.122.4
By setting an example of following
a life devoted earn an honest living and fulfilling one’s duties in performing
his duties towards environments, society and family development of an appropriate
temperament takes place. That ensures a peaceful heaven
like happy atmosphere in family and off springs that ensures a comfortable life
for the old elderly retired persons.
तप ( सदैव कर्मठ बने रहने के स्वभाव
से ) और यज्ञ पञ्च महायज्ञ के पालन करने से
उत्पन्न मानसिकता के विकास द्वारा जीवन का उच्च श्रेणी का बन जाता है. ऐसी व्यवस्था में, दु:ख रहित पुत्र पौत्र परिवार और समाज के स्वर्ग तुल्य जिव्वन में मानव
की तृतीय जीवन अवस्था (वानप्रस्थ और उपरान्त) हर्ष से स्वीकृत होती है.
परिवार के प्रति दायित्व (उत्तम
सन्तति व्यवस्था)
5.
शुद्धाः
पूता योषितो यज्ञिया इमा ब्रह्मणां हस्तेषु प्रपृथक्सादयामि ।
यत्काम इदं अभिषिञ्चामि
वोऽहं इन्द्रो मरुत्वान्त्स ददातु तन्मे ।
।AV6.122.5
Bring up your children to develop virtuous,
pure, honest temperaments. Find suitable virtuous husbands for your daughters to
marry, in order that they in their turn bring up good virtuous progeny for
sustaining a good society.
पुत्रियों का शुद्ध पवित्र पालन कर के उत्तम ब्राह्मण गुण युक्त वर खोज कर उन से पाणिग्रहण
संस्कार करावें. (जिस से समाज का) इंद्र गुण वाली और ( मरुत्वान् -स्वस्थ जीवन
शैलि वाली विद्वान) संतान की वृद्धि हो. (इस मंत्र में वेद भारतीय परम्परा में संतान को ब्रह्मचर्य
पालन और उच्च शिक्षा के साथ स्वच्छ
पौष्टिक आहार के संस्कार दे कर ,अपने समय पर विवाहोपरांत स्वयं
गृहस्थ आश्रम में प के स्वस्थ विद्वान संतति से समाज कि व्यवस्था का निभाने का दायित्व बताया है.)
No comments:
Post a Comment