Mind Control RV10.58
ऋषि: - बन्धु: श्रुतबन्धुविप्रबन्धुर्गौपायना:; बन्धु ‘बध्नाति इति बंधु:’ जो बांधता है वह बंधु है . जिस को बांधना सब से कठिन है उस को जो बांधता है वह सच में बंधु है. किस का बांधना सब से कठिन है ? मन का. जो मन को बांधता है, इधर उधर नहीं भतकने नहीं देता वह ‘बंधु’ है . श्रुतबंधु वह बंधु जिस ने श्रुतियों- वेदों वेदों के ज्ञान से विप्र बन्धु अपने को विद्वान बंधु बनाया.गोप कहते हैं इंद्रियों को ,इंद्रियों का पालन करनेवाला गोपायन कहलाया. इस प्रकार मन को बांध लेने से इंद्रियों के व्यर्थ इधर उधर्भटकने से रोकने वाला - बन्धु: श्रुतबन्धुविप्रबन्धुर्गौपायना: ऋषि कहलाया.
देवता: - मनआवर्तनं । छंद: -अनुष्टुप् ।
Refrain ध्रुवपंक्ति .मनो जगाम दूरकम् , त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे !!
Live in the Present - Be focused in Life for its betterment
जो तुम्हारा मन बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
A life positive attitude
1.यत ते यमं वैवस्वतं मनो जगाम दूरकम् | तत त आवर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || R10.58.1
Develop life positive attitude, Do not turn away from life, Be focused in Life for its betterment
तुम्हारा जो मन वैवस्त के पुत्र यम के पास चला गया है, अर्थात वैराग्य की ओर बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
(विवस्वान है वासना रहित व्यक्तित्व . मनुष्य वासनाओं से जितना ऊपर उठता है उतना ही उसका जीवात्मा और अहंबुद्धि संयमशील होता हैं . और क्रमशः यम और यमी कहलाने के अधिकरी होते हैं. यम संयम शील जीवात्मा है और यमी उसकी बहन संयम शील अहंबुद्धि है. बच्चा जब माता के गर्भ से पैदा होता है तो उस के शरीर में जीव और अहंबुद्धि साथ साथ जन्मते हैं. इसी लिए यम और यमी को जुडवां कहा जाता है. अतः यम और यमी वस्तुतः वासना रहित व्यक्तित्व की दो संतानें हैं. ये दोनों शकट (हविर्धान) अर्थात सोम ढोने वाली गाडियों के रूप में भी देखे जाते हैं . यम देवों के हित में मृत्यु का वरण करता है. पर संतान के अभीष्ट के लिए अमृत को त्याग देता है.)
2. यत ते दिवं यत्पृथ्वीं मनो जगाम दूरकम | तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.2
Do not indulge in day dreaming. Be focused in Life for its betterment.
Day dreaming: जो तेरा मन दिवास्वप्न की ओर बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
Pessimism - seeing difficulties all-round
3. यत ते भूमिं चतुर्भृष्टिं मनो जगाम दूरकम |
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.3
Your Mind due to pessimism perceives all-round difficulties in life, turn it back to be focused in Life for its betterment.
मन जो अवसाद से चारों ओर से तपने वाली भूमि की ओर बहुत दूर चला गया है,तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
Wandering Mind भटकता मन
4. यत ते चतस्रः प्रदिशो मनो जगाम दूरकम | तत त तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे||ऋ10.58.4
Your wandering mind that has gone very far in the four directions, bring it back to be focused in life for its betterment.
चारो दिशाओं में तुम्हारा मन जो भटक कर बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
5. यत ते समुद्रमर्णवं मनो जगाम दूरकम |
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.5
जल से भरे समुद्र में जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते है
क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
6. यत ते मरीचीः प्रवतो मनो जगाम दूरकम |
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.6
Mirage-मृग तृष्णा की ओर जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
7. यत ते अपो यदोषधी मनो जगाम दूरकम |
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.7
Paranoid about diseases भ्रमोन्माद से औषधियों वनस्पतियों में जो तुम्हारा मन बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
8. यत ते सूर्यं यदुषसं मनो जगाम दूरकम |
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.8
सूर्य और उषा के पास जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते है
क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
9. यत ते पर्वतान बृहतो मनो जगाम दूरकम |
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.9
बडे बडे पर्वतों की ओर जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
10. यत ते विश्वमिदं जगन् मनो जगाम दूरकम |
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.10
सारे संसार की ओर जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
11. यत ते पराः परावतो मनो जगाम दूरकम |
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.11
दूर से दूर और उस से भी दूर और भी बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
12. यत ते भूतं च भव्यं च मनो जगाम दूरकम |
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.12
भूत काल और भविष्य की ओर जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को
लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.

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