Thursday, June 12, 2014

Saubhagy Sookt Rig Ved 7.41

RV7.41 सौभाग्य सूक्तम्‌
ऋषि: मैत्रावरुणिर्वसिष्ट = तांड्य ब्राह्मण के अनुसार मित्रावरुण प्राण और अपान हैं। इन को पूर्ण रूप से सबल करने वाला ऋषि मैत्रावरुणि है. यह वश में करने वालों  में श्रेष्ठ होने से वसिष्ट है। अथवा उत्तम निवास शील होने से वसिष्ट  है । यह जब तक इस शरीर में निवास करता है, उत्तम प्रकार से निवास करता है । राजा बन कर निवास करता है न कि दास बन कर. शक्तिशाली बन कर रहता है नकि  असहायनिर्बल बन कर ।
ऐ 2.26 के अनुसार “वक्षुश्च मनश्च मित्रावरुणा” चक्षु  और मन मित्रावरूण हैं,इन्द्रियों और मन  दोनों को वश में रखनेवाला वसिष्ठ है ।  
ऋ 7.11.3 में प्रभु से प्रार्थना करता है “त्वा युजा पृतनायू रभिष्याम्‌” प्रभु को साथ ले कर कामादि शत्रुओं और प्रलोभनों की सेना पर मैं विजय पाऊं,और “मा नो अग्रे अवीरते परादा दुर्वाससे” ऋ 7.11.19, हम वीर हों  और हमारा वास अच्छा  हो.

1.  प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना ।
 प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम ।। ऋ 7-41-1
 “प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना ।“ सब से प्रथम सौभाग्यशाली जीवन के लिए मनुष्य को युगम देवता  इंद्र- इच्छा और अग्नि-  शक्ति का आह्वान करते हैं कि युग्म  देवता मित्र -  ओक्सीजन और वरुण –सब रूप में उपलब्ध जल तत्व हमारे युग्म पान और अपान वयु को संचालित करें. और पुनश्च “प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम” और हमारे सौभग्य के लिए हमें ब्रह्मांड की सब वस्तुओं के पोषक तत्वों के संरक्षण के लिए रुद्र देवता के द्वारा दूषित भाग को नष्ट करने  की सोम देवता द्वारा ज्ञान और प्रवृत्ति मिले.

 प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना
To live first thing that is required is will to live. That calls for invoking agni and Indra for energy and motivation for the life preserving twin of breathing in and breathing out. Sanskrit being a scientific language calls inhalation and exhalation as praaN and apan –. Pran or also pan inhaled breath is one that is fit for drinking - taking in, and apan  the exhalation is no longer fit for the body . Then again the human breath is made of the twin Mitra and Varuna, Mitra the friendly one is also called Oxygen  and Varun is also known to be universally available water in all its forms such as vapor, moisture, humidity and liquid water . प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम ।। And then one  needs good healthy air to breath and nutrition for successful life. For this  we invoke  Soma i.e. the intelligence to  rectify by Rudra  –the killer of disease and undesirable portions from what we live on ,The air that we breath,  our food, the environmental pollution , the waters and so on.
2.  प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता
आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याहं ।। 7-41-2

“प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता”  हम अपने सौभाग्य के लिए प्रात:कालीन समय से ही  सूर्य देवता के उग्र प्रभाव से उत्पन्न विविध प्रभाव का आह्वान करते हैं.(जैसे विटामिन डी, नाना प्रकार  के  रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता , स्वच्छ जल प्रदान करने के लिए भूमि पर से प्रदूषित जल को स्वच्छ करने  की क्रिया में वाष्प बना कर पुन: मेघों द्वारा पृथ्वी पर स्वच्छ जल का उपहार  देना, वनस्पति , अन्न,  ओषधियों का उत्पाद इत्यादि ) और ये सब “आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याहं “ समान रूप से  निर्धन और राजा सब को मनन चिंतन से प्रेरित जीवन में ठीक आचरण द्वारा समान रूप से भोग करने के लिए उपलब्ध रहते हैं.

 “प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता” We celebrate the immense bounties that are borne of the sun ( such as Vitamin D, Photosynthesis for herbs, plants and crops to grow, sanitation of pathogens, Vaporizing of water  of water for providing rains of life giving water etc.) “आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याहंand these bounties are freely equally available to all the poorest as well as kings to enjoy by their thoughtful proper conduct in life.

3.  भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवाददन्नः
भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्वृवन्तः स्याम ।। 4-47-3

“भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवाददन्नःहम उत्तम सौभाग्य के लिए सद्बुद्धि से  सत्य ज्ञान द्वारा धन इत्यादि को प्रभु  द्वारा  दान समझ कर  भोग  के लिए प्राप्त करें. भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्वृवन्तः स्याम” और उत्तम गौओं अश्वों  इत्यादि ,उत्तम पुरुषों  के सत्संग और मित्रता से परम  ऐश्वर्य प्राप्त करें.

“भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवाददन्नःWe pray that we are blessed with the wisdom to earn all the wealth and bounties in  life by fair ethical means and that we consider ourselves as mere trustees and not owners of these bounties भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्वृवन्तः स्यामand that we are blessed to enjoy the company of good virtuous friends cows horses etc for excellence in life.

          4. उतेदानी भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्
उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम ।।  4-47-4

उतेदानी भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्सूर्य के उदय काल से ले कर मध्यान्ह और सूर्य के अस्त काल तक हम सब प्रकार के के ऐश्वर्य प्राप्त करें। .
और उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम  इस सारे  समय में हमारी  बुद्धि में सुमति का वास रहे,जिस से  हम सब प्रकार के दैवीय ऐश्वर्य का भोग करें.
.         “उतेदानी भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्” Beginning with sun rise the morning throughout  midday till evening we should  
          enjoy the best bounties of prosperity in life, and  उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्यामduring all this time we should be
         blessed with the wisdom to enjoy the godly gifts of prosperity and excellent life.

5.भग एव भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीति सनो भग पुरएता भवेह ।। 4-47-5

भग एव भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्यामप्रभु ही हमें देवताओं के सद्गुणों पर आचरण द्वारा सौभाग्यशाली धन इत्यादि प्राप्त कराते हैं इसी लिए वे भगवान भी कहलाते हैं   तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीति सनो भग पुरएता भवेह” इसी लिए तुम सब भगवान का आह्वान करो कि प्रगति के लिए मार्गदर्शन मिले.  
6. समध्वरायोषसो नमन्तः दधिक्रावेव शुचये पदाय !
   अर्वाचीनं वसुविदं भगं मे रथमिवाश्वा वाजिन आ वहन्तु !!RV7.41.6
 प्रात:काल से ही सूर्य देवता को नमन कर के समाजोन्नति एवं सेवा द्वारा अर्वाचीन – Modern-  उपलब्धियों और समृद्धि के साधनों को राष्ट्र  एवं समाज सेवा हेतु प्राप्त कराने के यज्ञों में  कुशल प्रबंधक राजा इत्यादि अपना दायित्व निभाने में लग जाएं.1

7. अश्वावतीर्गोमतीर्न उषासो वीरवतीः सदमुच्छन्तु भद्राः !
  घृतं दुहाना विश्वतः प्रपीता  यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः !! RV 7.41.7
कल्याणकारी उषाएं प्रतिदिन नव ऊर्जा की स्फूर्ति, पौष्टिक  अन्नदि से परिपूर्ण करने वाले सुवीरों,  गौओं के घी दूध से विश्व को हृष्ट पुष्ट  बना कर और  अश्वों  से नित्य हमारा कल्याणमार्ग प्रशस्त करते रहें




1 comment:

  1. You have tried hard to bring ancient Indian knowledge to public. Thanks for your efforts.

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