Labor
Social Reforms in India
वेदों से श्रमिक संबंधों पर
श्रमिक संघ
भारतवर्ष में केवल10% ही श्रमिक ही संगठित क्षेत्र में काम कर रहे
हैं. लेकिन श्रमिक संघों
के प्रभाव से इन मात्र 10% श्रमिकों ने भारत
वर्ष की आर्थिक jugular
vein अर्थात कण्ठ की नस पकड़ रखी है | इन श्रमिक संघों के नेतृत्व में श्रमिकों के हितों
की सुरक्षा के नाम पर श्रमिकों द्वारा हड़ताल,
कामरोको, अनुशासन हीनता और
हिंसा तोड़फोड़ का व्यवहार न्यायोचित बताया जाता है | राजनीतिक दल भी अपने स्वार्थ के लिए श्रमिक
संघों को हिंसा-तोड़फोड़ के लिए
प्रेरित करते हैं.
आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि सारी दुनिया में
श्रमिक संगठनों का जन्म दाता अमेरिका का पूंजीवाद है | पूंजीवाद में सर्व
प्रथम सब उत्पादों कृषि,पशुपालन, उद्योगों का
केंद्रीकरण आरम्भ किया गया |
एडम स्मिथ अपनी
पुस्तक “Wealth of Nations” में एक फैक्ट्री का उदाहरण देते हैं जिस में उत्पाद की
प्रक्रिया को अनेक छोटी-छोटी प्रक्रियाओं में
तोड़ दिया गया है. प्रत्येक subcontractor केवल अपनी प्रक्रिया
के बारे में जानता है. इस प्रकार फैक्ट्री
मालिक उत्पाद पर अपना वर्चस्व बनाता है. लेकिन कामगार के लिए इस प्रकार काम करना बहुत उबाऊ
और तनावपूर्ण होता है.
इन्हीं तथा वहां के उद्योगपतियों
द्वारा अपने स्वार्थ में श्रमिकों के शोषण और दुर्व्यवहार की प्रतिक्रिया ने
श्रमिक संघों को जन्म दिया |
हमारे देश के वाम पंथी भाई जो अपने को श्रमिकों का
सर्व श्रेष्ठ हितैशी होने का दावा करते हैं वे तो केवल अमेरिका की पूंजीवादी
असमाजिक व्यवस्था से उत्पन्न परिस्थितियों के प्रतिक्रियावाद को भारत वर्ष की
पुण्य भूमि में प्रसार ही
कर रहे हैं | जो न देश के और न
श्रमिकों के हित में है |
भारतीय सनातन परंपरा
भारतवर्ष की प्राचीन सनातन परम्परा का आदर्श तो
विश्व में समाजवाद का सर्वोच्च कीर्तिमान स्थापित करता है | व्यक्ति की उन्नति और समृद्धि को उस की
आर्थिक संपन्नता, दिखावटी भोगवादी जीवन शैली से नहीं मापा जाता | एक स्वस्थ मानसिकता , स्वस्थ शरीर, सादा जीवन, सब से बांट कर जीना भारतीय आदर्श माना
जाता था | धनवान सरल तरीके से
रहें | गांधी जी इसे
स्वेच्छा से स्वीकार की गई ग़रीबी कहते थे
| यही भारतीय संस्कृति का आदर्श है |
भारतीय आदर्श संस्कृतिक परम्परा के अनुसार एक व्यक्ति केवल अपने
निकट परिवार के जनों से ही नहीं बल्कि पूरे समाज, सब जीव जन्तुओं और प्राकृतिक तत्वों के साथ एक जीवित संबंध के
अनुभव से प्रेरित है | पूंजीवाद की भोगवादी भव्य जीवनशैली, 'धन' के अभद्र प्रदर्शन से
समाज में ईर्ष्या से अव्यवस्था और हिंसा को जन्म देते हैं | अमीरों द्वारा खुद पर ही केवल अपने
धन को खर्च करना पश्चिमी उपभोक्तावादी
संस्कृति है। भारतीय आदर्श ‘ईषा वास्यमिदँ सर्वं
यत्किञ्च जगत्यं जगत्’ के अनुसार तो
मनुष्य अपने को केवल धन का संरक्षक समझें और अपनी आर्थिक
समृद्धि को समाज के साथ साझा ,बांट कर, दान वृत्ति से जीना चाहिए। यही कारण है
कि भारतीय समाज में प्राचीन काल से अपने धन को परमेश्वर की कृपा समझने की परम्परा
रही है|
पूँजीवाद का
विकल्प
सन १९७३ में
शुमाखर ने अपनी एक थीसिस Small is Beautiful प्रकाशित की. विकसित
देशों ने उसको खारिज कर नव-उदारवाद को अपनाया क्योंकि उन्हें केवल अधिक लाभ कमाना था.
नब्भे के दशक में भारत ने भी वैश्विक वित्तीय संस्थाओं के दबाव में उसके
अनुसार चलना स्वीकार किया.
आज पूरा मौसम-बदलाव जिस भयंकर समस्या से जूझ रहा है, जिसके लिए सभी देशों ने पिछले वर्ष पैरिस राजीनामे को मंजूर किया था.
लेकिन अभी हाल में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उस राजीनामे को
मानने से इनकार कर दिया है. लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी प्राचीन परम्परा के
अनुसार उस राजीनामे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई है.
शुमाखर के अनुसार आर्थिक
विकास की जड़ें अर्थ जगत से बाहर हैं. आर्थिक विकास के लिए शिक्षा, संगठन, अनुशासन,
राजनीतिक स्वतंत्रता तथा स्वायत्त होने की राष्ट्रीय चेतना जरूरी है.
देश के असंगठित क्षेत्र के विकास के पीछे भारतीयों की संगठन,
अनुशासन और स्वायात्त होने की प्रबल भावना है. मनरेगा जैसे प्रोग्राम देशवासियों की उस भावना को ठेस पहुंचाते हैं.
यदि किसी मनुष्य के पास कोई काम नहीं है तो उसकी परेशानी कमाई को लेकर तो
अवश्य है. लेकिन
प्रत्येक मनुष्य की इच्छा एक स्वस्थ वातावरण में काम करने की भी है.
उबाऊ तथा तनावपूर्ण काम मजबूरी का सौदा होता है. काम से मनुष्य का चरित्र निर्माण भी होता है.
अभी हाल में
दिल्ली विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर दिनेश सिंह ने उत्पादन के क्षेत्र
में रोबोट्स के उपयोग पर चिंता जताई. इनसे भारत का तैयार कपड़ों का निर्यात तथा जूता उद्योग प्रभावित होने वाला
है. इस सन्दर्भ में
शुमाखर द्वारा चर्चित बुद्ध के आर्थिक सिद्धांत विचारणीय हैं. एक व्यक्ति रोजगार के लिए अपने आराम का त्याग करता है.
मालिक उसके उस त्याग के बदले उसी मेहनताना देता है. मालिक कोई अहसान नहीं लेना चाहता. इसलिए वह रोबोट्स का उपयोग करता है. उसी प्रकार कामगार अपने ऊपर किसी बौस को पसंद नहीं करता और अपना स्वयम का
धंधा करना चाहता है.
आजकल कुछ Start
ups जैसे ओला आदि इंटरनेट का प्रयोग
कर असंगठित क्षेत्र के कामगारों को संगठित कर रहे हैं. उन्हें अपने काम का
उचित दाम मिलता है और उपभोक्ता को विश्वसनीय सेवा मिलती है. कंपनियों के मालिक भी
अच्छा मुनाफ़ा कमाते हैं.
वे चाहें तो अपने
विश्वसनीय कामगारों को तथा उनके परिवारों को बीमा आदि से सुरक्षा भी प्रदान कर
सकते हैं.
वेदों से कुछ उद्धरण
ऋग्वेद सूक्त 1.5:
I.
Industrial
Management & Training Work place atmosphere”
आ त्वेता निषीदतेन्द्रमभि प्रगायत
| सखाय: स्तोमवाहसः
|| RV 1.5.1;
पुनरुक्त AV20.68.11
(स्तोमवाहसःसखाय:) आओ आप सब प्रशंसनीय
गुणयुक्त कार्य करने में प्रवीण विद्वानों से मित्रभाव से सब मिल कर परस्पर प्रीति
के साथ शिल्प विद्या को सिद्ध करने में,
(आनिषीदत) एकत्रित हों,(इन्द्रम् अभिप्रगायत) इंद्र के गुणों का
उपदेश करें और सुनें कि जिस से वह अच्छी रीति से सिद्ध की हुइ शिल्प विद्या सब को
प्रकट हो जाए , और उस से (तु एत) तुम सब लोग सब सुखों
को प्राप्त हों .
Let
all in company of well qualified competent persons gather in a harmonious
friendly cooperative atmosphere, to learn and discuss for successful development
of well produced products that bring comfort and welfare to everybody Useful without causing harm to any body (even Environments)
पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्य्याणाम
| इन्द्रं
सोमे सचा सुते || RV
1.5.2, पुनरुक्त AV20.68.12
(पुरुणाम्) आकाश से ले कर पृथिवी
तक के सब असंख्य पदार्थों के साधक
(वार्य्याणाम)
अत्यंत उत्तम वरण
करने योग्य सद्गुणों को (ईशानम्) रचने में समर्थ, परन्तु (पुरूतमम्) दुष्ट स्वभाव वाले
जीवों के कर्मों के भोग के निमित्त और
(इन्द्रम्) जीवमात्र को सुख दु:ख देने वाले पदार्थों
के भौतिक गुणों का (
अभिगायत) उपदेश करो . और (तु सुते सोमे सचा) जो सब प्रकार की
विद्या से प्राप्त होने योग्य पदार्थों के निमित्त कार्य हैं उन को उक्त विद्याओं
से सब के उपकार के लिए यथायोग्य युक्त करो.
Find
and learn about all physical objects from sky to earth and their properties
that can be put to desirable use. And utilize the knowledge of the physical
properties objects in nature for welfare of all. But also bring out and speak
about the knowledge about the simultaneous harmful and cruel results.
II. Importance of Knowledge –ज्ञान का
महत्व
स घा नो योग आ भुवत्स राये स
पुरन्ध्याम | गमद्वाजेभिरा
स नः || RV 1.5.3, पुनरुक्त AV20.69.1
सब पदार्थ विद्याओं के ज्ञान के उपयोग से
निश्चय ही सुख प्रदान करने के लिए उत्तम समृद्धि के धन अन्न और आवागमन के
साधन प्राप्त होते हैं.Combination of (पुरंध्याम) multidiscipline knowledge (घा) definitely (आ भुवत) results in providing excellent bounties of food, public
conveniences of travel for comfort.
III.
सुरक्षा के नियम – Safety Code
यस्य संस्थे न वृण्वते हरी समत्सु
शत्रवः | तस्मा
इन्द्राय गायत || RV
1.5.4 पुनरुक्त, AV20.69.2
भौतिक पदार्थों और उन की प्रक्रियाओं के
सम्भावित दुष्परिणामों के रोकथाम के लिए सुरक्षा के साधनों का प्रचार करो.
Explore
and provide information & knowledge about the harmful properties of the
physical objects and processes.
IV. Importance of R&D अनुसंधान
का महत्व
सुतपाव्ने सुता इमे शुचयो यन्ति
वीतये | सोमासो
दध्याशिरः || RV
1.5.5, पुनरुक्त AV20.69.3
(सोमासो दध्याशिर:) अनुसंधान के ज्ञान से
(सुतपाव्ने सुता) उत्पन्न हो कर सुख
समृद्धि के साधनों की नदियां बह चलती हैं(सोमासो दध्याशिर:)
Results
of Research and development (सुतपाव्ने सुता) create a running stream of products & processes for
wellbeing.
V.
Make life comfortable सुखमय जीवन
त्वं सुतस्य
पीतये सद्यो वृद्धो अजायथाः | इन्द्र ज्येष्ठ्याय सुक्रतो || RV 1.5.6 पुनरुक्त, AV20.69.4
संसार के पदार्थों के सुख को ग्रहण करने ले
लिए विद्या आदि उत्तम ज्ञान से प्रेरित हो कर श्रेष्ठ अत्युत्तम कर्म करने वाले
पूज्य जनों का अनुसरण करो Reach the status of senior
entrepreneur by utilizing the vast store of knowledge and technology to bring
comfort and welfare in life of entire community.
VI. Aim of education शिक्षा का
लक्ष्य
आ त्वा विशन्त्वाशवः
सोमास इन्द्र गिर्वणः | शं ते सन्तु प्रचेतसे || RV 1.5.7 पुनरुक्त, AV20.69.5
जीवन को सुखदायी बनाने के लिए तुझ में
उत्तम व्याख्यान के ज्ञान तथा प्रशिक्षण से अति तीक्ष्ण बुद्धि और कर्मठ प्रवृत्ति
जागृत हो . (गिर्वणः)
By
good lectures training (विशन्त्वाशवः सोमास इन्द्र ) action oriented temperament fast thinking (शं ते सन्तु प्रचेतसे) should develop (आ त्वा) in you
त्वां स्तोमा
अवीवृधन् त्वामुक्था शतक्रतो | त्वां वर्धन्तु नो
गिरः || RV 1.5.8, पुनरुक्त AV20.69.6
उन्नति के लिए उत्तम ज्ञान और उपदेश की शिक्षा द्वारा तुम
सेंकड़ों काम करने का यश प्राप्त करो
By
Excellent education & training enjoy the infinite bounties of Nature
अक्षितोतिः सनेदिमं वाजमिन्द्रः
सहस्रिणम | यस्मिन विश्वानि
पौंस्या || RV 1.5.9 पुनरुक्त, AV20.69.7
संसार का समस्त भौतिक ज्ञान प्राप्त कर के
प्रकृति की असन्ख्य उपलब्धियों को सब के साथ बांट कर ग्रहण करों (अक्षितोतिः) Based on knowledge of universal Truth (यस्मिन विश्वानि
पौंस्या) by hard work in this physical world
(सनेदिमं वाजमिन्द्रः सहस्रिणम ) share
the infinite bounties for comfort and welfare .
VII. Honesty & Fair play
मा नो मर्त्ता अभि द्रुहन
तनूनामिन्द्र गिर्वणः | ईशानो यवया वधम् || RV 1.5.10, पुनरुक्त AV20.69.8
राग द्वेष भेद भाव स्वार्थ से प्रेरित हम अपनी वाणी और
व्यवहार से किसी भी जीवधारी का
शोषण और अहित न करें|
Motivated
by selfishness / greed do not bear ill will or cheat any one and ensure fair
play
RV
10-155 ऋ 10-155
1. Poverty alleviation & Social
leadership; सामाजिक
दायित्व
अरायि काणे विकटे गिरिं गच्छ सदान्वे। शिरिम्बिठस्य सत्वभि स्तोभिष्ट्वा चातयामसि ॥ ऋ 10-155-1
स्वार्थ और
दान
न देने की वृत्ति को सदैव के लिए त्याग दो. कंजूस और स्वार्थी जनों को समाज में दरिद्रता से उत्पन्न गिरावट, कष्ट, दुर्दशा दिखाई नहीं देते. परंतु समाज के एक अंग की दुर्दशा और भुखमरी आक्रोश बन कर महामारी का रूप धारण कर के
पूरे
समाज को नष्ट करने की शक्ति बन जाती है और पूरे समाज
को
ले डूबती है.
Banish the attitudes to miserliness and
selfishness and of not being disposed to give money in charity. Misers being
blind to suffering & deprivation of fellow beings bring misery upon
society. The resulting deluge caused by famines and social misery will drown
you also in it.
चत्तो इतश्चत्तामुतः सर्वा भ्रूणान्यारुषी । अराय्यं ब्रह्मणस्प्ते तीक्ष्णशृङ्गोदृषन्नहि ॥ ऋ 10-155-2
अदानशीलता समाज में प्रतिभा विद्वत्ता की भ्रूणहत्या
करने
वाली सिद्ध होती है. तेजस्वी धर्मानुसार अन्न और धन की व्यवस्था
करने
वाले राजा, परमेश्वर
इस
दान विरोधिनी
संवेदना विहीन
वृत्ति का कठोरता से नाश करें.
The life style of not sharing with others
around us is destroyer of all creative activities before their inception.
Strong social leadership should work to destroy such insensitive tendencies.
अदो यद्दारु प्लवते सिधोः पारे अपूरुषम् । तदा रभस्व दुर्हणो तेन गच्छ परस्तरम् ॥ऋ10-155-3
ऐसे स्वार्थी प्रजाजन इस
संसार रूपी समुद्र में बिना किसी लक्ष्य के जल पर बहते काठ जैसे हैं . उस तत्व का सदुपयोग करके समाज के संकट को दूर करो.
Such unguided people are like an aimlessly
floating piece of wood in the river of the society. It becomes the duty of
elders in society to provide guidance to such people. (to motivate them by
setting an example in public welfare services)
यद्ध प्राचीरजगन्तोरो मण्डूरधाणिकीः । हता इद्गस्य शत्रवः सर्वे बुद्धुदयाशवः॥ऋ10-155-4
यह अलक्ष्मी एक
लोहे के दाने छर्रे दागने वाली तोप जैसी है जो अनेक जनों को हिंसित करती है. इस के चलते शूरवीर जनों के सब प्रयास जल के बुलबुलों के समान नष्ट हो जाते
हैं
Uncharitable social malaise of
not sharing with community is like an automatic machine gun that shoots out
innumerable bullets that kills all efforts like water bubbles aimed at public
welfare. When such abominable, potentially violent, situations get to be known,
they require to be crushed very strongly by positive social forces.
परीमे गामनेषत पर्यग्निमहृषत । देवेष्वक्रत श्रवः क इमाँ आ दधर्षति ॥ऋ 10-155-5
समाज में अभावग्रस्त , दरिद्रता की आपदा से
निपटने के लिए समस्त
देवताओं द्वारा गौ
को
वापस ला कर , यज्ञाग्नि के द्वारा भिन्न भिन्न स्थानों पर स्थापित किया गया. गो पालन से प्राप्त
पौष्टिकता और जैविक अन्न से प्राप्त समृद्धि को कौन पराभूत कर सकता है.
कुछ अन्य विचार
1. When
society takes steps to establish cow based agriculture in households and
enables people
to
grow their own agriculture produce, nobody can stop public prosperity. This is
the modern concept of ZERO FOOD MILES, Decentralized Economy and SMALL IS
BEAUTIFUL.
2. पाश्चात्य सभ्यता के
अनुसार विशेष रूप से अमेरिका में श्रम की गरिमा Dignity of Labor का समाज में एक उत्तम उदाहरण मिलता है | जिस को भारतवर्ष में
पुन: स्थापित करने की बड़ी आवश्यकता है जिस
से समाज में ऊंच नीच कि
भावनाएं दूर की जा सकें | भारतीय सामाजिक
परम्परा अपने से आयु में बड़े , विद्वत्जनों, उच्च पदासीन, सब को सम्मान पूर्वक
सम्बोधन की है, जो अमेरिका मे नहीं पायी
जाती | पूंजीवादी समाज में तो केवल अमीरी और अभद्र
अमीर जीवन शैलि के प्रदर्शनको ही आदर्श माना जाता है |
In
USA unlike India, age, learning or status do not enter in to the way one
individual perceives and addresses another. Everybody is expected to be on
first name terms with each other. Private space is considered sacred and
jealously guarded. In western concept Employer employee relationships have been
strictly conceived as legal business contracts.
Indian
Society: Socially we conceive and address all non family male persons - Elders
as uncles, grandfathers,दादा,
चाचा , ताउ , बाबा, Equals as brother भाइ, भैया, यार, Younger ones as son बेटा . Elderly females are addressed as aunty, mother,
grandmother, भाभी,
दीदी, चाची, ताइ, मां, दादी., Younger females as sister, daughter बहन जी, बिटिया and so on. In fact there is very
little private space afforded to an individual.
In
India in Industry on the shop floors, psychologically we are programmed to
expect our Employers & supervisors to provide socially the behavior
conceived in the above conceived extended family relationships. The employer is
looked up to provide to the employees a care giver and well wisher like parents
in a family.
In
India an employee expects from the employer all that a son can expect from his
father in a family. भारतीय परम्परा में अपने स्वामी को एक कर्मचारी, भृत्य , सेवक अपने, और अपने परिवार के
दैनिक जीवन में दु:ख, सुख, प्रगति के लिए एक
अभिभावक के रूप में देखता है |
Employer एम्प्लायर शब्द का हिंदी में कोई पर्यायवाची नहीं
है|
For
India to suit our cultural ethos in order to have a more socially responsive
industrial and business climate even the western model of governance will
require to be critically considered. In management the STAFF functions have horizontal
reach and LINE functions have vertical orientations. At
planning stage most governmental regulations have to be considered in much
greater details before finalization. Every decision must involve a study of
largest order of decision making matrix of Inputs and Outputs. Urban planning,
design of Industrial estates, housing for the employees, family welfare
education and health care of the employees, professional growth by skill
enhancement, further education of the employees, availability of proper
education for the children of the employees are all that impact upon the social
peace and productivity of the industries.
Institutions
such as ESI, ITIs, Factories Act administration, Labor act Administration
cannot function as independent unrelated organizations. Even county’s economic
policies that affect inflation, public conveniences, transport, safety of
individuals and families cannot be conceived as having nothing to do with
situations that precipitate ugly situations of workers such as that happened at
Maruti Factory in MANESAR (Harayana).
3. Dignity of Labor:
Veda
Mantra ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्य: कृत: । ऊरू
तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्यां शूद्रो अजायत ।। RV 10.90.12 is grossly misinterpreted to
create a hierarchy of jobs that puts manual work in ‘low’ category and to be looked
down upon. Thus Indian society does not have ‘Dignity of Labor’ as seen in USA.
In India we have suffered a great setback by the now perceived Caste hierarchy.
4. Nurturing of Talents प्राकृतिक
गुणों का विकास हो
शिशुराङ्गिरस: । पवमान: सोम: । पंक्ति: ।Refrain line is:इन्द्रायेन्दो परि
स्रव Natural Talents may flower;.ध्रुव पंक्ति - इन्दो इंद्राय परि स्रव = ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का
विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामर्थ्य बढ़ाओ Different
temperaments;प्राकृतिक प्रतिभाओं का विकास हो.
नानानं वा उ नो धियो वि व्रतानि
जनानाम् । तक्षा रिष्टं रुतं भिषग्
ब्रह्मा सुन्वन्तमिच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्रव ।। RV 9.112.1 Humans manifest different traits.
Work with Physical Objects; One has an inclination to be skilled with physical
objects and techniques. Work with living Objects; One wants to become a healer,
a doctor to bring comfort by cure to others. Work on Minds; One wants to be a
learned person interested in bringing bounties of wisdom to others. The
motivating force in humans manifests in various forms, and needs to be nurtured
accordingly. Natural Talents may flower मनुष्य भिन्न भिन्न प्रकृति के हैं. कोई शिल्पकार – वस्तुओं के स्वरूप को
सुधारने वाला बनना चाहता है;
तो कोई वैद्य- भिषक बन कर प्राणियों
के स्वास्थ्य मे सुधार लाना चाहता है;
तो अन्य ज्ञान का
विस्तार कर के समाज में दिव्यता की उपलब्धियों के लिए शिक्षा यज्ञादि अनुष्ठान
कराना चाहता है.इन सब प्रकार की
वृत्तियों के विकास के अवसर उपलब्ध कराने चाहिएं. ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का
विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामर्थ्य बढ़ाओ
5. Set up Different Avenues of
Education
जरतीभिरोषधीभि: पर्णेभि: शकुनानाम्
। कार्मारो अश्मभिर्द्युभिर्हिरण्यवन्तमिच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्रव ।।RV 9.112.2
Different
herbs, products from other living beings like feathers of a bird and such
materials have medicinal properties; Set up avenues to study and teach about
them.Technologies can provide opportunities to generate wealth by intelligent
working with minerals etc.; set up institutions for nurturing these talents. भिन्न भिन्न जड़ी
बूटियों, भिन्न भिन्न
प्राणियों के अवयवों से अनेक ओषधियां प्राप्त होती हैं. इन के प्रशिक्षण अनुसंधान
के साधन उत्पन्न करो.खनिज पदार्थों
इत्यादि से ज्ञान कौशल द्वारा धनोपार्जन सम्भव होता है. इन विषयों पर
प्रशिक्षण अनुसंधान के साधन उपलब्ध कराओ. ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का
विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामर्थ्य बढ़ाओ.
6. Different Vocations
कारुरहं ततो भिषगुपलप्रक्षिणी नना
।नानाधियोवसूयवोऽनु गा इव तस्थिमन्द्रायेन्दो परि स्रव ।।RV 9.112.3
I
am a musician, my family (father& Son) are medical practioners healing
diseases, my mother grinds corn to make our food. We all perform our duties to
make our contribution to sustain the society, like a cow sustains us all.मैं संगीतज्ञ हूं, मेरे पिता वैद्य हैं, मेरी माता अनाज को
पीसती है. हम सब इस समाज के
पोषण में एक गौ की भांति अपना अपनाअपना योगदान करते हैं.
7. Different predilections- भिन्न भिन्न स्वभाव रुचि
अश्वो वोळहा सुखं रथं
हसनामुपमन्त्रिण: । शेपो रोमण्वन्तौ भेदौ वारिन्मण्डूक
इच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्रव ।।RV 9.112.4
A routine worker like a horse
drawing a laden cart with good master & is contended.
Another person wants to spend time among friends making merry. Yet another one
has high libido and seeks female company. But natural talents must be developed
to find opportunities for community development.
साधारण व्यक्ति एक घोड़े की भान्ति एक
संवेदनशील स्वामी की सेवा में अपना भार वहन करने में सन्तुष्ट है. अन्य व्यक्ति मित्र
मंडलि में बैठ कर हंसी मज़ाक में सुख पाता है. अन्य व्यक्ति अधिक
कामुक है और स्त्री सुख की अधिक इच्छा
करता है. ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का
विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामर्थ्य बढ़ाओ|
8. वर्ण
व्यवस्था : Varn Vyawasthaa
ऋग्वेद और राज निघंटु के आधार पर ब्राह्मण
क्षत्रिय वैश्य शूद्र ये शब्द
जातिवाचक संज्ञा नहीं हैं केवल विशेषण हैं | ऋग्वेद के अनुसार According to RV9.112 calls for all
Natural Talents to flourish; प्राकृतिक गुणों का विकास हो| There is no sanction in Vedas of
castes by birth system वर्ण -
ब्राह्मण, क्षत्री,वैश्य,शूद्र जाति जन्म से
नहीं होते.
It
classifies soils, trees and plants, animals as ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य & शूद्र.
According
to our pseudo media tyrants, he is castiest! So narrow-minded as he divided
even land! Even he identifies colors! Black is for Shudra! Protest! Black
and Dalits! What a castiest man निघंटु was!
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र, राज निघंटु के आनूपाद
पर्व में निम्न उद्धरण के अनुसार भूमि,
मट्टी, स्थान इत्यादि के
गुणवाचक शब्द परिभाषित किए गए हैं
तत्र क्षेत्रे ब्रह्मभूमीरुहाढ्यं
वारिस्फारं यत्कुशाङ्कूरकीर्णं ।रम्यं यच्च श्वेतमृत्स्नासमेतं तद्व्याचष्टे
ब्राह्मं इत्यष्टमूर्तिः । । १.९
It
is Brahman land where there are ample trees, ample water sources and where
majority color is पांडू or
white.
ताम्रभूमिवलयं विभूधरं
यन्मृगेन्द्रमुखसंकुलं कुलं ।घोरघोषि खदिरादिदुर्गमं क्षात्रं एतदुदितं पिनाकिना ।
। १.१०
It
is Kshtriya land where metal color dominates in nature, mountains, lions and
other animals roaring voice stay.
शातकुम्भनिभभूमिभास्वरं
स्वर्णरेणुनिचितं विधानवत् ।सिद्धकिंनरसुपर्वसेवितं वैश्यं आख्यदिदं इन्दुशेखरः ।
। १.११
It
is Vaishya land where yellow color dominates in nature, golden land, golden
flowers etc.श्यामस्थलाढ्यं बहुशस्यभूतिदं
लसत्तृणैर्बब्बुलवृक्षवृद्धिदं ।धान्योद्भवैः कर्षकलोकहर्षदं जगाद शौद्रं जगतौ
वृषध्वजः । । १.१२
It
is Shudra land where soil is of black color, suitable for small plants &
grains.
त्रादुदितं अनघं ब्राह्म
तत्सिद्धिदायि क्षत्रादुत्थं वलिपलितजिद्विश्वरोगापहारि ।वैश्याज्जातं प्रभवतितरां
धातुलोहादिसिद्धौ शौद्रादेतज्जनितं अखिलव्याधिविद्रावकं द्राक् । । १.१३
“Food
substances grown on Brahman land are good for increasing intellectual
vigor(Brain’s color whitish Gray due to Glial cells), grown on Kshtriya
land(Jungle) are strength-enhancers (Tribes played vital role in Ancient Army strength),
grown on gold land are good for mineral deficiency (Vegetables are generally
grown on yellow land), grown on shudra land are good to fight against diseases
(Grains and Ayurvedic herbals – A valuable Ayurvedic ingredient Ajwain is
cultivated in black soil).”Land color depends on their chemical nature. For
example, as black soil has Volcanic origin, it is rich in calcium carbonate,
lime , potash & magnesium. It is deficient in phosphoric acid. Food from
Shudra land fights against diseasesअअ. This
food is good for immune system. Shudra land is rich in Magnesium. During the
last few years, magnesium (Mg) has been subject of research due to its
functionality in the organism. It is one of the most important micronutrients,
and therefore its role in biological systems has been extensively investigated.
Particularly, Mg has a strong relation with the immune system, in both
nonspecific and specific immune response, also known as innate and acquired
immune response.
Do
you protest this scientific वर्ण व्यवस्था! Or are you ready to explore वर्ण व्यवस्था, systematic rational approach of
living?
9. Effects of lack of our sensibilities towards women
Female fetuses that are destroyed bring forth in
the society an atmosphere of rampant violence where chivalrous, strong men
start violence and fights among themselves. This is seen as the curse of female
fetuses destroyed.
ये
गर्भा अवपद्यन्ते जगद् यच्चापलुप्यते। वीरा ये तृह्यन्ते मिथो ब्रह्मजाया हिनस्ति तान्॥ अथर्व 5-17-7
It
may seem very odd but the lack of sense of their duty is related to social
fabric of the society. According to Vedas all the current ills of society are
related to the place of honor accorded to women in society.
12-नास्य जाया शतवाही कल्याणी तल्पमा शये ।
यस्मिन
राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-12
Even the ruler protected/surrounded by
hundreds of security force does not feel secure enough, to have a sound sleep
in his chamber, in a Nation where females are commandeered/forced upon against
their free will.
( was Indira Gandhi safe even when
surrounded by highest security?)
13-न विकर्णः पृथुशिरास्तस्मिन्वेश्मनि जायते ।
यस्मिन्
राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-13
No intellectual scholars grow where females
are exploited, commandeered/forced upon against their free will & the
nation/society becomes deaf /ignorant to the voice of the people..
14-नास्य क्षत्ता निष्कग्रीवः सूनानामेत्यग्रतः ।
यस्मिन्
राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-14
Chivalrous strong men do not show up in
nations, where females are exploited, commandeered/forced upon against their
free will & the nation/society becomes deaf /ignorant to the voice of the
people.
15-नास्य श्वेतः कृष्णकर्णो धुरि युक्तो महीयते ।
यस्मिन्
राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-15
By not being able to mount the horses in
their chariots - to perform Aswamedh yagna - That
nation/state loses face and influence in the world, where females are
exploited, commandeered/forced upon against their free will & the
nation/society becomes deaf /ignorant to the voice of the people. 16-नास्य
क्षेत्रे पुष्करिणी नाण्डीकं जायते बिसम् ।
यस्मिन्
राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-16
Water bodies do not sport lotus flowers and
the lotus flowers do not bear seeds to propagate themselves, - The environment
suffers, where females are commandeered/forced upon against their free will.
17-नास्मै पृश्नि वे दुहन्ति ये ऽस्या दोहमुपासते ।
यस्मिन्
राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्या ॥ अथर्व 5-17-17
Cows are no longer able to provide good
quantities of milk, where females are exploited, commandeered/forced upon
against their free will & the nation/society becomes deaf /ignorant to the
voice of the people.
18-नास्य धेनुः कल्याणी नानड्वान्त्सहते धुरम् ।
विजानिर्यत्र
ब्राह्मणो रात्रिं वसति पापया ॥ अथर्व-5-17-18
Neither the cows bring welfare to society
nor oxen get yoked, and without active participation of the women in the
society, men are given to crime in night life.
10. Wages & Happiness
In
present Industrialism wages are mainly thought to be a good measure of happiness
and well-being. However, when researched, it is found to be less significant
than predicted. Although individuals with higher income levels may report
overall satisfaction with their lives, they often enjoy themselves less on a
daily basis and experience greater moments of stress than those with lower
incomes. When does income make a significant difference in our level of
happiness? If we struggle to afford good housing, food, or education, both life
satisfaction and mood plummets. Edward Diener, a premier researcher in the
field of Positive Psychology, found that once a person's basic needs are met,
additional income does little to raise his or her sense of satisfaction with
life. Many other cross-cultural and longitudinal studies have also shown a very
low correlation between material wealth and happiness, except in cases of
extreme poverty where people were deprived of basic needs. The present system
of Industrialism has proven itself even in the western countries to lack
social, physical, ecological and even financial sustainability. In Social areas
there are growing old people care problems, family strife and teen
age problems, greater social disparities, poverty, deprivation, exploitation of
weaker sections of society, children and females. On physical plane Ecological
problems are the manifestation of this form of Industrialism. We have to
redefine our objectives. To ensure sustainability we have to plan for a
different paradigm of Industrialism and also find asustainable rate of growth.
‘Greed is good’ has been a guiding principle of western culture. Even for
religion like Christianity poverty, ignorance, deprivation, disease and
consequential mental unrest are seen to offer great opportunities to spread the
word of Jesus for the salvation of unfortunate non Christians. The object is
greed to enhance Christian population to earn by proselytizing the gratefulness
of unfortunate poverty disease stricken masses.It is almost like a political
party trying to widen its vote bank by offering pre-poll inducements. This is
almost like first spreading a disease and then pushing your sales of medicines
as a cure. They do not want to spread the wisdom and opportunities for the poor
and deprived to bring about a positive change in their life style to be free from
hunger and disease.By faster mass production techniques, a small group of
industry owner seek very fast rise in their riches. For this a large supply of
cheap sweat labour is required. Migrant labor from far off places flocks to
join the new industries in their search for livelihood. Most often this labour
suffers forced bachelorhood. With no family to support and live with raises two
very important problems that impact on our current labour scene. Firstly the
worker has no responsibility to feed his family in the town where he works. His
wage is about the minimum subsistence wage. He can afford to indulge in
irresponsible behavior. His family back home depends on his joint family and
whatever monthly remittances this worker can send home. Secondly staying away
from his family gives cause for unhealthy food, alcohol and sex. Only cure is
that industry should not depend on emigrant labor, but should try to provide
reasonable accommodation and adequate wage or else recruit local labor and
provide them with dormitory like accommodation. This can allow them to visit
their families over the week easily. Perhaps even a smaller work week of 5 or 4
days can be conceived. That in itself increases the gap between very rich. (Very
small in numbers of industrial empire owners and vastly large sweat force of
labor.) Here again the system requires coexistence of immense vulgar rich and
abysmally poor. Even the labor union leaders are often seen to be inadvertently
participating in unholy collusion with political parties, who see in this
unrest opportunity to increase their vote banks. Employees in Banking sector
are among the best paid in India. Still the Bank Employees unions are often
seen going on strike for higher wages. Govt. Employees are also among the
better paid employees in India. Govt. through
periodic pay commission awards keeps them in good humor. But corresponding
improvement & dedication to duty are nowhere seen.
Labor
Unions in India only want to enhance the greed of the workers for higher wages,
without making any attempt to enhance the skill, education base of the work
force to improve their productivity to justify a larger share in their
earnings. It is also like the Indian governments giving continuous pay
commission awards to increase salaries of the baboos, with an eye on the next
elections, with no simultaneous effort to enhance the productivity, efficiency
and service elements. The ever widening gulf between poor and rich are
unavoidable in the present model of growth.
Accompanying higher rates of inflation, social
strife, and urban white collar crimes, are a manifestation of the instability
inherent in the system. There are hardly any opportunities to enhance the skill
and educational level of work force in SMEs particularly and even in MNC controlled
larger industries.
11. Action Plan?
With
this background can there be permanent nonpartisan platform to brainstorm such
social & policy issues to conceive a road map for our nation? In fact
according to our founding fathers the Rajy Sabha was expected to do this duty
and act as a धर्मसभा for
the nation.
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