Wednesday, July 14, 2021

 


स्वस्थ जीवन विद्या – Life science ( महर्षि दयानंद विषय सूचि )  

Reiki in Vedas? Healthy life - भौतिक कल्याण मार्ग 

RV10.137 same as AV4.13

Rigved 

ऋषि: - सप्तऋषिय: भरद्वाज:, सप्तऋषिय: = शरीर में निहित षड इन्द्रियां और सप्तम आत्मा में  ज्ञान, शतपथ ब्राह्मण ने दो कान, दो  आंख, दो नाक और जिह्वा को सप्तर्षि  कहा है । निरुक्त के अनुसार मन सहित ज्ञानेंद्रियां और बुद्धि ये सात  ऋषि जीवात्मा में निहित हैं. और वे सातों प्रमाद  रहित हो कर शरीर  की रक्षा  करते  हैं, भरद्वाज: = जो शक्ति का संचार करता है =  One who provides strength of immunity 

देवता: - विश्वेदेवा:   

Atharv ved ऋषि: - शन्ताति:= जो शान्ति  प्रदान करता है. = One who provides solace 

ऋषि: - विश्वेदेवा:   


ऋषि: - शन्ताति:= शान्ति देने वाला, देवता: -चंद्रमा विश्वेदेवा च    

1.उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः  ।

उतागश्चक्रुषं देवा देवा जीवयथा पुनः  । ।RV10.137.1, AV4.13.1

व्यावहारिक   व्याख्या : -  (मन सहित ज्ञानेंद्रियां और बुद्धि ये जीवात्मा में निहित सप्तऋषि सात देवता हैं जो प्रमाद  रहित हो कर बिना विश्राम लिए  शरीर  की रक्षा  करते  हैं)  हमारी  आधी: - मनोकामना  सिद्ध न होने पर मानसिक वेदना निराशा अवसाद और रोग शारीर में पनपने लगते हैं .  

स्वकर्म से (यम और नियम के  पालनसे ) सावधान कर के हमें बारबार इन व्याधियों से ऊपर उठाएं । नियम भंग आदि के अपराध करने पर भी पुन: स्वस्थ जीवन प्रारम्भ करने  की बुद्धि दें .

Clean Air for breathing

श्वास के लिए पान अपान वायु  

2. द्वाविमौ वातौ वात आ सिन्धोरा परावतः  ।

दक्षं ते अन्य आवातु व्यन्यो वातु यद्रपः  । । RV10.137.2, AV4.13.2

व्यावहारिक   व्याख्या : -  यह गति करने वाली दो प्रकार की वायु हैं. एक तेरे हृदय सिंधु: में  और दूसरी दूर के बाहर के प्रदेश की. दूर प्रदेश की वायु तेरे लिए बल बहा कर लाए  और तेरे हृदय प्रदेश की वायु जो (रप: ) दूषित है पाप करने वाली है उसे दूर प्रदेश ले जाए.

पान  अपान दो प्रकार की श्वास हैं एक पान करने योग्य( और दूसरी अपान पान न करने योग्य) . पान करने योग्य स्वच्छ वायु बाहर से दूर से शरीर के लिए बल देने वाले तत्व ले कर आती है. श्वास लेने के पश्चात वह स्वच्छ  वायु हमारे शरीर का मल ले कर अस्वच्छ- दूषित हो  जाती है और दूर जा कर पुन: स्वच्छ  बल दायक हो कर हमारे श्वास  के योग्य  बन कर  आती है. 

3. आ वात वाहि भेषजं वि वात वाहि यद्रपः  ।

 त्वं हि विश्वभेषज देवानां दूत ईयसे  । । RV10.137.3, AV4.13.3 

व्यावहारिक   व्याख्या : -  रोगों को नष्ट  करने वाली वायु जो हमारे शरीरस्थ देवताओं के कल्याण का दूत है  हमारे पास आए  और जो दूषित रोग व्याधी देने वाली वायु है वह हम से दूर चली जाए. 

इस संदर्भ मे ऋग्वेद का मंत्र “ उपह्वरे गिरीणां संगथे च नदीनाम्‌ । धिया विप्रो अजायत ॥ RV8.6.28,यजु 26.15   बड़े महत्व का है. 

Air Pollution treatment (Do not use pesticides, insecticides) 

स्वच्छ  वातावरण निर्माण (अहिंसक शांति दायक रीति से )  

4.आ त्वागमं शंतातिभिरथो अरिष्टतातिभिः  ।

   दक्षं त उग्रं आभारिषं परा यक्ष्मं सुवामि ते  । । RV10.137.4 , AV4.13.5

व्यावहारिक   व्याख्या : -  शान्ति सुख देने वाले और अहिंसाकारी  से जीवन में मृत्यु जैसी भयंकर सम्भावनाओं से  मुक्ति  पाओ. कल्याणकारी सुख जनक बल और अन्नादि  से शरीर को क्षीण करने वाले तत्वों को दूर करो. ( इस मंत्र में स्वच्छ पर्यावरण प्राप्त करने के लिए हिंसक कीटनाशकों के प्रयोग के स्थान पर प्राकृतिक  शांतिपूर्ण साधनों के व्यवहार का उपदेश भी मिलता है. स्वच्छ पर्यावरण से प्राप्त स्वच्छ जल  और जैविक स्वच्छ अन्न फल कंदमूल  इत्यादि  के आहार के आहार का निरोगी जीवन में  महत्व भी दिखाया है )   

5.त्रायन्तां इमं देवास्त्रायन्तां मरुतां गणाः  ।

त्रायन्तां विश्वा भूतानि यथायं अरपा असत् । । RV10.137.5 , AV4.13.4

व्यावहारिक   व्याख्या : -  हमारी सब देवता स्वरूप ज्ञानेंद्रियो की  सब तीन  प्रकार की रोगदायक सूक्ष्माणुओं pathogens से  रक्षा द्वारा हमारा पञ्चभूत तत्वो का शरीर ( अरपा: )  निष्पाप अथवा  निर्दोष हो जाए 

( सूक्ष रोगाणुओं को  आधुनिक विज्ञान तीन श्रेणियों में बांटता है. )  



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Our physical body should be free from any ailments by being protected from all the three types of Pathogens. 

The 3 types of pathogens are bacteria, viruses and fungi. 


Examples of each:

1. Bacteria: TB, some types of meningitis, MRSA 

2. Virus: 'Flu, common cold, measles

3. Fungus: Thrush, athlete foot  

6 & 7  Reiki in Veda 

  6.  अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तरः  ।

 अयं मे विश्वभेषजोऽयं शिवाभिमर्शनः  । । AV4.13.6

व्यावहारिक   व्याख्या : -  यह मेरा एक हाथ भाग्यशाली है और दूसरा हाथ तो उस से  भी अधिक भाग्यशाली है. औषधियां मेरे बांए हाथ का काम हैं,  मेरे दाहिने  हाथ के तो स्पर्श मात्र से रोग दूर हो जाएं 

6. आप:  इद्वा उभेषजीरापो  अमीवचातनी ।

आप: सर्वस्य भेषजीस्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम्‌ ॥ RV 10.137.6 

व्यावहारिक   व्याख्या : -  जल ही औषधी के समान हैं  जो स्नान पानादि से सुख के लिए औषधी रूप से रोगों का शमन करते हैं. जल ही सब रोगाणुओं को नष्ट करने वाले सब का हित करने वाले रोगनाशक औषधी हैं.  

  7a. हस्ताभ्यां दशशाखाभ्यां जिह्वा वाचः पुरोगवी  ।

अनामयित्नुभ्यां हस्ताभ्यां ताभ्यां त्वाभि मृशामसि  । । AV4.13.7

7b. हस्ताभ्यां दशशाखाभ्यां जिह्वा वाचः पुरोगवी ।

अनामयित्नुभ्यां त्वा ताभ्यां त्वोप स्पृशामसि ॥ RV 10.137.7

व्यावहारिक   व्याख्या : -  दोनो  हाथ  की दस अंगुलियां और  जिह्वा द्वारा वाणी  के प्रयोग से और साथ साथ दोनों  हाथों   के स्पर्श  तुम्हें निश्चित रूप से रोग  मुक्त करते  हैं  . 

 

  







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