Wednesday, August 3, 2011

Consumerism Avoidance

Consumerism avoidance
RV1.24
Hedonistic life style, loss of family values, vulgar display of opulence, leading to jealousy and unrest in society, artificial life style living indoors with more diseases are seen as topics in this Sookt
15मंत्र- देवता - 1 क: (प्रजापति:), 2 अग्नि:, 3-5 सविता, 5 भगो वा, 6-15 वरुण:। 1,2,6-5 त्रिष्टुप्, 3-5 गायत्री ।
ऋषि:- आजीगर्ति: - आजीविका के लिए गड्ढे में गिरने को तैयार, शुन:शेप:- सांसारिक भोग विलासों से स्पर्श का इच्छुक, स कृत्रिमो विश्वामित्रो देवरात – देवताओं के धन के स्वार्थ वश उपभोग की कृत्रिम जीवन शैलि से अपने को बचा कर विश्व का मित्र बनने वाला

1.कस्य नूनं कतमस्यामृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम ।
को नो महया अदितये पुनर्दात् पितरं च दृशेयं मातरं च ।। ऋ1.24.1

What is that desirable guidance for living a healthy beautiful life for 100 years? अमृत – पूर्ण सौ वर्ष की आयु, ‘ स नह्यस्वामृताय कम्‌’ अथर्व 14.1.42 , चारु-चरण शील – चलने वाला |
That will (after this life) bless me again with my elders- father and beautiful to hold my mother.
वह कौन सी उत्तम जीवन पद्धति है, जिस के चलते मैं अपनी मनोकामनाओं को सिद्ध करके पूर्ण सौ वर्ष की आयु को प्राप्त कर सकूं ? जिस के बाद भी मुझे पुन: अपने पितर और वात्सल्यमयी मां प्राप्त हो.


अग्ने: वयं प्रथमस्य अमृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम ।
स नो महया अदितये पुनर्दात् पितरं च दृशेयं मातरं च ।। ऋ1.24.2
First of all we need to take lessons from अग्नि: the ever performing fire energy forms (harnessing, utilizing, conserving all energy forms) for living a zest full life in accordance with laws of Nature to fulfill our desires as expressed above.
सब से प्रथम हमें अग्नि देव से जीवनमें आंतरिक और बाह्य ऊर्जा का सदुपयोग, और संरक्षण करने की प्रेरणा ले कर देवताओं के अनुकूल अपना जीवन बनाना होग. वे हमें इस जीवन मेंअपना निर्धारित लक्ष्य प्राप्त कराएंगे. ( इस मंत्र में ऊर्जा के अग्नि तथा सौर इत्यदि स्रोतों के सदुपयोग के साथ आंतरिक ऊर्जा इन्द्रिय निग्रह ब्रह्मचर्य , जितेंद्रिय होने का उपदेश सफल जीवन के लिए प्राप्त होता है)

अभि त्वा देव सवितरीशानं वार्याणाम् ।
सदावन् भागर्मीमहे ।। ऋ 1.24.3
We also need to remind ourselves here that all the material blessings that come to us are only our allocated share.
हमारे उपभोग के लिए केवल हमारा भाग ही सविता देव की कृपा से हमें प्राप्त होता है.
This is also stated यजु 40.1 “ईषा वास्यमिदं सर्व यत्किं च जगत्यां जगत्‌ |
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधा कस्यस्विधनम्‌ ||


यश्चिध्दि त इत्था भग: शशमान: पुरा निद: ।
अद्वेष्ररे हस्तयोर्दधे ।। ऋ 1.24.4
Hard well earned money does not lead to vulgar lavish life style, does not provoke jealousy and maintains friendly feelings in society.
दोनो हाथों से पुरुषार्थ से प्राप्त धन कभी निंदित नहीं होता. (उस धन का निन्ध्य प्रकार से व्यय भी नहीं होता) ऐसे धन के कारण लोक निन्दा नहीं होती , प्रस्पर प्रीति में कमी भी नहीं आती.


भगभक्तस्य ते वयमुदशेम तवावसा ।
मूर्धानं राय आरभे ।। ऋ 1.24.5
May I reach the heights of earning riches as justified by my actions, but these riches may not get to my head. (I am only the custodian in this act of wealth generation)
मेरे भाग्य में जिस धन की प्राप्ति द्वारा मुझे जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुंचना है वह मेरी बुद्धि को सद्दिशा प्रदान करे. ( लक्ष्मी प्राप्त कर के उल्लू मेरा वाहन न बन जाए)

About Consumerist strategies


6.न हि ते क्षत्रं न सहो न मन्युं वयश्चनामी पतयन्त आपु: ।
नेमा आपो अनिमिषं चरन्तीर्न ये वातस्य प्रमिनत्न्यभ्वम् ।। ऋ 1.24.6
Individual in his pursuit of wealth becomes uncontrollable, goes wild, like
space flight of birds, or wild undisciplined movement of winds or waters.
धनों के प्राप्त करने के संकल्प किसी क्षेत्र की सीमाओं, मर्यादा से नहीं बंधते. आकाश में
पक्षियों की उड़ान, वायु और जल प्रपातों की अबाध हिंसक गति के समान ये निर्बाध
गतिमान होत हैं.


7.अबुध्ने राजा वरुणो वनस्योर्ध्वं स्तूपं ददते पूतदक्ष: ।
नीचीना: स्थुरुपरि बुध्न एषामस्मे अन्तर्निहिता: केतव: स्यु: ।। ऋ 1.24.7
Sun like an omnipresent king- Varun- placed high above with its search beam like arrays of light targets us down below to purify environments provide, vegetation, health, energy, bright positive temperaments.
सूर्य , एक राजा की तरह संसार को पवित्रता और बल द्वारा व्यवस्था मे चलाने के लिए अपनी रश्मियों को नीचे की ओर पृथ्वी लोक पर छोड़ता है. पृथ्वी पर स्वच्छता, वन सम्पदा, और पवित्र मानसिक स्थिति का जन्माधार है.

8.उरुं हि राजावरुणश्चकार सूर्याय पन्थामन्वेतवा उ।
अपदे पादा प्रति धातवेऽक: उतापवक्ता हृदयाविधश्चित् ।। ऋ 1.24.8
Sun is established in large cyclic orbit in space that does not entertain human foot falls. But the elements run fast to kill all the germs and diseases that afflict hearts.
सूर्य अपनी चक्राकार कक्षा मे चलता है जिस में कोइ अपने पांव नहीं रखता. परन्तु अपने ताप के प्रभाव से मानव हृदय को कष्ट देने वाले तत्वों रोगाणुओं का विनाश करता है.

9.शतं ते राजन् भिषज: सहस्रमुर्वी गभीरा सुमतिष्टे अस्तु ।
बाधस्व दूरे निऋृतिं पराचै: कृतं चिदेन: प्रमुमुग्ध्यस्मत् ।। ऋ 1.24.9
That Divine physician has created in nature innumerable, widely distributed, very effective preventives and cures to remove the diseases provided we conduct ourselves wisely.
प्रभु सहस्रों जीवन देने वाली ओषधियों को प्रदान करके हमें कष्ट से मुक्ति दिलाता है, जिस से हम दुर्गति से बचें.

10.अमी य ऋक्षा निहितास उच्चा नक्तं ददृश्रे कुहचित् दिवेयु: ।
अदब्धानि वरुणस्य व्रतानि विचाकशच्चन्द्रमा नक्तमेति ।। ऋ 1.24.10
All these stars positioned high above and the moon are visible during nights. Where do they disappear to again show up in a cyclic order?
यह आकाशीय तारा गण चंद्रमा जो रात को दिखते हैं, कैसा व्रत है कि फिर कहीं चले जाते हैं ?

11.तत् त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस् तदा शास्ते यजमानो हविर्भि: ।
अहेळमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मा न आयु: प्रमोषी: ।। ऋ 1.24.11
Let us pray by offerings of havi in yajna, for grant of the bounties of Nature to enable us to continue to perform our right duties by being lead actors in this world order, in order that our lives do not get discounted.
हम यज्ञ मे हवि द्वारा यह प्रार्थना करते हैं कि हमारे लिए अनुकूल प्ररिस्थिति बनी रहें, और हमारा जीवन अल्पायु न हो


12.तदिन्नक्तं तद् दिवा महयमाहुस् तदयं केतो हृद आ वि चष्टे ।
शुन:शेपो यंमह्वद् गृभीत: सो अस्मान् राजा वरुणो मुमोक्तु ।। ऋ 1.24.12
In my inner heart I hear the voice advising me to live an orderly life, by giving up hedonistic ways. I seek the blessing to lead a life in tune with order of Nature.
रात और दिन सब समय हृदय में अंतरात्मा संसारिक बंधनों से मुक्त हो कर प्रकृति की लय मे चलने का परामर्श देता है. ( हम उस अंतरात्मा को सुनें)
13.शुन:शेपो हयह्वद् गृभीत: त्रिष्वादित्यं द्रुपदेषु बध्द: ।
अवैनं राजा वरुण: ससृज्यात् विद्वान् अदब्धो विमुमोक्तु पाशान् ।। ऋ 1.24.13
The hedonist is bounded by the triple worldly forces. (तृष्णा-पुत्रेष्णा, वित्तेष्ण,लोकेष्णा ) Wise counsel accompanied by Grace will unshackle him.
संसारिक भोगवाद में मानव तृष्णा के बंधनों से जकड़ा रहता है. बुद्धिमान उसे इन पाशों से मुक्त होने की सलाह देते हैं.

14.अव ते हेळो वरुण नमोभिरव यज्ञेभिरीमहे हविर्भि: ।
क्षयन्नस्मभ्यमसुर प्रचेता राजन्नेनांसि शिश्रथ: कृतानि ।। ऋ 1.24.14
We want to undo the wrath of nature that we have brought upon ourselves (by our neglect of our duties) now by performing Yagnas and offering of havis in the Yagnas. ( Yagnas are defined as triple action consisting of charity, community participation and humble prayerful actions by offering of havis in to fire. Offering of havi in to fire is offerings for entire community, atmosphere and living creatures, not in pursuit of personal selfish ends.
हम सब बंधनों के निवारण और सब पापों से मुक्त होनेके लिए यज्ञ (देवपूजा,संगतिकरण और दान) द्वारा हवि दान वृत्ति से इन पापों को शिथिल करें
15.उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं वि मध्यमं श्रथाय ।
अथा वयमादित्य व्रते तवानागस: अदितये स्याम ।। ऋ 1.24.15
May we break the strong shackles that bind us to pursue a virtuous path in life.
जिन दृढ़ पाशों से हम बंध कर अपने को पाते हैं, उन को तोड़ कर हम निरपराधी हो कर सुख के लिए व्रत लें.

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