RV10.153 Child Training by Mother
ऋषि: देवजामयो
देवमातरो=देवताओं को जन्म देने वाली जिन की सन्तान में इन्द्र के गुण होते हैं ऐसी माताएं । देवता: इन्द्रो । गायत्री ।
1.ईङ्खयन्तीरपस्युव इन्द्रं जातमुपासते । भेजानस: सुवीर्यम् ।। 10.153.1
आस्तिक
विश्वास रखने वाली माताएं क्रियाशील स्वयं सुव्यवस्थित संयमी जीवनशैलि द्वारा ही संतान को संयमी जितेंद्रिय बना पाती हैं.
Mother having faith –positive thinking,
proactive living an orderly life only are able to imbibe the right attitudes in
the infant child.
2.त्वमिन्द्र बलादधि सहसो जात ओजस: । त्वं वृषन् वृषेदसि ।। 10.153.2
ऐसी
माता बालक को जीवन में जितेंद्रिय हो कर बल से, ओज से, उत्साह से शक्ति सम्पन्न
बनाती हैं.
Mother instills the attitudes of self confidence, self reliance and action
oriented life in the child .
3.त्वमिन्द्रासि वृत्रहा व्य1न्तरिक्षमतिर: । उद् द्यामस्तभ्ना ओजसा ।। 10.153.3
जिस
प्रकार आकाश में मेघ को छिन्न भिन्न करके पृथ्वी पर उत्तम जीवन स्थापित होता है
उसी प्रकार माता ही बालक के मस्तिष्क को संसार में विघ्नकारी शक्तियों का विध्वंस
करके उत्कृष्ट ज्ञान सम्पन्न बना कर समाज
में सुख शांति स्थापित करने का व्यक्तित्व स्थापित करती है.
Mother instils the
confidence to never accept defeat and develop a mind to take the wider view of in
life.
Defeat all negative forces to bring welfare and health for society by taking
lesson from the elements how the clouds in the sky are smashed to provide life
and health on earth.
4.त्वमिन्द्र सजोषसमर्कं बिभर्षि बाह्वो: । वज्रं शिशान ओजसा ।।RV 10.153.4
माता
ही संतान में शारीरिक शक्ति , स्वास्थ्य और मानसिक आत्मबल की नींव डालती है.
Mother
has to cultivate in the child Physical strength to provide him with an aura of
strong proactive and sharp personality.
5.त्वमिन्द्राभिभूरसि विश्वा जातान्योजसा । स विश्वा भुव आभव: ।।
RV10.153.5
अपने ओज से समस्त शत्रुओं को पराभूत करता है.
He grows to achieve an incandescent
aura
overcome all the negative forces by his efforts,
on
earth and space.
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