Wednesday, April 9, 2014

Vedic Strategy for long life अपना जीवन स्वयं बना


Vedic Strategy for long life  अपना जीवन स्वयं बना
AV5.30 ऋषि: - उन्मोचन: (आयुष्काम:)= दीर्घायु की कामना की गुत्थी को  खोल कर सुलझाना, 
देवता: -  मन्त्रोक्ता: आयु:= सूक्त का विषय=मंत्रोक्ता की दीर्घायु की कामना 
Make a mission of your life.
जीवन मे एक लक्ष्य  होना चाहिए.
1.आवतस्त आवतः परावतस्त आवतः ।
इहैव भव मा नु गा मा पूर्वाननु गाः पितॄनसुं बध्नामि ते दृढं  । ।AV5.30.1
तेरा प्राण अब दृढ रूप से यहां स्थित है यह तेरा प्राण समीप से भी समीप  और  दूर से भी दूर देश से आ कर यहां अब स्थित है. जो तेरे से पहले के पितर (माता पिता बंधु बांधव सब ) अब  दूर चले गए अब उन के पीछे मत जा , उन को मत ढूंड. यहीं तेरी कर्मभूमि है. 
(आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी मनुष्य की मृत्यु का शीघ्र या देरी से प्राप्त होना,  उस की इच्छाशक्ति से सम्बंधित  है। मैं शीघ्र न मरूंगा, मैं दीर्घायु होऊंगा, मैं अपनी आयु धर्म कार्य में समर्पण करूंगा । इस प्रकार की मन में सुदृढ़ भावना रही , तो  अल्प आयु में जीवन का अंत न होगा.  परंतु यदि कोई विश्व की क्षणभंगुरता का ही ध्यान करेगा तो स्वयं क्षणभंगुर बनेगा ही  ।  आत्मविश्वास ही दीर्घायु प्राप्त करने के अन्य अनुष्ठानों की आधारशिला - नींव  है । दीर्घायु के लिए अन्य अनुष्ठान तभी प्रभावशाली हो सकते हैं जब पहले आत्मविश्वास की नींव सुदृढ़ हो । पूज्य सातवलेकर जी से उद्धृत )  
Your life is firmly rooted here, do not wander from here. Who knows if have come from very far or very close by? Do not go seeking after your departed near and dear ones.
(Firm belief in purposefulness of life is the very foundation of good health and longevity. That one has a mission in life and dedicates himself to accomplish that is the very base on which other measures build towards achieving healthy, cheerful and long life.)      

2.यत्त्वाभिचेरुः पुरुषः स्वो यदरणो जनः ।
उन्मोचनप्रमोचने उभे वाचा वदामि ते  । ।AV5.30.2
यदि कोइ सगा सम्बंधि, मित्र अथवा प्रतिद्वंदि तुम्हार अहित करता है , घातक प्रयोग करता है, तब उस परिस्थिति से छूटने , अपना संतुलन न खोने के लिए मेरे परामर्श को सुन.   
If any other person be it your friend, relation, rival or villain causes hurt to you, take my good counsel and do not lose your cool.

3. यद्दुद्रोहिथ शेपिषे स्त्रियै पुंसे अचित्त्या  ।
उन्मोचनप्रमोचने उभे वाचा वदामि ते  । ।AV5.30.3
यदि नासमझी से तू ने किसी स्त्री अथवा पुरुष से दुर्वचन कहा है अथवा दुर्व्यवहार किया है, तो उस कठिनाइ से निकलने के लिए मेरा परामर्श है उन्मोचन और प्रमोचन .
(उन्मोचन कठिन परिस्थिति की समस्याएं  क्यों उत्पन्न हुइ इन्हें  सुलझा कर झगड़े को बढ़ने न  देना. समस्या का सुलझाना है यही आरोग्य बढ़ा कर दीर्घायु देता है.
प्रमोचन दूसरों की  समस्याओं को  ना समझना और सुलझाना,  चिंता कठिनाइयों को  बढ़ा कर मानसिकता  को दूषित  करता है, दूसरों के लिए अपशब्द प्रयोग करना, गालियां देने से प्रथम तो अपना मन बुरे विचारों से भर जाता है, और वे जो वैसे हीन  विचार के शब्द सुनते हैं उन में वैसे ही हीन भाव जम जाते हैं ,इस  प्रकार मन का स्वास्थ्य बिगड़ने के लिए ये बुरे  शब्द कारण बनते हैं । मन का स्वास्थ बिगड़ने से ही शरीर में रोग बीज प्रविष्ट होते हैं जिस से रोग बीज स्थिर हो जाते हैं.) 
 If by mistake you have misbehaved or hurt some other person be it male or female, to get over that situation listen to my counsel.
गृहस्थ धर्म का पालन
4. यतेनसो मातृकृताच्छेषे पितृकृताच्च यत् ।
उन्मोचनप्रमोचने उभे वाचा वदामि ते  । ।AV5.30.4
यदि तू अपने माता पिता द्वारा तेरे से  बाल्यकाल में किए गए व्यवहार के परिणाम स्वरूप अज्ञान की अवसाद निद्रा में सो रहा है तो मेरा परामर्श सुन.
(माता और पिता सब यद्यपि अपनीसतान के शुभा चिंतक होते है  परंतु उन के अज्ञानवश  अनुपयुक्त व्यवहार से भी संतान जन्मत: निर्बल होती है,  बालक का शरीर जन्म से ही बीमारियों का घर बन जाता है. व्यभिचार, मद्यपान, आदि दुष्टाचार सेलोग ना केवल स्वयं दु:ख भोगते हैं,प्रत्युत अपनी संतानों को भी बीमारियों के महासागर में ढकेल देते हैं. जन्मोपरांत संतान का पालन पोषन भी अनुपयुक्त हो सकता है. )
If you are carrying deep inside you the hurt caused unwittingly by your parents when they brought you up, Then to take charge of your own life listen to my counsel.
5. यत्ते माता यत्ते पिता जमिर्भ्राता च सर्जतः ।
प्रत्यक्सेवस्व भेषजं जरदष्टिं कृणोमि त्वा  । । AV5.30.5
तेरे माता, तेरे पिता, तेरे भाइ, तेरे बहनों का व्यवहार  तेरे जीवन को दीर्घायु तक स्वस्थ  बनाने के लिए साक्षात ओषधि का काम करता है. इस में संदेह मत कर तू अवश्य  दीर्घायु होगा.  (यह समझ कि ये सब तेरे शुभ चिंतक रहे थे )  .
Behavior of your parents brother and sister was like a medicine being administered to you to help you in leading a healthy long life.( do not forget that they were your well wishers)
6. इहैधि पुरुष सर्वेण मनसा सह ।
दूतौ यमस्य मानु गा अधि जीवपुरा इहि  । । AV5.30.6
हे पुरुष सम्पूर्ण मन-इच्छाओं, विचारों की शक्ति  के साथ जीवन यात्रा में चलने वाला हो, तू सदा उत्साह सम्पन्न हो कर जीवन में  आगे  बढ़ । यम के दूत शरीर के रोग और मानस की चिंताओं  के पीछे मत जा. तू इन रोगों और चिंताओं से ऊपर उठ, जीवित संसार  में  आगे  जाने वाले मार्ग पर चल ।
(मन की शक्ति जितनी प्रबल होगी उतनी निश्चय से सिद्धि होगी,मन की शक्ति से रोगी मनुष्य नीरोगी बन जाता है और नीरोग मनुष्य रोगी बन जाता है। बलवान निर्बल और निर्बल भी बलवान के समान कार्य करने में समर्थ हो जाता है. इसलिए हर मनुष्यको उचित है कि वह अपने मन में सुविचारों की धारणा करता हुआ नीरोगता पूर्वक दीर्घायु प्राप्त करे। हीन विचार मन में न आने दे ,हीन विचारों से ही मनुष्य  क्षीणायु हो जाता है )  
Live your life in here and now. Cultivate positive thoughts and ideas to lead your life and live in the present. Do not permit nihilism of depression and body ailments. Get on top of these to develop a cheerful mind and disease free body. Follow the path of progress. 
 7. अनुहूतः पुनरेहि विद्वानुदयनं पथः  ।
आरोहणं आक्रमणं जीवतोजीवतोऽयनं  । । AV5.30.7
माता पिता आचार्यों ने जीवन में उन्नति के उत्तम मार्ग और साधन दर्शाए , सब विघ्न बाधाओं  पर आक्रमण कर के सफलता से  उन्नति के पथ पर आगे बढ़ना ही तेरा मार्ग है.
(हर मनुष्य को चाहिए कि वह अपने आरोग्य को बढ़ाने के उपाय  जाने, और उन का आचरण कर के अपनी आरोग्यता  और आयु को बढ़ांए.)
Taking guidance from elders parents, teachers about the right resources and strategies to make progress in life, proceed on that path. Your destiny is only to walk the path of progress in life, by overcoming all obstacles and difficulties.
8. मा बिभेर्न मरिष्यसि जरदष्टिं कृणोमि त्वा ।
निरवोचं अहं यक्ष्मं अङ्गेभ्यो अङ्गज्वरं तव  । । AV5.30.8
मृत्यु  से भय न कर तेरे  शरीर के पूर्ण जरावस्था तक सब  अङ्ग रोग रहित और यक्ष्मा से रहित  रखने के ज्ञान का अनुसरण कर.
Do not get scared of death. Follow healthy life routine to ensure disease free body till you attain full old age.
मधु विद्या
9. अङ्गभेदो अङ्गज्वरो यश्च ते हृदयामयः ।
यक्ष्मः श्येन इव प्रापप्तद्वचा साढः परस्तरां  । । AV5.30.9
(वाच) उत्तम वाणी ज्ञान को व्यवहार मे लाने  से तेरे शरीर के भिन्न भिन्न अवयवों में पीड़ा , अङ्गों का ज्वर, और तेरे हृदय का रोग (साढ: ) पराजित हो कर दूर शीघ्रता से श्येन पक्षी की तरह उड़ जाएं.
By cultivating sweet temperament and speech in your life, all physical ailments, aches and pains in your body will vanish from your body like a bird that  flies away.

बोध प्रतिबोध-Awareness & Introspection
10. ऋषी बोधप्रतीबोधावस्वप्नो यश्च जागृविः ।
तौ ते प्राणस्य गोप्तारौ दिवा नक्तं च जागृतां  । । AV5.30.10
(बोध प्रतिबोध) बुद्धि व मन विवेक व चैतन्य यह दो ऋषी तेरे जीवन को ध्यान से देखने वाले हैं. एक है अस्वप्न -गहरी बिना स्वप्न की नींद,सुषुप्ति अवस्था ,  दूसरा है जागृवि:- वह जो सदा जगाता रहता है दिन में जागृत रहना  चैतन्य विवेक जो हमें सदैव अपने कर्तव्य के विषय में सावधान रखता है.
यही  दोनो तेरे प्राण के रक्षक हैं. इन दोनों को दिन रात  जागते रहना है.
Keep active your  two faculties of AWARENESS and INTROSPECTION in your life.     

11. अयं अग्निरुपसद्य इह सूर्य उदेतु ते ।
उदेहि मृत्योर्गम्भीरात्कृष्णाच्चित्तमसस्परि  । । AV5.30.11
यह यज्ञाग्नि समीप बैठने योग्य है,अर्थात सेवनीय है,तेरे घर में सूर्य उदय हो , अर्थात उदीयमान सूर्य की रश्मियां तेरे घर में आएं. मृत्यु के गम्भीर अंधकार की रात्रि से तेरा उदय हो.
(जीवन पर्यंत यज्ञाग्नि के और उदय होते हुए सूर्य की रश्मियों के सेवन से  शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ पुरुष मृत्यु के विषय से ऊपर उठ जाता है)
Make a habit of rising early in the morning to benefit from morning radiations of SUN.  And it is desirable to  sit before the AGNIHOTRA to absorb the positive vibes of the sacred fire. These two raise your physical and mental wellbeing. 

12. नमो यमाय नमो अस्तु मृत्यवे नमः पितृभ्य उत ये नयन्ति ।
उत्पारणस्य यो वेद तं अग्निं पुरो दधेऽस्मा अरिष्टतातये  । । AV5.30.12
नियन्ता-सकल जगत को नियमित करने वाले परमेश्वर को नमस्कार,पुराने शरीर के बदले नया  शरीर देने वाले परमेश्वर को नमस्कार, माता पिता आदि को नमस्कार, जो उन्नति की ओर हमें ले जाते  हैं उन को नमस्कार, जो कष्टों  से उठा का कष्ट नदी से पार कराते है रोगी को रोग नद से पार कराने की विधि  को जानते हैं ऐसे वेद ज्ञान को नमस्कार, उस अग्नि को जो हमारे कल्याण की वृद्धि के लिए है यज्ञाग्नि-  को हम प्राथमिकता दें.
We give our obeisance to our Lord – God. It is His will to replace for our soul its old worn out physical frame of the body with a new one. We also give our obeisance to our parents and teachers, who take great pains and make great efforts to raise and propel us on the path of progress in life.  We also give obeisance to the Eternal Knowledge as contained in Vedas and the various Yajnas that help us make our life.   
13. ऐतु प्राण ऐतु मन ऐतु चक्षुरथो बलं  ।
शरीरं अस्य सं विदां तत्पद्भ्यां प्रति तिष्ठतु  । । AV5.30.13
इस नए  शरीर में क्रमश: प्राण, मन, इत्यादि ज्ञानेंद्रियां स्थापित होती हैं  . तत्पश्चात चक्षु बल आए और इस का शरीर ज्ञान बुद्धि  से कर्म करके  अपने पांव पर खड़ा हो कर कार्य करनेवाला हो.
The new frame of physical body is endowed in sequence with inner faculties of Praan प्राण , Consciousness मन, faculties of perception physical ज्ञानेंद्रियां , followed by physical faculties such as eyes. Then Strength came in our body to enable it to stand on its feet by the strength of knowledge to perform actions in the right directions in life.  

14. प्राणेनाग्ने चक्षुषा सं सृजेमं सं ईरय तन्वा सं बलेन ।
वेत्थामृतस्य मा नु गान्मा नु भूमिगृहो भुवत् । । AV5.30.14
(जीवात्मा जड़ चेतन दोनों का योग है.  पूर्ण चेतन न होने के कारण जीवात्मा ही भोक्ता कर्त्ता दृष्टा है. इसे  भूख प्यास थकान लगती है, निद्रा जागृती भोग चाहिएं . भोग के लिए जीवात्माओं को कर्म करने पड़ते हैं . कर्म न करें तो जीवित नहीं रह सकते.  जड़ से जुड़े विकार काम  क्रोध लोभ इत्यादि शारीरिक और मानसिक दु:ख और रोगों का कारण होते हैं . इन से मुक्ति पाने के लिए जीवात्मा को अच्छे  कर्म करने चाहिएं).
मंत्र के अनुसार शरीर में प्राण की अग्नि को जीवात्मा शारीरिक बल और स्वस्थ दृष्टि दे. [ आत्मा वै बलं- काठक संहिता 72.5] (वेत्थामृतस्य) अमृतस्वरूप  ईश्वर की आत्मा के गुण जीवात्मा में धारण करने की आवश्यकता है. जिस से मनुष्य ऐसे कर्म न करे कि उसे समाज में नीचा देखना पड़े  और वह स्वस्थ शरीर और बलवान बने.
15. मा ते प्राण उप दसन्मो अपानोऽपि धायि ते ।
सूर्यस्त्वाधिपतिर्मृत्योरुदायछतु रश्मिभिः  । । AV5.30.15
सूर्य  की किरणें तुझे (जीवन में)  ऊपर उठावें. तेरा  प्राण अपान वायु चलता रहे. (सूर्य की रश्मियां प्रकाश संश्लेषण द्वारा मानव शरीर को विटामिन डी  और वनस्पति जगत में पौष्टिक अन्न उत्पादन से  शरीर की प्राण वायु  का संरक्षण करती हैं .)
Solar radiations provide your breath of life preserving vitamin D for your body and photosynthesis for nutritious diets.
16. इयमन्तर्वदति जिह्वा पनिष्पदा ।
त्वया यक्ष्मं निरवोचं शतं रोपीश्च तक्मनः  । । AV5.30.16
अपनी वाणी से जो भी ज्वर ,यक्ष्मा इत्यादि कष्ट तुम्हारे शरीर में हैं उन को भली प्रकार से कहो.( वैद्य ,ज्ञान वान जनों से ) और अपने इन रोगों से मुक्ति पाओ.
Articulate properly your ailments body to get excellent directions from learned persons and medical doctors to help you regain your health.
17. अयं लोकः प्रियतमो देवानां अपराजितः ।
यस्मै त्वं इह मृत्यवे दिष्टः पुरुष जज्ञिषे  ।
स च त्वानु ह्वयामसि मा पुरा जरसो मृथाः  । । AV5.30.17
यह जीवन एक अत्यंत बहुमूल्य निधि है . देवत्व गुणों को जीवन में धारण करने से यह कष्टों, व्याधियों से अपराजित रहता है और अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होता.  
This life is very precious. By observing best habits , one can beat all ailments and disease and thus complete his full life span to avoid untimely demise.


No comments:

Post a Comment