Friday, April 25, 2014

Sacred anointed water

चरणामृत अभिमंत्रित जल  का वैदिक महत्व
Rig Veda Book 7.47(महर्षि दयानंद भाष्याधरित व्याख्या)
चरणामृत रहस्य
1.आपो यं वः प्रथमं देवयन्त इन्द्रपानमूर्मिमकृण्वतेळः |
तं वो वयं शुचिमरिप्रमद्य घर्तप्रुषं मधुमन्तं वनेम || RV7.47.1
(आपो) - उत्तम जल(यम्‌) जिस को (प्रथमं) पहले (देवयन्त) उत्तम कामना करनेवाले जन (इन्द्रपानम्‌) पान द्वारा इंद्र के देवत्व गुणों को धारण करने योग्य मनुष्य जन उस को (ऊर्मिम्‌) तरंग के समन उस उत्तम जल को (इळ: )  वाणी द्वारा (अकृण्वत)सिद्ध करें-अभिमंत्रित करें. उस(शुचिम्‌) पवित्र (अरिप्रम्‌) हानिकारक तत्वों से रहित –कुशा द्वारा (घृतप्रुषम्‌ मधुमान्तम्‌)  दुग्ध मधु आदि से पूरित (अद्य) आज (वनेम)विशिष रूप से सेवन करें.
( इस वेद मंत्र में स्वच्छ जल  में दुग्ध,मधु ,कुशा इत्यादि से मंत्रोच्चार के साथ जल को अभिमन्त्रित कर के चरणामृत गृहण करने के कर्मकाण्ड का विषय  स्पष्ट निर्देषित है ) इस प्रकार जल का चरणामृत बनाने की प्रथा जापान में भी प्रचलित है. और प्रसिद्ध जापानी वैज्ञानि  मासारु इमोटो –Masaru Emoto ने अनुसंधान द्वारा यह  सिद्ध कर दिया  है कि जल में अद्भुत स्मरणशक्ति होती है. स्वच्छ जल के सम्मुख उत्तम सद्विचारों प्रार्थना पूजा अर्चना  द्वारा जल अभिमंत्रितहो जाता है और उसे पान करने वालों के लिए अत्यंत कल्याणकारी सिद्ध होता है. यही चरणामृत पान करने का रहस्य है.)
2.तमूर्मिमापो मधुमत्तमं वोsपां नपादवत्वाशुहेमा |
यस्मिन्निन्द्रो वसुभिर्मादयाते तमश्याम देवयन्तो वो अद्य || RV7.47.2
(apah) Water (Urmim)channels  (yasmin) which have (apanpat) by not falling of water (ashuhema) potential energy of fast motion and making water falls  (wah madayate) for your delight  (Indra wasubhi) benefits such as electrical energy(madhumatamum) highly desired like sweet honey (tam wah adyashyam) you should derive (adya devyantah) today to bring better life.
(अद्य देवयंत: ) आज जीवन में देवत्व के गुण धारण करने के लिए, (तमूर्मिमापो) तुम उन जल की धाराओं मे (यस्मिन) जिन में (आशुहेमा) शीघ्र बढ़ने और जाने वाला, (अपानपात) जलों के न गिरने से (Potential Energy )  (इन्द्र  वसुभि: ) विद्युत जैसे लाभकारी गुण हैं .

3.शतपवित्राः स्वधया मदन्तीर्देवीर्देवानामपि यन्ति पाथः |
ता इन्द्रस्य न मिनन्ति व्रतानि सिन्धुभ्यो हव्यं घृतवज्जुहोत || RV7.47.3
(यह जल )सौ उपायों से शुद्ध हो कर, विद्वानों द्वारा अन्नादि ऐश्वर्य को प्राप्त होती है. वह इन्द्र के ऐश्वर्य प्राप्ति के व्रत को नष्ट नहीं करती , इस प्रकार अनेक उर्वरक तत्वों को देने योग्य हो कर आनन्द से नदियों में प्रवाहित होती है.

4. याः सूर्यो रश्मिभिराततान याभ्य इन्द्रो अरदद गातुमूर्मिम |
ते सिन्धवो वरिवो धातना नो यूयं पात स्वस्तिभि: सदा न: || RV7.47.4
सूर्य की रश्मियां द्वारा विद्युत से जिन जलों को छिन्न भिन्न कर के  पृथ्वी पर विस्तार कर के समुद्र को पूरित कर के हमारी सेवा करते हैं, हम लोग भी सदैव उन (जलों ) की रक्षा करें. 

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