Thursday, July 28, 2011

Agriculture production in Vedas

RV5.82 Food related Duties
ऋषि:- श्यावाश्व आत्रेय: । देवता:-सविता । छन्द:- गायत्री, 1 अनुष्टुप् ।
श्यावाश्व- ज्ञान से सिद्ध भौतिक कार्य करने में कुशल विद्वान, आत्रेय- भोजन,अन्न विषय ?

स्वच्छ उत्तम अन्नदि की उपलब्धता

1.तत्सवितुर्वृणीमहे वयं देवस्य भोजनम् ।
श्रेष्ठं सर्वधातमं तुरं भगस्य धीमहि ।। 5.82.1
सम्पूर्ण ऐश्वर्य के लिए , अत्युत्तम, सब को प्राप्य, सब विकारों दोषों से रहित, भोजन की व्यवस्था का हम वरण करते हैं.

अन्नदि से तृप्त समाज

2.अस्य हि स्वयशस्तरं सवितु: कच्चन प्रियम् ।
न मिनन्ति स्वराज्यम् ।। 5.82.2
अपने समाज में सब के प्रिय, सब को भोजन अन्न से तृप्त करने करने की स्थाइ व्यवस्था स्थापित करते हैं

कृषक को सम्मान
3.स हि रत्नानि दाशुषे सुवाति सविता भग: ।
तं भागं चित्रमीमहे ।। 5.82.3
( उस कृषक को) जो समाज के लिए यह बहुमूल्य अन्न का दाता है, उस के महत्व को हम पहचानें, वही हमें जीवन यापन के लिए अद्भुत ऐश्वर्य रूपी अन्न धन प्राप्त कराता है.

अन्नदि की आत्मनिंभरता
4.अद्या न: देव सवित: प्रजावत् सावी: सौभगम् ।
परा दु:ष्वप्न्यं सुव ।। 5.82.4
सम्पूर्ण प्रजा के लिए सौभाग्य के लिए उत्तम धन धान के साधन उपलब्ध हों, जिस से बुरे (अभाव ग्रस्त) जीवन के स्वप्न भी न आएं

दुर्गुण दूर हों
5.विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव ।
यद् भद्रं तन्न आ सुव ।। 5.82.5
विश्व में जितनी दुर्गुणावस्थाएं हैं वे सब हमारे से दूर हों और जो हमारे लिए शुभ कल्याणकारी है वह उपलब्ध हो.

सकारात्मक परोपकारी जीवन
6.अनागसोऽदितये देवस्य सवितु: सवे ।
विश्वा वामानि धीमहि ।। 5.82.6
हमारा जीवन अखंण्ड भूमि के लिए निरपराधी हो, हम माता पिता गुरु जनों के लिए सदैव सुखकारी, सम्पूर्ण ऐश्वर्य धारी जीवन को प्राप्त करें.

सत्याचरण पर्यावरण विषय
7.आ विश्वदेवं सत्पतिं सूक्तैरद्या वृणीमहे ।
सत्यसवं सवितारम् ।। 5.82.7
हमारा आचरण सज्जनों का पालक, सत्य प्रतिज्ञा का पालन करने वाला और प्रकृति के नियमों के अनुरूप हो.


हमारा आचरण आलस्य रहित हो
8.य इमे उभे अहनी पुर एत्यप्रयुच्छन् ।
स्वाधीर्देव: सविता ।। 5.82.8
हमारा आचरण प्रकृति मे दिन और रात्रि के क्रम की तरह प्रमाद रहित हो.

शिक्षा द्वारा ज्ञान का प्रसार
9.य इमा विश्वा जातान्याश्रावयति श्लोकेन ।
प्र च सुवाति सविता ।। 5.82.9
इन समस्त विषयों के ज्ञाता विद्वानों को उचित है वे सब जनता में इस ज्ञान का श्रवण द्वारा प्रसार करें

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