Thursday, July 28, 2011

Duties of a King in Vedas

Rig Veda Book 4 Hymn 17
Duties of King-and people
त्वं महाँ इन्द्र तुभ्यं ह क्षा अनु क्षत्रं मंहना मन्यत द्यौः |
त्वं वृत्रं शवसा जघन्वान्‌ सृजःसिन्धूँरहिना जग्रसानान || ऋ4.17.1
राजा को विद्या और ऐश्वर्य से युक्त विस्तृत भूमि नदियों के जल सौर ऊर्जा की सहायता और सब रुकावटों दुष्ट जनों को दूर करके उग्रता से कर्मवीरों के प्रोत्साहन द्वारा उत्तम समाज का निर्माण करना चाहिये

तव तविषो जनिमन्‌ रेजत द्यौः रेजद भूमिर्भियसा स्वस्य मन्योः |
ऋघायन्त सुभ्वः पर्वतास आर्दन धन्वानि सरयन्त आपः ||ऋ4.17.2
हे राजन्‌ आप परमेश्वर की तरह पक्षपात त्याग के मनुष्यो मे पिता के समान बर्ताव करो. परमेश्वर के भय से जैसे सम्पूर्ण जगत व्यवस्थित रहता है, वैसे आप के दण्ड के भय से सब लोग व्यवस्था बनाये रहें. समाज के शत्रुओं को बाधित करके सज्जनों को आनन्द प्रदान कीजिए.

भिनद गिरिं शवसा वज्रमिष्णन्न आविष्कृण्वानः सहसान ओजः |
वधीद वृत्रं वज्रेण मन्दसानः सरन्नापो जवसा हतवृष्णी ||ऋ4.17.3
पारदर्शित कार्यशैली के बल से.श्रेष्ठ राजा अखण्ड आनन्द प्राप्त करते हैं

सुवीरस्ते जनिता मन्यत द्यौरिन्द्रस्य कर्ता सवपस्तमो भूत्‌ |
य ईं जजान स्वर्यं सुवज्रमनपच्युतं सदसो न भूम || ऋ4.17.4
जो लोग (राजा) सूर्य के सदृश न्याय से (सम दृष्टि से) प्रकाश.(पारदर्शिता) से प्रसिद्ध (पहचाने) दुष्टों के लिए न्यायकारक और श्रेष्ट पुरुषों के लिए आनंद दायक होते हैं उन का यश सब लोकों मे होता है और वे अखण्ड आनन्द पाते हैं.

य एक इच्चयावयति प्र भूमा राजा कृष्टीनाम पुरुहूत इन्द्रः |
सत्यमेनमनु विश्वे मदन्ति रातिं देवस्य गृणतो मघोनः ||ऋ 4.17.5
सुराज्य मे. उद्यमी कर्मवीरों द्वारा के प्रोत्साहन. प्रशिक्षण, सुरक्षा से अनेक उद्यमों व्यापार इत्यादि द्वारा सर्वव्यापी समृद्धि स्थापित होती है.

सत्रा सोमा अभवन्नस्य विश्वे सत्रा मदासो बृहतो मदिष्ठाः |
सत्राभवो वसुपतिर्वसूनां दत्रे विश्वा अधिथा इन्द्र कृष्टीः ||ऋ4.17.6
दारिद्र जन्य दुष्टता के दमन का उपाय हर व्यक्ति को किसी शिल्प का प्रशिक्षण दे कर बेकारी से हटाना और ऐश्वर्य जन्य दुष्टता का उपाय कठोर राज्य व्यवस्था नियम व्यवस्था से होता है.

त्वमध प्रथमं जायमानो ऽमे विश्वा अधिथा इन्द्र कृष्टीः |
त्वं प्रति प्रवत आशयानमहिं वज्रेण मघवन वि वृश्चः || ऋ4.17.7

जो पुरुष ब्रह्मचर्य, विद्या, विनय, और सुशीलता से सब से उत्तम हो. जो राज्य पालन और युद्ध करना जानता हो (वही यह समझता है के जैसे नीचे की ओर बहने वाला.जल सुषुप्ति को प्राप्त होता है, (हर क्षेत्र में अकर्मन्यता विनाश दरिद्रता और दुष्टता को जन्म देती है, हर समय उद्यमशीलता कर्मठता ही उन्नति का साधन है) उसी को राजा नियुक्त कर के सुखी होवें (In Science Entropy tends to infinity.)

सत्राहणं दाधृषि तुम्रमिन्द्रम महामपारं वृषभं सुवज्रम |
हन्ता यो वृत्रं सनितोत वाजं दाता मघानि मघवा सुराधाः || ऋ4.17.8
पूर्ण विद्या युक्त सत्यवादी प्रगल्भ बलिष्ट शस्त्र. अस्त्र के प्रयोग मे निपुण और अभयदाता जो पुरुष हो, उसी को राज्य के लिए नियुक्त करो.

अयं वृतश्चातयते समीचीर्य आजिषु मघवा शृण्व एकः |
अयं वाजं भरति यं सनोत्यस्य प्रियासः सख्ये स्याम ||ऋ4.17.9
हे राजन्‌ जो सेनाओं को प्रशिक्षण दिलाता है , विशेष रूप से युद्ध के समय योद्धाजनों का उत्साह बढाता है, और जो जनता के सम्मुख आप के दोषों को व्यक्त करता है उन से शिक्षा ले कर उन की मित्रता प्राप्त करके सम्पूर्ण कार्यों को सिद्ध करो.

अयं शृण्वे अध जयन्नुत घनन्न अयम उत प्र कृणुते युधा गाः |
यदा सत्यं कृणुते मन्युमिन्द्रो विश्वं दृळ्हं भयत एजदस्मात || ऋ4.17.10
जिस व्यक्ति की उत्तम कीर्ति आप सुनें और जो लोग राज्यपालन, प्रशासन, युद्ध में चतुर हों सत्याचारी हों उन को स्वीकार कर के शांति से सज्जनों को अच्छे प्रकार से प्रोत्साहन.दे कर उपयोग करें और दुष्ट जनों को निरंतर द्ण्ड देवें. जिस से समाज के लोग धर्माचार में आस्था बनाए रख कर अधार्मिक कार्यों की ओर न भटकें.
समिन्द्रो गा अजयत सं हिरण्या सं अश्विया मघवा यो ह पूर्वीः |
एभिर्नृभिर्नृतमो अस्य शाकै रायो विभक्ता सम्भरश च वस्वः || ऋ4.17.11
जो राजा उत्तम जनों का धन सम्मान सामग्री से और देश के आन्तरिक शत्रुओं दरिद्र्य, अज्ञान , दुर्भिक्ष और बाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए अपने भिन्न भिन्न विभागों का नियंत्रण करता है वही विद्वान राजा विजय को प्राप्त कर के आनन्द से रहता है.

कियतत्‌ स्विदिन्द्रो अध्य एति मातुः कियत पितुर्ज्नितुर्यो जजान |
यो अस्य शुष्मं मुहुकैरियर्ति वातो न जूतः स्तनयद्भिरभ्रैः ||ऋ4.17.12
जिस प्रकार वायु गर्जन शाली, धारावर्षी मेघ के सम्पर्क से शीतत्व गुण ग्रहण करता है, इसी प्रकार राष्ट्र को धोखा देने वाले राष्ट्र शत्रुओं से भी बहुत कुछ सीखा जाता है, उसी प्रकार माता रूप प्रजा और पिता रूप निर्वाचन मण्डल को भी बहुत कुछ सीखना होता है.
क्षियन्तं त्वमक्षियन्तं कृणोतीयर्ति रेणुम मघवा समोहम्‌ |
विभञ्जनुरशनिमाँ इव द्यौरुत स्तोतारं मघवा वसौ धात्‌ ||ऋ4.17.13
समाज में दुर्भिक्ष दैवीय आपदा के समय जैसे बाज पक्षी अपने लक्ष पर झपटता उसी प्रकार कुशल राज्य व्यवस्था माता पिता की तरह प्रत्युपकार करते हैं. और इन देश घाति शत्रुओं पर विजय पाकर यश. प्राप्त करते हैं.

अयं चक्रमिषणत सूर्यस्य न्येतशं रीरमत्‌ ससृमाणम |
आ कृष्ण ईं जुहुराणो जिघर्ति तवचो बुध्ने रजसो अस्य योनौ ||ऋ4.17.14
सौरमन्डल से प्रेरणा ले कर निरंतर प्राप्त होने वाली ऊर्जा से गतिमान कलाकौशल से चक्रयंत्रों के निर्माण, कुटिल मार्ग से चलने वालों द्वारा जल का नष्ट न करना. लोकसमूह की वाणी को सम्मान देना राज्य में ऐश्वर्य और और सुख प्राप्त कराते हैं




असिक्न्यां यजमानो न होता || ऋ4.17.15
जिस राज्य में शयन करते हुवे छुप कर पाप कर्म करने वाले भी दण्ड से अभय नहीं होते वहां प्रजा अभय से रहती है.

गव्यन्त इन्द्रं सख्याय विप्रा अश्वायन्तो वृषणं वाजयन्तः |
जनीयन्तो जनिदामाक्षितोतिमा च्यावयामो ऽवते न कोशम्‌ || ऋ4.17.16

ऐसे राज्य में प्रजा को इच्छानुसार सुख के सब साधन उत्तम गोवन्श, आवागमन के रथ वाहनादि साधन स्वस्थ सुखी परिवार, ज्ञानवान मित्र ऐसे उपलब्ध रहते हैं जैसे उत्तम ज्ञान और धन धान्य की निर्बाधित वर्षा हो रही हो.

त्राता नो बोधि ददृशान आपिराभिख्याता मर्डिता सोम्यानाम |
सखा पितः पितृणां कर्तेमुलोकमुशते वयोधाः || ऋ4.17.17
हे मनुष्यो यह सब प्रदान कराने वाला ,मित्र के तुल्य, सब का सुखकर्ता, सत्य का उपदेश देने वाला, उत्पन्न करने वालों को उत्पन्न करने वाला, पालन करने वालों का पालन करने वाला, सब कर्मों को देखने वाला, न्यायाधीश ,अन्तर्यामी जगदीश्वर है.उसी को जान कर उपासना करो.


सखीयतामविता बोधि सखा गृणान इन्द्र स्तुवते वयो धाः |
वयं ह्य ते चकृमा सबाध आभिः शमीभिर्हयन्त इन्द्र ||ऋ4.17.18
हे राजन्‌ यदि आप की इच्छा राज्य मे सुख समृद्धि के विस्तार की है, तो पक्षपात को त्याग कर सब से मित्रता पूर्ण व्यवहार करिये, श्रेष्ठ पुरुषों की रक्षा करते हुवे दुष्टों को दण्ड देते हुवे अपने तेज की प्रसिद्धि कीजिये.


स्तुत इन्द्रो मघवा यद्ध वृत्रा भूरीण्येको अप्रतीनि हन्ति|
अस्य प्रियो जरिता यस्य शर्मन्नकिर्देवा वारयन्ते न मर्ताः || ऋ4.17.19
जो राजा देशहित में सत्य बोलने वाले उपदेशक और विद्वानों की सहायता से राज्य की रक्षा करते हैं उनकी कभी पराजय नहीं होती.

एवा न इन्द्रो मघवा विरप्शी करत्‌ सत्या चर्षणीधृदनर्वा
त्वं राजा जनुषां धेह्यस्मे अधि श्रवो माहिनं यज्जरित्रे || ऋ4.17.20
जो पुरुष अन्याय मे प्रवर्त्त्मान राजा को रोकते हैं वे सत्य का प्रचार करने वाले होते हुए बडे सुख को प्राप्त होते हैं.

नू ष्टुत इन्द्र नू गृणान इषं जरित्रे नद्यो3 न पीपेः |
अकारि ते हरिवो ब्रह्म नव्यं धिया स्याम रथ्यः सदासाः ||ऋ4.17.21
हे मनुष्यो जो अति उत्तम गुण कर्म स्वभाव और विद्या से युक्त.और प्रजा के हित के लिए धन धान्य को बढाता है, उस के अनुकूल व्यवहार से राष्ट्र के बल को बढाना आप का कर्तव्य है.

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