Thursday, July 28, 2011

Live in the present

Live in the Present यथार्थ वादोपदेश
Be focused in Life –Empty Mind is Devil’s workshop
RV 10.58
ऋषि:-गौपायना वा लौपायना: वा बन्धु: सुबन्धु: श्रुत बंधु: विप्रबन्धु: च ;
गौपायन गोप की संतान,गोप- वह जो इन्द्रियों की रक्षा करता है, लौपायन – वही संतान शत्रुओं का छेदन करने वाली है. काम क्रोधादि शत्रुओं का छेदन करने वाला होता है बन्धु – जो सदा अपने को किसी कार्य में बान्धे रखता है, उत्तम कार्यों में लगे रहने से ही सुबन्धु , शास्त्रों के श्रवणमें लगे रहने वाला श्रुत बन्धु, विप्रबन्धु उस सर्वव्यापक प्रभु का समीपस्थ मित्र होने से विप्रबन्धु :
विश्वेदेवा: ; अनुष्टुप्‌ छंद
Refrain ध्रुवपंक्ति .मनो जगाम दूरकम्‌ , तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे !!
जो तुम्हारा मन बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
Rig Veda Book 10 Hymn 58
यत ते यमं वैवस्वतं मनो जगाम दूरकम्‌ |
तत त आवर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || R10.58.1
तुम्हारा जो मन वैवस्त के पुत्र यम के पास चला गया है, अर्थात वैराग्य की ओर बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
(विवस्वान है वासना रहित व्यक्तित्व . मनुष्य वासनाओं से जितना ऊपर उठता है उतना ही उसका जीवात्मा और अहंबुद्धि संयमशील होते हैं . और क्रमशः यम और यमी कहलाने के अधिकरी होते हैं. यम संयम शील जीवात्मा है और यमी उसकी बहन संयम शील अहंबुद्धि है. बच्चा जब माता के गर्भ से पैदा होता है तो उस के शरीर में जीव और अहंबुद्धि साथ साथ जन्मते हैं. इसी लिए यम और यमी को जुडवां कहा जाता है. अतः यम और यमी वस्तुतः वासना रहिता व्यक्तित्व दो की संतानें हैं. ये दोनों शकट (हविर्धान) अर्थात सोम ढोने वाली गाडियों के रूप में भी देखे जाते हैं . यम देवों के हित में मृत्यु का वरण करता है. पर संतान के अभीष्ट के लिए अमृत को त्याग देता है.)


यत ते दिवं यत पर्थिवीं मनो जगाम दूरकम |
तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.2
Day dreaming: जो तेरा मन दिवास्वप्न की ओर बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.

यत ते भूमिं चतुर्भृष्टिं मनो जगाम दूरकम |
तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.3
Negative thoughts seeing difficulties all-round:जो तेरा मन चारों ओर से तपने वाली भूमि की ओर बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
यत ते चतस्रः प्रदिशो मनो जगाम दूरकम |
तत त तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे||ऋ10.58.4
Wandering Mind चारो दिशाओं में तुम्हारा मन जो भटक कर बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
यत ते समुद्रमर्णवं मनो जगाम दूरकम |
तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.5
जल से भरे समुद्र में जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
यत ते मरीचीः प्रवतो मनो जगाम दूरकम |
तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.6
Mirage-मृग तृष्णा की ओर जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.

यत ते अपो यदोषधी मनो जगाम दूरकम |
तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.7
Paranoid about diseases भ्रमोन्माद से औषधियों वनस्पतियों में जो तुम्हारा मन बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
यत ते सूर्यं यदुषसं मनो जगाम दूरकम |
तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.8
सूर्य और उषा के पास जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि
तुम इस संसार में सूर्य की तरह प्रात:काल से कर्म करने के लिए ही जीते हो.
यत ते पर्वतान बृहतो मनो जगाम दूरकम |
तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.9
बडे बडे पर्वतों की ओर जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो. दिवा स्वप्न छोड़ो.
यत ते विश्वमिदं जगन्‌ मनो जगाम दूरकम |
तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.10
संसारिक विषयों की ओर जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.
यत ते पराः परावतो मनो जगाम दूरकम |
तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.11
दूर से दूर और उस से भी दूर और भी बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.

यत ते भूतं च भव्यं च मनो जगाम दूरकम |
तत्‌ त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.12
भूत काल और भविष्य की ओर जो बहुत दूर चला गया है, तुम्हारे उस मन को लौटा लाते
हैं क्योंकि तुम इस संसार में निवास के लिए जीते हो.

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