Thursday, July 28, 2011

Yagnas make Character

यज्ञाग्नि का हृदय में स्थापित्य से क्षत्रियत्व का प्रभाव
अथर्व 6.76
1.य एनं परिषीदन्ति समादधति चक्षसे ! संप्रेद्धो अग्निर्जिह्वाभिरुदेतु हृदयादधि अथर्व 6.76.1
जो इस यज्ञाग्नि के चारों ओर बैठते हैं , इस की उपासना करते हैं, और दिव्य दृष्टि के लिए इस का आधान करते हैं , उन के हृदय के ऊपर प्रदीप्त हुवा अग्नि अपनी ज्वालाओं से उदय हो कर क्षत्रिय गुण प्रेरित करता है.
2.अग्नेः सांत्पनस्याहमायुषे पदमा रभे ! अद्धातिर्यस्य पश्यति धूममुद्यन्तमास्यतः !!अथर्व 6.76.2
शत्रु को तपाने वाली अग्नि के (पदम्‌) पैर को, चरण को (आयुषे) स्वयं की, प्रजाजन की, राष्ट्र की दीर्घायु के लिए (अह्म्‌) मैं ग्रहण करता हूँ . इस अग्नि के धुंए को मेरे मुख से उठता हुवा सत्यान्वेषी मेधावी पुरुष देख पाता है.

3.यो अस्य समिधं वेद क्षत्रियेण समाहिताम्‌ ! नाभ्ह्वारे पदं नि दधाति स मृत्यवे !! अथर्व 6.76.3
जो प्रजाजन इस धर्मयुद्ध की अग्नि को देख पाता है, जो क्षत्रिय धर्म सम्यक यज्ञाग्नि सब के लिए समान रूप से आधान की जाती है. उसे समझ कर प्रजाजन कुटिल छल कपट की नीति को त्याग कर मृत्यु के लिए पदन्यास नहीं करता.
4. नैनं घ्नन्ति पर्यायिणो न सन्नाँ अव गच्छति! अग्नेर्यः क्ष्त्रियो विद्वान्नम गृह्णात्यायुषे !! अथर्व 6.76.4
जो सब ओर से घेरने वाले शत्रु हैं वह इस आत्माग्नि का सामना नहीं कर पाते, और समीप रहने वाले भी इस को जानने में असमर्थ रहते हैं. परन्तु जो ज्ञानी क्षत्रिय धर्म ग्रहण करते हैं वे हुतात्मा अमर हो जाते हैं .

1 comment:



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    Yagnas

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