Thursday, July 28, 2011

Anger against Evil मन्यु

मन्यु: वेदों मे RV 10/83 same as AV4.32, RV 10/84 same as AV4.31, AV6.41, AV6.42, AV6.43, AV 6.76
Self motivation/ Fire in the belly मन्यु
AV6-76, AV6-41, RV 10-84,RV 10-83

मन्यु का महत्व
मननोपरान्त उग्रता मन्यु है.
मन्यु का अर्थ दुष्टों पर क्रोध भी है. इसी लिए यजुर्वेद 19.9 में प्रार्थना है .
मन्युरसि मन्युं मयि धेहि, हे दुष्टों पर क्रोध करने वाले (परमेश्वर) ! आप दुष्ट कामों और दुष्ट जीवो पर क्रोध करने का स्वभाव मुझ में भी रखिये.
भारत वर्ष में महाभारत के पश्चात ऐसा लगता है कि समाज मन्यु विहीन हो गया. तभी तो हम सब दुष्टों के व्यवहार को परास्त न कर के , उन से समझौता करते चले आ रहे हैं . समाज राष्ट्र संस्कृति की सुरक्षा के लिए, मन्यु कितना मह्त्व का विषय है यह इस बात से सिद्ध होता है कि ऋग्वेद मे पूरे दो सूक्त केवल मन्यु पर हैं. और इन्हीं दोनो सूक्तों का अथर्व वेद मे पुनः उपदेश मिलता है.
अग्निरिव मन्यो तविषितः, विद्मा तमुत्सं आबभूथ, मन्युर्होता वरुणो जातवेदाः वेद यह भी निर्देश देते हैं कि मन्यु एक दीप्ति है जिस का प्रकाश यज्ञाग्नि द्वारा मानव हृदय में होता है. हृदय के रक्त के संचार मे मन्यु का उत्पन्न होना बताते है. मन्यु यज्ञाग्नि से ही उत्पन्न जातवेदस सर्वव्यापक वरुण रूप धारण करता है.
परन्तु वेदों मे इस बात की भी सम्भावना दिखायी है,कि कभी कभी समाज में , परिवार में विभ्रान्तियों, ग़लतफहमियों, मिथ्याप्रचार के कारण भी सामाजिक सौहार्द्र में आक्रोश हो सकता है. ऐसी परिस्थितियों में आपस में वार्ता, समझदारी से आपसी मनमुटाव का निवारण कर, प्रेम भाव सौहर्द्र पुनः स्थापित किया जाना चाहिये.
Rig Veda Book 10 Hymn 83 same as AV 4.32

यस्ते मन्योSविधद्वज्र सायक सह ओजः पुष्यति विश्वमानुषक |
साह्याम दासमार्यं त्वया युजा सहस्कृतेन सहसा सहस्वता || ऋ10/83/1
(वज्र सायक मन्यो) Confidence is born out of being competently equipped and trained to perform a job.
हे मन्यु, जिस ने तेरा आश्रयण किया है, वह अपने शस्त्र सामर्थ्य को, समस्त बल और पराक्रम को निरन्तर पुष्ट करता है.साहस से उत्पन्न हुवे बल और परमेश्वर के साहस रूपि सहयोग से समाज का अहित करने वालों पर बिना मोह माया ( स्वार्थ, दुख) के यथा योग्य कर्तव्य करता है.

मन्युरिन्द्रो मन्युरेवास देवो मन्युर्होता वरुणो जातवेदाः |
मन्युं विश ईळते मानुषीर्याः पाहि नो मन्यो तपसा सजोषाः || ऋ10/83/2
मन्युदेव इंद्र जैसा सम्राट है. मन्युदेव ज्ञानी सब ओर से प्रचेत ,सचेत तथा धनी वरुण जैसे गुण वाला है .वही यज्ञाग्नि द्वारा समस्त वातावरण और समाज मे कल्याण कारी तप के उत्साह से सारी मानव प्रजा का सहयोग प्राप्त करने मे समर्थ होता है. (सैनिकों और अधिकारियों के मनों में यदि मन्यु की उग्रता न हो तो युद्ध में सफलता नहीं हो सकती. इस प्रकार युद्ध में मन्यु ही पालक तथा रक्षक होता है.)

अभीहि मन्यो तवसस्तवीयान् तपसा युजा वि जहि शत्रून् |
अमित्रहा वृत्र हा दस्युहा च विश्वा वसून्या भरा त्वं नः || ऋ10/83/3
हे वज्ररूप, शत्रुओं के लिए अन्तकारिन्‌ , परास्त करने की शक्ति के साथ उत्पन्न होने वाले, बोध युक्त क्रोध ! अपने कर्म के साथ प्रजा को स्नेह दे कर अनेक सैनिकों के बल द्वारा समाज को महाधन उपलब्ध करा.
त्वं हि मन्यो अभिभूत्योजाः सवयंभूर्भामो अभिमातिषाहः |
विश्वचर्षणिः सहुरिः सहावानस्मास्वोजः पर्तनासु धेहि || ऋ10/83/4
हे बोधयुक्त क्रोध मन्यु! सब को परास्त कारी ओज वाला, स्वयं सत्ता वाला, अभिमानियों का पराभव करने वाला , तू विश्व का शीर्ष नेता है. शत्रुओं के आक्रमण को जीतने वाला विजयवान है. प्रजाजनों, अधिकारियों, सेना में अपना ओज स्थापित कर.
अभागः सन्नप परेतो अस्मि तव क्रत्वा तविषस्यप्रचेतः |
तं त्वा मन्यो अक्रतुर्जिहीळाहं स्वा तनूर्बलदेयाय मेहि ||ऋ10/83/5
हे त्रिकाल दर्शी मन्यु, तेरे वृद्धिकारक कर्माचरण से विमुख हो कर मैने तेरा निरादर किया है ,मैं पराजित हुवा हूँ. हमें अपना बल तथा ओज शाली स्वरूप दिला.
अयं ते अस्म्युप मेह्यर्वाङ् प्रतीचीनः सहुरे विश्वधायः |
मन्यो वज्रिन्नभि मामा ववृत्स्व हनाव दस्यूंरुत बोध्यापेः || ऋ10/83/6
हे प्रभावकारी समग्र शक्ति प्रदान करने वाले मन्यु, हम तेरे अपने हैं . बंधु अपने आयुध और बल के साथ हमारे पास लौट कर आ, जिस से हम तुम्हारे सहयोग से सब अहित करने वाले शत्रुओं पर सदैव विजय पाएं.

अभि प्रेहि दक्षिणतो भवा मे Sधा वृत्राणि जङ्घनाव भूरि |
जुहोमि ते धरुणं मध्वो अग्रमुभा उपांशु प्रथमा पिबाव ||ऋ10/83/7
हे मन्यु , मैं तेरे श्रेष्ठ भाग और पोषक, मधुररस की स्तुति करता हूं . हम दोनो युद्धारम्भ से पूर्व अप्रकट मंत्रणा करें ( जिस से हमारे शत्रु को हमारी योजना की पूर्व जानकारी न हो). हमारा दाहिना हाथ बन, जिस से हम राष्ट्र का आवरण करने वाले शत्रुओं पर विजय पाएं.
********************************************************************************************

Rig Veda Book 10 Hymn 84 same as AV 4.31
त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षमाणासो धर्षिता मरुत्वः |
तिग्मेषव आयुधा संशिशाना अभि प्र यन्तु नरो अग्निरूपाः || ऋ10/84/1 अथव 4.31.1

हे मरने की अवस्था में भी उठने की प्रेरणा देने वाले मन्यु , उत्साह ! तेरी सहायता से रथ सहित शत्रु को विनष्ट करते हुए और स्वयं आनन्दित और प्रसन्न चित्त हो कर हमें उपयुक्त शस्त्रास्त्रों से अग्नि के समान तेजस्वी नेत्रित्व प्राप्त हो.

अग्निरिव मन्यो तविषितः सहस्व सेनानीर्नः सहुरे हूत एधि |
हत्वाय शत्रून् वि भजस्व वेद ओजो मिमानो वि मृधो नुदस्व ||ऋ10/84/2 अथर्व 4.31.2
हे उत्साह रूपि मन्यु तू अग्नि का तेज धारण कर, हमें समर्थ बना. घोष और वाणी से आह्वान करता हुवा हमारी सेना को नेत्रित्व प्रदान करने वाला हो. अपने शस्त्र बल को नापते हुए शत्रुओं को परास्त कर के हटा दें.

सहस्व मन्यो अभिमातिमस्मे रुजन् मृणन् प्रमृन् प्रेहि शत्रून् |
उग्रं ते पाजो नन्वा रुरुध्रे वशी वशं नयस एकज त्वम् || ऋ10/84/3अथर्व 4.31.3

अभिमान करने वाले शत्रुओं को नष्ट करने का तुम अद्वितीय सामर्थ्य रखते हो.

एको बहूनामसि मन्यवीळितो विशं-विशं युधये सं शिशाधि |
अकृत्तरुक त्वया युजा वयं द्युमन्तं घोषं विजयाय कर्ण्महे || ऋ10/84/4अथर्व 4.31.4
हे मन्यु बोधयुक्त क्रोध अकेले तुम ही सब सेनाओं और प्रजा जनों का उत्साह बढाने वाले हो. जयघोष और सिन्ह्नाद सेना और प्रजा के पशिक्षण में दीप्ति का प्रकाश करते हैं वह तुन्हारा ही प्रदान किया हुवा है.

विजेषकृदिन्द्र इवानवब्रवो Sस्माकं मन्यो अधिपा भवेह |
प्रियं ते नाम सहुरे गृणीमसि विद्मा तमुत्सं आबभूथ || ऋ10/84/5अथत्व 4.31.5

मन्यु द्वारा विजय कभी निंदनीय नहीं होती. हम उस प्रिय मन्यु के उत्पादक रक्त के संचार करने वाले हृदय के बारे में भी जानकारी प्राप्त करें.
आभूत्या सहजा वज्र सायक सहो बिभर्ष्यभिभूत उत्तरम |
क्रत्वा नो मन्यो सह मेद्येधि महाधनस्य पुरुहूतसंसृजि ||ऋ10/84/6 अथर्व 4.31.6
दिव्य सामर्थ्य उत्पन्न कर के उत्कृष्ट बलशाली मन्यु अपनी सम्पूर्ण शक्ति से अनेक स्थानों पर पुकारे जाने पर उपस्थित हो कर, हमे महान ऐश्वर्य युद्ध मे विजय प्रदान करवाये.


संसृष्टं धनमुभयं समाकृतमस्मभ्यं दत्तां वरुणश्च मन्युः |
भियं दधाना हर्दयेषु शत्रवः पराजितासो अप नि लयन्ताम् || ऋ10/84/7 AV4.31.7
हे मन्यु , बोधयुक्त क्रोध , समाज के शत्रुओं द्वारा (चोरी से) प्राप्त प्रजा के धन को तथा उन शत्रुओं के द्वारा राष्ट्र से पूर्वतः एकत्रित किये गये दोनो प्रकार के धन को शत्रु के साथ युद्ध में जीत कर सब प्रजाजनों अधिकारियों को प्रदान कर (बांट). पराजित शत्रुओं के हृदय में इतना भय उत्पन्न कर दे कि वे निलीन हो जाएं.
( क्या यह स्विस बेंकों मे राष्ट्र के धन के बारे में उपदेश नहीं है)

No comments:

Post a Comment