Thursday, July 28, 2011

Good Food in Vedas

About FOOD
ऋषिः अगस्त्यो मैत्रावरुणि-।-देवता -अन्नम्
Annam RV Rig Veda Book 1 Hymn 187
पितुं नु स्तोषं महो धर्माणं तविषीम |
यस्य त्रितो वयोजसा वृत्रं विपर्वमर्दयत् ||ऋ1/187/1
(यस्य) जिस का(त्रित:) मन वचन कर्म से (वि,ओजसा)विविध प्रकार के पराक्रम तथा उपाय से (विपर्वम)अङ्ग उपाङ्गों से पूर्ण जैसे काट, छांट, बीन, छील, पीस कर(वृत्रम) स्वीकार करने योग्य धन, यहां पर धन से अन्न के सन्दर्भ मे तात्पर्य लें, खाने के योग्य (अर्दयत) प्राप्त करे, (नु) शीघ्र अन्न के संदर्भ मे ताज़ा,जैसे दुग्ध के संदर्भ मे धारोष्ण बासी पुराना रखा हुवा नही (पितुम) ओषधि रूप अन्न(मह:) बहुत (धर्माणम) गुणकारी स्वभाव वाले अन्न होते हैं (तविषीम) जिन के गुणों की (स्तोषम) प्रशंसा करते हैं.( Freshly harvested- not artificially treated for extended shelf life)



स्वादो पितो मधो पितो वयं त्वाववृमहे |
अस्माकमविता भव || ऋ1/187/2
(स्वादो) स्वादु(पितो)पान करने योग्य जलादि पदार्थ (मधो) मधु के समान (High Brix number)( त्वा) ऐसे पेय पदार्थों को (वयम) हम सब (ववृमहे) ग्रहण करें(अस्माकम) इस अन्नपान के दान से (अविता) हमारे शरीर, मस्तिष्क की सुरक्षा, वृद्धि (भव) सम्भव हो.

उप नः पितवा चर शिवः शिवाभिरूतिभिः |
मयोभुरद्विषेण्यः सखा सुशेवो अद्वयाः || ऋ1/187/3
(पितो)अन्न व्यापक कराने वाला परमात्मन(मयोभू: )सुख की भावना कराने वाले (अद्विषेण्य) किसी से द्वेष न करने वाले, सब को एक जैसा अन्न उपलब्ध करवाने वालेवाले,हमारे लिए (सुशेव:)सुंदर और सुख युक्त (अद्वया:) जिस मे द्वंद्व भाव न रखने वाला (सखा) वह मित्र आप, हे परमात्मन (शिवाभि:) सुखकारिणी वह अन्न (ऊतिभि:)रक्षा , तृप्ति, वृद्धि, तेज (न:) हम लोगो के लिए (शिव:) सुखकारी (उप, आ, चर) समीप अच्छे प्रकार से प्राप्त कराइये,( Zero Food Miles)
तव त्ये पितो रस रजांस्यनु विष्ठिताः |
दिवि वाता इव श्रिताः || ऋ1/187/4
(पितो)अन्नव्यापिन परमात्मा (तव ) उस अन्न के बीच जो (रसा: ) स्वादु खट्टा मीठा तीखा चरपरा आदि छह (मीठा,खट्टा,लवण,कटु चरपरा,तिक्त कडुवा और कषाय कसैला) (दिवि) अंतरिक्षा मे (वाताइव) पवनों के समान (श्रिता) आश्रय को प्राप्त हो रहे हैं (त्ये) वे
(रजांसि)लोकलोकांतरों को ( अनु, विष्ठिता: ) पीछे प्रविष्ट होते हैं.( Diet should consist of all natural tastes and colors of eatables)
तव त्ये पितो ददतस्तव स्वादिष्ठ ते पितो |
प्र स्वाद्मानो रसानां तुविग्रीवाइवेरते ||ऋ1/187/5
(पितो) अन्नव्यापौ पालक परमात्मन (ददत)देतेहुवे (तव) आप के जो अन्न वा(त्ये) वे पूर्वोक्त रस हैं (स्वादिष्ट)अतीव स्वादुयुक्त(पितो)पालक अन्नव्यापक परमात्मन (तव)आप के उस अन्न के सहित (ते) वे रस (रसानाम)मधुरादि रसों के बीच (स्वाद्मान:)अतीव स्वादु(तुविग्रौवाइव)जिन का प्रबल गला (develops good vocal faculties) उन जीवो के समान (प्रेरते)प्रेरणा देते अर्थात जीवों को प्रीति उत्पन्न कराते हैं.

त्वे पितो महानां देवानां मनो हितम् |
अकारि चारु केतुना तवाहिमवसावधीत् ||ऋ1/187/6
(पितो) अन्नव्यापी पालनहार परमेश्वर (तव) जिस आप की (अवसा) कृपा से सूर्य (अहिम)मेघ को (अबधीत) हन्ता है (केतुना)विज्ञान से जो (चारु)श्रेष्ठ तर (अकारि)किया जाता है वह (महानाम)महात्मा पूज्य (मन)मन(त्वे)आप में (हितम) धरा है,प्रसन्न है ( Suggesting possible artificial rains)
यददो पितो अजगनविवस्व पर्वतानाम् |
अत्रा चिन्नो मधो पितोSरं भक्षाय गम्याः ||ऋ1/187/7
(पितो) हमारा पोषण करने वाला (यत) जब यह (अद:) अन्न(अजगन) प्राप्त होता है (विवस्व) गुणवान(मघोपितो) स्वादिष्ट अन्न (अत्र,चित)(पर्वतानाम) पर्वतों से उर्वरकता युक्त (न: भक्षायअरमगम्या) हमारे खाने के लिए उप्लब्ध हो
यदपामोषधीनां परिंशमारिशामहे |
वातपे पीव इद्भव || ऋ1/187/8
(वातापे) भौतिक शरीर (अपाम ओषधीनाम्) तरल जल ओषधी पदार्थ इत्यादि (यतआरिशामहे पीब:) जो हम खाते हैं पी कर (इत भव) स्वस्थ हृष्ट पुष्ट करें.
यत्ते सोम गवाशिरो यवाशिरो भजामहे |
वातापे प्पेब इद्भव || ऋ1/187/9
(सोम) बुद्धि पूर्वक (गवाशिर: यवाशिर: भजामहे) गौ दुग्ध यव वनस्पति इत्यादि का भोजन जब हम गृहण करते हैं(ते) से (यत वातापे पीब: इत भव) जो हम पी कर गृहण करते हैं (खाना भी पी कर गृहण होता है)हमारे शरीर को स्वस्थ ह्रष्ट पुष्ट करे.
करम्भ ओषधे भव पीवो वृक्क उदारथिः |
वातापे पीब इद्भव || ऋ1/187/10
(ओषधे)(करम्भ: ) (उदारथि: )( वृक्क: )(पीब: ) (भव)
( वातापे) (पीब: ) (इत) (भव) जठराग्नि को प्रदीप्त करने और पवन आदि से मुक्ति प्राप्त हो.
तं त्वा वयं पितो वचोभिर्गावो न हव्या सुषूदिम |
देवेभ्यस्त्वा सधमादमस्मभ्यं त्वा सधमादम् ||ऋ1/187/11
(पितो) (तम) (त्वा) (वचोभि: ) (गाव: )(न) (वयम) (हव्या) (सषूदिम)(देवेभ्य: )( सधमादम) (त्वा) (अस्मभ्यम)(सदमाधम) (त्वा) जैसे गौ इत्यादि तृण घास खा कर रस दूध देती हैं उसी प्रकार अन्नदि से श्रेष्ठ भाग ग्रहण करा के आनन्द से सब रहें.

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