Friday, July 29, 2011

Sustainable Prosperity in Vedas

वैकुण्ठ सम्पन्नता का मार्ग दर्शन

ऋग्वेद 10.47 में आठ मंत्र हैं. इन की ध्रुव पंक्ति ( refrain line of the 8 mantras of this sookta) अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा:… अस्मभ्यं हमारे लिए , चित्रं विस्मयकारी प्रचुर , रयिं धन धान्य सम्पन्नता सफलता ,वृषणं की वर्षा ,दा: उपलब्ध हो. दीजिए.
इन 8 वेद मंत्रं में क्रमिक रूप से अक्षय सम्पन्नता को प्राप्त करने का मार्ग दर्शन मिलता है. (Provide us with abundant wealth of prosperity)

8 mantras this sookta Chapter of Veda provides in order of priority the Vedic road map for sustainable prosperity.

#1 वरीयता First Priority
RV10.47.1 गोकृषि ( milk /organic food security through Cows)
जगृम्भा ते दक्षिणमिन्द्र हस्तं वसुवयो वसुपते वसुनाम !
विद्मा हि त्वा गोपतिं शूर गोनाम Sस्मभ्यं चित्रं वृषणंरयिं दा: !! ऋग्वेद 10/47/1

विद्मा यह हमारी जानकारी मे है It is our knowledge,
हि त्वा - कि केवल आप ही that You alone are,
गोपतिं गोनाम- इस सब के स्वामी हो owner/husband/governor of all गो से अभिप्राय भौतिक गौ और उस के द्वारा उपलब्ध सब अन्न, ऊर्जा, मानसिक चेतना से ज्ञानेंद्रियों का संचालन stands for all physical cows that ensures energy, enlightenment, Speech -communication faculties through spoken words, शूर: शूरवीर most chivalrous,
अस्मभ्यं- हम सब को for us all
चित्रं अप्रत्याशित beyond imagination
दा: दीजिये, उप्लब्ध कराइये give us/enable to obtain,
वृषणं- भारी वर्षा की तरह like heavy rain fall
रयिं- सम्पन्नता ,धन जो सदैव गति मे रहता है wealth that remains constantly in operation to render service for welfare of all
वसुपते वसुनाम- (वसु- represent the material/physical means that enable our sustenance/ existence in this world.)
वसुपति is thus that Almighty invisible entity which governs all these वसुनाम -physical /material means.
अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा:… अस्मभ्यं हमारे लिए ,
चित्रं विस्मयकारी प्रचुर ,
रयिं धन धान्य सम्पन्नता सफलता ,
वृषणं की वर्षा ,
दा: उपलब्ध हो. दीजिए.
Provide us with abundant wealth of prosperity


#2 वरीयता, Second priority

RV 10.47.2 (On food security)
स्वायुधं स्ववसं सुनीथं चतु:समुद्रं धरुणं रयीणम् !
चकृत्यं शस्यं भूरिमस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा:!! ऋग्वेद 10/47/2

स्वायुधम्-सुंदर उपयोगी शिल्पी यंत्रो के द्वारा (उत्तम कृषि हेतु) self equipped with
all the required means to win -all agriculture implements
स्ववसम् - उत्तम सुरक्षा हेतु for (food/nutritional) security
सुनीथम् - उत्तम नीति से प्रेरित having excellent strategies
चतु: समुद्रम् चारों क्षेत्रों में (पृथ्वी के नीचे समुद्र में, पृथ्वी पर, पृथ्वी के ऊपर,
आकाश/अन्तरिक्ष में) for all the four oceans -on land, under water,
above ground, and in the outer space.
धरुणम् - यश से व्याप्त all encompassing, embracing / holding all
रयीणाम् - समस्त धनों से all the riches
चर्कृत्यम् - फसल चक्र जैसी प्रणाली से engaging in cyclically creative actions
such as performing crop rotations
शस्यम् - लाभकारी खाद्यान्न like growing desirable praise worthy food
crops
भूरिवारम् - बारम्बार प्रचुर मात्रा में repeatedly / in abundance
अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा:…
अस्मभ्यं हमारे लिए ,
चित्रं विस्मयकारी प्रचुर ,
रयिं धन धान्य सम्पन्नता सफलता ,
वृषणं की वर्षा ,
दा: उपलब्ध हो. दीजिए.
Provide us with abundant wealth of prosperity

#3 प्राथमिकता- Third priority

RV 10.47.3 शिक्षा प्रशिक्षण अनुसंधान (On skill &
intellectual base)
सुब्राह्नणं देववन्तं बृहन्तमुरुं गभीरं पृथुबुधमिन्द्रü !
श्रुतऋषि मुग्रम्भिमातिशाह्मस्मभ्यं चित्रं वृषणंरयिं दा: !! ऋग्वेद 10/4
सुब्राह्नणं - विस्तृत ज्ञान के विद्वत्जन Equipped with excellent wide
knowledge base
देववन्तं - विद्वानो के संरक्षक Serving , protecting and promoting the
Intellectual community
बृहन्तमुरुं -दूरदृष्टा, अनुसंधान कर्ता providers of great Insights,
enlightend researchers
गभीरं - प्रभावशील effective
पृथुबुधमिन्द्रü -उत्तम ज्ञान से प्रेरित intellectually highly disciplined
achievers
श्रुतऋषि - वैदिक ज्ञान के आधार पर अग्रसर होने वाले building further
on the earlier knowledge base wisdom of Vedic Rishis)
मुग्रम्भिमातिशाह्म - सब समस्याओं का समाधान करें ntensely occupied able to
resolve all the problems and obstacles
अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा:… अस्मभ्यं हमारे लिए , चित्रं विस्मयकारी प्रचुर , रयिं धन धान्य सम्पन्नता सफलता ,वृषणं की वर्षा ,दा: उपलब्ध हो. दीजिए.
Provide us with abundant wealth of prosperity

#4 प्राथमिकता -Fourth Priority

RV 10.47.4 सत्य अहिंसा आधारित नीति (Transparent Competency)
साद्वाजं विप्रवीरं तरुत्रं धनस्पृतं शूशुवासं सुदक्षम् !
दस्युहनं पूर्भिदमि न्द्र सत्यमभ्यं चित्रं वृषणंरयिं दा: !! ऋग्वेद 10/47/4
×¾Ö¯ÖϾÖ߸Óü - कुशल कार्य कर्ताओं द्वारा qualified operators
ŸÖ¹ý¡ÖÓ - सफल व्यक्तियों से achievers
¿Öæ¿Öã¾ÖÖÃÖÓ - आर्थिक सामर्थ्य सम्पन्नता financially sound
ÃÖã¤üÖ´ÖË - प्रशिक्षित दक्षता well trained
¤üõÖãÆü¬Ö´ÖË - विघ्नकारियों पर विजय पाने वाले overcoming disruptive forces
¯Öæ„ ×³Ö¤ü´ÖË - विघ्नकर्ताओं के भेद पा कर by reaching the roots of such wrong
behavior
ÃÖŸµÖÓ - पारदर्शी सत्याचरण से by transparent means
अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा:… अस्मभ्यं हमारे लिए , चित्रं विस्मयकारी प्रचुर , रयिं धन धान्य सम्पन्नता सफलता ,वृषणं की वर्षा ,दा: उपलब्ध हो. दीजिए.
Provide us with abundant wealth of prosperity



#5 प्राथमिकता Next Priority

RV 10.47.5 मार्ग, ऊर्जा, परिवहन, संसाधन
(Full Infrastructural facilities- Transport)
अश्वावन्तं रथिनं वीरवन्तं सहस्रिणं शतिनं वाजमिन्द्र !
भद्र वातं विप्रवीरं स्वर्षामस्मभ्यं चित्रं वृषणंरयिं दा: !! ऋग्वेद 10/47/5

अश्वावन्तं रथिनं – समाज के लिए यातायात के उचित साधन well engineered
energy efficient means of transport
वीरवन्तं - कुशल स्वप्रेरित कर्मठ कार्य कर्ता excellent workforce
सहस्रिणं शतिनं – बहुत सारे thousands of
वाजमिन्द्र - सक्षम backed by strength of
भद्र वातं – समाज हितैषी do-gooders
विप्रवीरं - प्रशिक्षित शिल्पजीवी intelligent qualified work force
स्वर्षा – सेवाएं प्रदान करने वाले service providers
अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा:… अस्मभ्यं हमारे लिए , चित्रं विस्मयकारी प्रचुर , रयिं धन धान्य सम्पन्नता सफलता ,वृषणं की वर्षा ,दा: उपलब्ध हो. दीजिए.

Provide us with abundant wealth of prosperity
#6 प्राथमिकता Sixth priority

RV 10.47.6 (Environmentally sustainable)

प्र सप्तगुमृतधीतिं सुमेधां बृहस्पतिं मतिरच्छा जिगाति !
य आङ्गिरसो नमसोपद्यो Sस्मभ्यं चित्रं वृषणंरयिं दा: !! ऋग्वेद 10/47/6

प्रसप्तगुमृतधीतिं सुमेधा- (समाज में) सप्त मर्यादा पालक उत्तम बुद्धिजन्य वृत्ति

की परिभाषा सप्त मर्यादाओं
ब्रह्महत्या सुरापा¬नं स्तेयं गुर्वङ्‌गागमः ।
महान्ति पातका¬यहुः ससर्गंश्चापि तैः सह ॥ मनु:11-54 )



सात पाप हैं, 1-चोरी,2-ब्रह्महत्या-गुरू ,विद्वा¬न बुद्धिजीवी की हत्या (भावनाओं की अवहेलना) ,3-व्यभिचार, 4- गोहत्या ,5-सुरापा¬न , 6- बुरे कामों को बार बार कर¬ना,7- पाप करके पु¬न: झूट बोल¬ना ।
सप्त मर्यादा पालन करने वाले,
बृहस्पति- विद्वत्ता युक्त संभाषण करने मे कुशल good articulate skills
मतिरच्छा जिगाति - सद्विचार जागृत करने वाले invokes good common sense
ऐसे प्रजाजन समाज को स्थायित्व प्रदान करते हैं. इस प्रकार

अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा:… अस्मभ्यं हमारे लिए , चित्रं विस्मयकारी प्रचुर , रयिं धन धान्य सम्पन्नता सफलता ,वृषणं की वर्षा ,दा: उपलब्ध हो. दीजिए.


Provide us with abundant wealth of prosperity
#7 प्राथमिकता Priority

RV 10.47.7 (Moral dedication in communication/media)
¬

वनीवानो मम दूतस इन्द्रं स्तोमाश्चरन्ति सुमतीरियाना:!
हृदिस्पृशो मनसा वच्यमाना अस्मभ्यं चित्रं वृषणंरयिं दा: !! ऋग्वेद 10/47/7

वनीवान: मम दूतस: स्तोमा - interactions communicating friendly
concerns and entreaties.
सुमति: इयाना: इन्द्रं चरन्ति - well intentioned good guidance to act
हृदिस्पर्शा: मनसा वच्यमाना:- conceived with sincere heart touching motives
अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा:… अस्मभ्यं हमारे लिए , चित्रं विस्मयकारी प्रचुर , रयिं धन धान्य सम्पन्नता सफलता ,वृषणं की वर्षा ,दा: उपलब्ध हो. दीजिए.
Provide us with abundant wealth of prosperity

RV 10.47.8 (grandeur of the bounties)
यत् त्वा यामि दद्धि तन्न इन्द्र बृहतं क्षयमसमं जनानाम् !
अभि तद् द्यावापृथिवी गृणीता मस्मभ्यं चित्रं वृषणंरयिं दा: !! ऋग्वेद 10/47/8
त्वा यत् यामि हम उस की इच्छा करते हैं that we seek
बृहतं क्षयं जनानां असमम्- विशाल आवास गृह जो समस्त विश्व में श्रेष्ठ होंspacious dwellings and accommodations very best for every body
तत् द्यावापृथिवी अभि गृणीताम्- इस भूमि पर तथा अंतरिक्ष में available on ground and outer space

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