Thursday, July 28, 2011

Aim of Education

उच्च शिक्षा विषय
ऋषि:- कृष्ण: आङ्गिरस:-‘कर्षति अरीन्‌’ इति कृष्ण:= जो काम क्रोध लोभ मोह मत्सर नामक षडरिपुओं को उखाड़ फैंकता है( कृष इलेखन्म्‌) वह कृष्ण है. वही आंगिरस= शक्ति सम्पन्न होगा

ऋग्वेद 10.42, अथर्ववेद 20.89
सामाजिक सम्पन्नता समृद्धि हेतु
1. उत्तम वाणी
• अस्तेव सु प्रतरं लायमस्यन्‌ भूषन्निव प्र भरा स्तोममस्मै |
वाचा विप्रास्तरत वाचमर्यो नि रामय जरितः सोम इन्द्रम ||RV10.42.1
• उत्तम ज्ञान द्वारा अपने प्रतिद्वंदि की वाणी( नीति) को समझ कर अपनी वाणी रूपी नीति को सुसज्जित कर के लक्ष्य तक पहुंचने वाले बाणों जैसा बना.
2. गुरु जनों के सखा
दोहेन गामुप शिक्षा सखायं प्र बोधय जरितर्जारमिन्द्रम |
कोशं न पूर्णं वसुना न्यृष्टमा च्यावय मघदेयाय शूरम || RV10.42.2
भारी ज्ञान के कोष और समाज के सम्मान के बोझ से झुके हुवे सौम्यगुरु को उत्तम शिक्षा पाने के लिए अपना मित्र बना.
3. शिक्षा का लक्ष्य
किमङग त्वा मघवन्‌ भोजमाहुः शिशीहि मा शिशयं त्वा शृणोमि |
अपनस्वति मम धीरस्तु शक्र वसुविदं भगमिन्द्र भरा नः !! RV10.42.3
ज्ञान विद्या का लक्ष्य सब मानव को धन धान्य सुख समृद्धि का लाभ पहुंचाना
4. कार्य क्षेत्र RV10.42.4
त्वां जना ममसत्येष्विन्द्र संतस्थाना वि ह्वयंते समीके !
अत्रा युजं कृणुते यो हविष्मान्‌ नासुन्वता सख्यं वष्टि शूरः!! ऋ10.42.4
समाजिक उन्नति और समृद्धि के कार्य मे अपने विद्या ज्ञान और कार्यकौशल द्वारा योगदान विद्वत्‌जनों का दायित्व बनता है
5. उच्च शिक्षा संस्थान
धनं न स्पन्द्रं बहुलं यो अस्मै तीव्रान्‌ त्सोमाँ आसुनोति प्रयस्वान्!तस्मै शत्रून्‌ त्सुतुकान्‌ प्रातरह्नो नि स्वष्ट्रान्‌ युवति हंति वृत्रम्‌ हन्ति!! RV10.42.5
धन इत्यादि से समर्थ अनुसंधान शिक्षा सन्स्थान सामाजिक उन्नति के बाधक तत्वों को नष्ट कराती हैं. कुशल समय और साधनों के प्रबन्ध से सब विघ्न नष्ट हो जाते हैं
6. शिक्षा का परिणाम
यस्मिन्‌ वयं दधिमा शंसमिन्द्रे यः शिश्राय मघवा काममस्मे |
आराच्चित्‌ सन्‌ भयतामस्य शत्रुर्न्य स्मै द्युम्ना जन्या नमन्ताम्‌ ||RV10.42.6
उत्तम समर्थ कर्मठ नेतृत्व से सब विघ्नकारी शक्तियां भयभीत हो कर जन हित की नीतियों के सामने झुकें.
7. वैकुंठ सुख
आराच्छत्रुमप बाधस्व दूरमुग्रो यः शम्बःपुरुहूत तेन |
अस्मे धेहि यवमद गोमदिन्द्र कर्धी धियंजरित्रे वाजरत्नाम ||10.42.7
समाज में सद्बुद्धि से गौ आधारित समृद्धि स्थापित हो, समाज धनवान हो, समीप और दूर की सब बाधाएं नष्ट हों.
8. शुद्ध ज्ञान प्रगति स्रोत्र
प्र यमन्तवृषसवासो अग्मन्‌ तीव्राः सोमा बहुलान्तास इन्द्रम |
नाह दामानं मघवा नि यंसन नि सुन्वते वहति भूरि वामम || RV!0.42..8
जिस समाज में ज्ञान, शिक्षा, अनुसंधान के प्रति प्रबल पिपासा होती है वह उद्यमों के शक्ति प्रद ज्ञान द्वारा अक्षय समृद्धि प्राप्त करता है
9. असफलता से शिक्षा
उत प्रहामतिदीव्या जयाति कर्तं यच्छ्वघ्नी विचिनोति काले |
यो देवकामो न धना रुणद्धि समित तं रायास्र्जति सवधावान !! RV10.42.9
असफलताओं से शिक्षा ले कर अपनी नीतियों में सुधार करने से अपूर्व सफलता मिलती है
10. गौ आधारित समाज
गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूतविश्वाम्‌ |
वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम !!RV10.42.10
गोपालन से दारिद्र्य दूर होता है जैविक कृषि द्वारा समाजं का पोषण होता है. व्यक्तिगत क्षुधा नष्ट हो कर पोषित समाज में आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त होती है. समाज के असन्तुष्ट एवं विध्वंसक तत्वों पर विजय प्राप्त होती है.
11.वैकुंठ इंद्र
बृहस्पतिर्नः परि पातु पश्चादुतोत्तरस्मादधरादघाः |
इद्रः पुरस्तादुत मध्यतो नः सखा सखिभ्योवरिवः कृणोतु !! ऋ10.42.11
बृहस्प्तति जगत की पालक शक्तियां हमारी वाणी द्वारा चारों दिशाओं से पापाचारी विरोद्धाम्तक शक्तियों से हमारा संरक्षण प्रदान करें. ( हम सब कुछ सोच समझ कर बोलें बिना हिंसा के ), पूर्व दिशा सूर्य और मध्यस्थानीय अंतरिक्ष और पृथ्वी हमें इंद्र जैसी उद्यमशीलता से सब को प्रिय समृद्धि पाप्त कराएं .
RigVed 10.42/AV 20.89



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