Thursday, July 28, 2011

Cardiac Health Photobiology in Veda

Photobiology Cardiac HEALTH in Vedas
RV 1-125-1, RV1.50, RV1.43, AV1.22

प्राता रत्नं प्रातरित्वा दधाति तं चिकित्वान् प्रतिगृह्या नि धत्ते ।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचते सुवीरः ।। ऋ 1-125-1
प्रातःकाल का सूर्य उदय हो कर बहुमूल्य रत्न प्रदान करता है। बुद्धिमान उन रत्नों के महत्व को जान कर उन्हें अपने में धारण करते हैं।
तब उस से मनुष्यों की आयु और संतान वृद्धि के साथ सम्पन्नता और पौरुष बढ़ता है।
(वैज्ञानिकों के अ¬नुसार केवल UVB किरणें , जो तिरछी पृथ्वी पर पड़ती हैं
( संधि वेला प्रातः सायं की सूर्य की किरणें ही विटामि¬न डी उत्पन्न करती हैं।)

RV1-50-11
RV 1-50-1
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतव: ! दृषे विश्वाय सूर्यम् !! ऋ 1/50/1
उदय होते सूर्य की किरणें जातवेदसं ईश्वर की कृपा से उत्पन्न कल्याणकारी पदार्थों के वाहक के रूप मे प्राप्त होती हैं, जब विश्व के लिए सूर्य दृष्टीगोचर होता है.

उद्यन्नद्य मित्रमह आरोहन्नुत्तरां दिवम् ।
हृद्रोगं मम सूर्य हरिमाणं च नाशय ।। ऋ 1-50-11
दिवस के उदय को प्राप्त होते हुए, मित्रों में महासत्कार के योग्य उदय होते हुए सूर्य और प्रकाश संश्लेषण से उत्पन्न हरियाली (greenery by photosynthesis) से हमारे हृदय और दूसरे हरणशील (पीलिया) आदि रोगों का ¬नाश होता है ।
( नवजात शिशु सामान्य रूप से आज कल पीलिया -jaundice रोग से ग्रसित होते हैं। आधुनि¬क अस्पतालों में बच्चों की ¬नर्सरी में कृत्रिम सूर्य के प्रकाश का प्रबं¬ध होता है । कोई कोई चिकित्सक ¬नवजात बच्चे को सूर्यस्¬नान भी कराते हैं )

शुकेषु मे हरिमाणं रोपणाकासु दध्मसि ।
अथो हारिद्रवेषु मे हरिमाणं निदध्मसि ॥ ऋ 1-50-12 , अथर्व 1-22-4

रोपित हरे व¬नस्पतियों कुशा घास हरे चारे इत्यादि पर पोषित दुग्ध में रोग हरण क्षमता है। इस लिए ऐसे हरे चारे पर पोषित (गौवों) के दुग्ध का आरोग्य के लिए सेव¬न करो।

आज विश्व के विज्ञा¬न शास्त्र के अनुसार केवल मात्र हरे चारे पर पोषित गौ के दुग्ध में ही CLA (Conjugated Linoleic Acid) और Omega 3 वांछित मात्रा मे आवश्यक वसा तत्व मिलते हैं। केवल यही दुग्ध मा¬नव शरीर के सब स्वज¬न्य रोग निरोधक और औषधीय गुण रखता है। इस स्था¬न पर वेदों में एक और आधुनिक वैज्ञानिक विषय photosynthesis प्रकाश संश्लेषण का उपदेश भी प्राप्त होता है। सब व¬नस्पति के बीजों में जो तैलीय तत्व होता है उसे वैज्ञानिक ओमेगा6, Omega 6 ¬नाम देते हैं। आज कल के सब प्रचलित रिफाइ¬न्ड खाद्य तेलों में मुख्यत: केवल ओमेगा6, Omegta 6 ही होता है। विज्ञा¬न बताता है की अंकुरित हो¬ने पर सूर्य के प्रभाव से photosynthesis प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया से ओमेगा 6 हरे रं¬ग को धारण करता है जिसे आहार में ग्रहण कर¬ने पर ओमेगा 3 पोषक तत्व उपलब्ध होता है । यही गौ के पोषण मे हरे चारे का महत्व है।
(Omega 3 Is found to be anti obesity, anti cancer, anti artheschelorosis - heart and brain strokes due to clogging of arteries and High blood pressure, anti Diabetes in short preventive as well as a medicine against all Self degenerating Human diseases)
उदगादयमादित्यो विश्वे¬न सहसा सह।
द्विष¬तम्मह्यं र¬धय¬मो अहं द्विषते रधम्‌ ॥ ऋ 1-50-13

उदय होते सूर्य के द्वारा विश्व को साहस सामर्थ्य प्रदा¬न कर के , धर्माचरण पर ¬न चलने वालों के शत्रु रूपी रोगों को नष्ट करके,आ-नन्द के साधन प्राप्त होते हैं ।

इसी विषय पर अथर्व वेद में निम्न मन्त्र मिलते हैं।

अ¬नु सूर्यमुदयतां हृदद्योतो हरिमा च ते।
गो रोहितस्य वर्णे¬न ते¬न स्वा परि दध्मसि ॥ अ 1-22-1

हृदय में उत्पन्न हरणशील व्याधि का उदय होते सूर्य से तथा हिरण्य वर्णा (Golden colored ) गौ दुग्ध के सेव¬न से उपचार करो।
गौएं दो प्रकार की मा¬नी जाती हैं अधिक दूध देने वाली तथा दूध और खेती में दोनो मे उपयोगी पाइ जाने वाली.
( Milk breeds and Dual purpose breeds.) सनहरे रंग की हिरण्य वर्णा गौ लाल सिंधी,साहीवाल, गीर इत्यादि अधिक दूध देनो वाली पाइ जाती हैं। इन्ही के दूध का हृदय रोग में महत्व बताया गया है ।

परि त्वा रोहितैर्वणै दीर्घायुत्वाय दध्मसि ।
यथाऽयरपा असदधो अहरितो भुवत्‌ ॥ अ 1-22-2

लाल रंग से तुझे दीर्घायु प्राप्त हो। जो रोगों के हरण से प्राप्त होती है॥

या रोहिणीदेवत्याय गावो या उत रोहिणीः।
रूपं रूपं वयो-वयस्ताभिष्ट्‌वा परि दध्मसि॥ अ-1-22-3

उदय होते हुए सूर्य और गौ की लालिमा रूप और आयु की वृद्धि के लिए देवता प्रदा¬न करते हैं ।


हृदय स्वास्थ्य यज्ञ ऋग्विधान के अनुसार
ऋग्वेद सूक्त 1-43
ऋषि कण्वो घोरः, देवता रुद्गः , मित्रावरुणौ, सोमः च
के 9मन्त्रों सें
अपने स्वास्थ्य लाभ के हेतु आहार, व्यवहार, उपचार के साथ परमेश्वर स्तुति व्यक्तिगत ,सामाजिक मानसिकता और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए इस यज्ञ को भी सम्पन्न करना हित कर होगा।

(इस यज्ञ का विधा¬न रोग निवृत्ति हेतु म¬नुष्यों, गौओं अश्वों इत्यादि के लिये किया जाता है। गोशाला में किये गए इस यज्ञ को शूल्गवां यज्ञ कहते हैं।)


कद रुद्गाय प्रचेतसे मीळ्हुष्टमाय तव्यसे ।
वोचेम शंतमं हृदे ॥ ऋ 1-43-1
विद्वान पुरुष कब महान रोग नाशक रुद्र की हृदय के लिए सुखदायी शांति की प्रशंसा के स्तोत्र सुनाएंगे ?

यथा नो अदितिः करत्‌ पश्वे नृभ्यो यथा गवे ।
यथा तोकाय रुद्गियम्‌ ॥ ऋ 1-43-2
(अदिति से यहां तात्पर्य सन्धिवेला के आदित्य से है.) संधि वेला का सूर्य राजा, रंक, पशुओं ,गौवों सब के अपनी संतान की तरह रुद्र रूप से रोग हरता है.
यथा नो मित्रा वरुणो यथा रुद्रश्चिकेतति ।
यथा विश्वे सजोषसः ॥ ऋ 1-43-3
प्राण व उदान सूर्योदय के समय उसी प्रकार स्वास्थ्य प्रदान करते हैं जैसे विद्वान पुरुषों के उपदेश के अनुसार सूर्य की किरणों से उत्तम जल, प्रकाश संश्लेषण – Photosynthesis- औषधीय रस से हरी शाक इत्यादि.

गाथपतिं मेधपतिं रुद्रं जलाषभेषजम्‌ ।
तच्छंयोः सुम्नीमहे ॥ ऋ 1-43-4
अनिष्ट को दूर करा के सुख शांति के लिए ,विद्वान लोग स्वास्थ और उत्तम जल के औषध तत्वों के ज्ञान का उपदेश करें.
यः शुक्र इव सूर्यो हिरण्यमिव रोचते ।
श्रेष्ठो देवानां वसुः ॥ ऋ 1-43-5
जो सुवर्ण जैसा दीखता सूर्य है, वही देवताओं मे श्रेष्ठ और महान वीर्यादि तत्व प्रदान करता है.
शं नः करत्यर्वर्ते सुगं मेषाय मेष्ये ।
नृभ्यो नारिभ्यो गवे ॥ ऋ 1-43-6
वही हमारे समस्त पशु, पक्षियों, राजा, रंक, नारी, गौ सब का रोग नष्ट कर के स्वास्थ्य प्रदान करता है.
अस्मे सोम श्रिय मधि नि धेहि श्तस्य नृणाम्‌ ।
महि श्रवस्तुविनृम्णम्‌ ॥ ऋ 1 -43-7
हमें यह ज्ञान होना चाहिये हमारी सेंकडों की संख्या के लिए वह एक अकेला तेजस्वी अन्न, औषधी, बल प्रदान करने में समर्थ है.
मा नः सोमपरिबाधो मारातयो जुहुरन्त ।
आ न इन्दोवाजे भज ॥ ऋ 1-43-8
हमारे ज्ञान मे विघ्न डालने वाले, और धन के लोभी हमें न सतावें.
हमारा ज्ञान हमारा बल बढावे.

यास्ते प्रजा अमृतस्य परस्मिन्‌ धामन्नृतस्य ।
मूर्धा नाभा सोम वेन आभूपन्तीः सोम वेदः ॥ ऋ 1-43-9
अमृत और सत्य श्रेष्ठ ज्ञान सदैव हमारा मार्ग दर्शन कर के हमें उत्तम स्थान पर प्रतिष्ठित करें

अथर्व वेद 1/12 देवता यक्ष्मानाशन्‌
जरायज: प्रथम उस्रिया वृषा वात्व्रजा स्तनयन्नेति वृष्टया !
स नो मृडाति तनव ऋजगो रुजन् य एकमोजस्त्रेधा विचक्रमे !! अथर्व 1/12/1
This Ved Mantra is very interestingly describing a very modern topic regarding the medicinal efficacy of colostrums of a new born cow. It is equally applicable as directive in Vedas about importance of breast feeding.
Colostrums is the pre-milk fluid produced from the mother's mammary glands during the first 72 hours after birth. It provides life-supporting immune and growth factors that insure the health and vitality of the newborn.


Commercial Exploitation of Colostrums of Cows for Human beings is a big modern pharmaceutical industry.
Breastfeeding in humans as also for new born calves provides natural "seeding" -- the initial boost to immune and digestive systems --.
Loss of youth & Vigor
In western medicine which gives no importance to ब्रह्मचर्य ,it is observed that after puberty, the amount of immune and growth factors present in human bodies begin to decline. Human body become more vulnerable to disease, its energy level and enthusiasm lessens, skin loses its elasticity, and there is gain of unwanted weight and body looses muscle tone. The modern humans also live in a toxic environment, with pollutants and allergens all around us.
Research has shown that Colostrums have powerful natural immune and growth factors that bring the body to a state of homeostasis -- its powerful, vital natural state of health and well being. Colostrums help support healthy immune function; & also enable us to resist the harmful effects of pollutants, contaminants and allergens where they attack us.
Plus, the growth factors in Colostrums create many of the positive "side-effects" of a healthy organism -- an enhanced ability to metabolize or "burn" fat, greater ease in building lean muscle mass, and enhanced rejuvenation of skin and muscle.
It is a very common modern medicine practice to collect colostrums from freshly calved cows to produce medicinal products for boosting disease resistance, and health promotion tonics for sick and elderly humans, specifically in debilitating diseases such as tuberculosis. New born calves particularly males are immediately taken away for slaughter. Cow’s Colostrums are collected for making medicines for the Pharma industries. Calves in general are fed on an artificial feed called Milk Replacer.

References to in the above ved mantra Atharv 1.12.1- जरायुजः, उस्रिया, वृषा, स्तन्यन्नेति, वृष्टया, त्रेधा, are clear references to Colostrums - first few days milk of a cow just after calving. Literal meaning of these vedic words are – produce of a just calved cow which is in the process of releasing the placenta, milk giving cow, shower of milk from the udder and three rumens of a cow having played the important role in giving rise to the extraordinary medicinal value of this early milk of a cow. In this Sookt this is being promoted for curing Tuberculosis, as
the very Dewata of this sookt- यक्षमानाशन्‌
suggests.-

अङ्गे अङ्गे शोचिषा शिश्रियाणं नमस्यन्तस्त्वा हविषा विधेम !
अङ्कान्त्समङ्कान् हविषा विधेम यो अग्रभीत् पर्वास्या ग्रभीता !! अथर्व 1/12/2
हे सूर्य आप की और समीपवर्ती देवताओं चंद्रमा, नक्षत्रादि तारादि की दीप्ति इस जगत और प्रत्येक प्राणी के अंग अंग में प्राण रूप से स्थित है. तुझ को नमस्कार करते हुवे हम हवि द्वारा तुम सब को परिचर्या द्वारा तृप्त करते हैं.

मुञ्च शीर्षक्त्या उत कास एनं परुष्परुराविवेशा यो अस्य !
यो अभ्रजा वातजा यश्च शुष्मो वनस्पतीन्त्सचतां पर्वतांश्च !! अथर्व 1/12/3
हे सूर्य इस पुरुष को शिरोवेदना से मुक्त करो.वह खांसी जो इस के अंग अंग ( संधिस्थलों) में घुस कर बैठा है, उस से भी मुक्त कर, जो शरीर को सुखा देने वाला पित्त विकार है उस से भी मुक्त कर, जो वर्षा काल मे श्लेष्रोग वात विकार से होता है उस से भी मुक्त कर. सब त्रिविध रोगों की निवृत्ति के लिए वन वृक्षों, वनस्पतियों द्वारा यह सब रोग दूर हों.
शं मे परस्मै गत्राय शमस्त्ववराय मे!
शं मे चतुभ्यो अङ्गेभ्य: शमस्तु तन्वे3 मम !! अथर्व 1/12/4
मेरे ऊपर के शिरोभूत अङ्ग के लिए, मेरे नीचे के शरीर के लिए, मेरे हाथ पैर , तन सब अङ्गों के लिए सुख हो.

2 comments:

  1. Very nice article. Keep posting such stuff for next generations. Thank you.

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  2. Thank you very much dear Gautham ji.
    I sometimes wonder if it is because Vedas contain the wisdom of utilising all the phenomenon in nature for welfare and sustainability of life and environments, our Vedic forefathers were left with no urge to explore and understand physical sciences as a disciplin, like the modern western science researches.

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